Friday, December 7, 2007
नन्दीग्राम? सिर्फ तसलीमा तसलीमा.. .........
जुलाई २००५ से बंगाल सरकार की राजनीति में काफी उथल-पूथल है। परमाणु करार का मुद्दा सामने क्या आया ये लोग अपनी मूल राजनीत भी भुल गए । चाहें परमाणु करार का मुद्दा हो , चाहें नन्दीग्राम हो और चाहें तसलीमा का मामला हो बुद्धदेव सरकार अपनी गेंद केन्द्र के पले में फेक दे रही है । नन्दीग्राम का मुद्दा जब अपने चरम पर है , जिसको सुलझाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन राज्य सरकार नन्दीग्राम के मुद्दे को तसलीमा तसलीमा हल्ला कर दबाने की कोशिश कर रही है। परमाणु मुद्दे को लेकर अभी तक कोई स्पष्ट बिचार नही रख पाए सिर्फ केन्द्र को धमकी देते रहें है कि करार हुआ तो हम सरकार गिरा देंगे लेकिन साफ- साफ कोई वजह नही बता रहें है कि परमाणु करार क्यो नही होना चाहिए? यदि करार से जनता का अहित होगा तो नन्दीग्राम में केमिकल हब बनने से जनता का किस प्रकार से हित होगा ? नन्दीग्राम के जमीं धारकों को तो मुआवजा तो मिल जाएगा लेकिन उन जमीनों पर मजदूरी करने वालों का जीवकोपार्जन कैसे होगा ? क्या सरकार ने इन मुद्दों पर कभी ध्यान देने कि कोशिश की ? यदि नन्दीग्राम का मसला सुलझाना है तो सरकार को चाहिए की तसलीमा से ज्यादा उन लोगों का ध्यान रखे जिनके दम पर वह अपनी राजनीतिक रोटी अब तक सेकते आई है ।
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