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Saturday, December 29, 2007

आँखे बन्द कर लेने से नज़ारे नही बदलते...

अनुराग ने रंगकर्मी पर अपनी पोस्ट "जंग लगी जम्हूरियत" ड़ालने के बाद मुझसे ऑन लाइन पूछा सर मेरे आक्रोश पर आपने कुछ लिखा नही। मैने अनुराग से कहा ये तुम्हारा आक्रोश नही भाई ये तो वो हकीकत है। जो सबके सामने है लेकिन अफसोस कि उसे कोई देखना नही चाहता। अनुराग ने अपनी रचना के ज़रीये एक ऐसी सच्चाई को शब्दों मे ढाल दिया जिससे हम सभी हरदम जो-चार होते है। जम्हूरियत का मतलब सिर्फ कहने या लिखने से ही नही बल्कि सामाजिकतौर दिखाई देना चाहिये। लेकिन हकीकत मे ऐसा नही है। अगर सपनों की दुनिया से बाहर आकर देखें तो अनुराग की रचना हकीकत की शक्ल मे आपके सामने खड़ी नज़र आती है। ज़रुरत इस बात की है कि अनुराग की तरह ही हम सभी को इस बारे मे सोचना होगा। नही तो जंग लगी ये जम्हूरियत इस हाल से भी बदतर हो जायेगी। हमारे साथी अनुराग को बधाई इस पोस्ट के लिये। सभी साथियों से उम्मीद है कि वो सब अपनी लेखनी के दम पर सच को उजागर करते रहेगें। क्योंकि आँखे बदं कर लेने से नज़ारे नही बदलते............

परवेज़ सागर

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