Friday, December 28, 2007
नयी पतितकारिता
आज दुष्यंत जी को फिर पढ रहा था, मेरे अंदर भी कहीं न कहीं एक दुष्यंत है शायद आप मैं भी हो। आज इस नकली पत्रकारिता के दौर मैं जहाँ हमारी नस्ल नें पत्रकारिता को बाजार के कोठे पर बिठा पर बिठा दिया है और खबरों का बलात्कार करना हम जैसों को सिखा दिया है, वहाँ दुष्यंत का एक एक शेर खबरों के हम्माम में हमें आज भी नगां कर रहा है। मैनें भी सोच रखा है की मुझे खबरों का बलात्कार कैसे करना है। मैं कुछ कुत्ते,बिल्ली,साँप,गधा,घोडा, पाल रहा हूं जो निश्चित रुप से खबरों का गोदाम मेरे लिए साबित होगा। माफ कीजीए तोता, कबूतर, भूल गया था और आप से भी गुजारिश है कुछ सलाह आप भी दें, ताकी आपका मित्र इस नये जमाने की शानदार पतितकारिता मैं अपना अमूल्य योगदान दे पाऐ। बहरहाल दुष्यंत जी के शेर हम जैसों की ईज्जत अफजाई के लिए लिख रहा हूँ। हर एक शेर जैसे उन्होनें आज के मीडिया के उच्च स्तरीय घटियापन को निशाने पर रख के लिखा हो ।
तुम्हारे पाँवों के नीचे कोई जमीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकी़न नहीं।
मैं बेपनाह अँधेरे को सुबह कैसे कहूँ,
मैं इन नजा़रों का अंधा तमाशबीन नहीं।
तेरी जुबान है (मीडिया की) झूठी जम्हूरियत की तरह,
तू एक जलील सी गाली से बेहतरीन नहीं ।
तुम्हीं से प्यार जताएँ तुम्हीं को खा जायें,
अदीब यों तो सियासी हैं पर कमीन नहीं ।
तुझे कसम है ( मुझ जैसों को) खुदी को बहुत हलाक न कर,
तू इस मशीन का पुर्जा़ है, तू मशीन नहीं ।
बहूत मशहूर है आयें जरूर आप यहाँ,
ये मुल्क देखने के लायक तो है, हसीन नहीं ।
ज़रा-सा तौर-तरीक़ों में हेर-फेर करो,
तुम्हारे हाथ में कालर हो, आस्तीन नहीं ।
सलाम दुष्यंत जी को और क्षमा एक भोपाली होने के नाते ।
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6 comments:
वाह सर क्या खूब कहीं है लेकिन आप एक चीज तो भूल गऐ आपने आजकल ख़बरों की सुर्खियों में रहने वाले सांप अजगर भूत बंगला औऱ हां राखी सावंत को तो अपने यहां रखा ही नहीं इनके बगैर पतितकारता करना बेकार है टीआरपी में आप टिकना तो दूर खड़े भी नहीं हो पाएंगे। टुष्यंत जी को तो हम सलाम करते है कितना बखूबी से पतितकारिता को जानते है
बिल्कुल सही। दुष्यंत कुमार की इस कहन की धार ऐसी है कि उसे सहने के लिए आज के 'पतितकारों' को जिगरा और जमीर चाहिए।
मैंने भी बुद्धिजीवियों के संदर्भ में आज कुछ लिखा है और दुष्यंत कुमार जी की ये पंक्तियाँ वहां भी बहुत सटीक बैठेंगी। आपके सौजन्य से इन पंक्तियों को वहां भी पेश-ए-खिदमत कर देता हूँ।
anurag sir
i feel your pain.a man who want uncompromise journalism for real indians now feeling he is in a society which have many faces.everything for money everything for trp.here i am writing some lines from my poem aakhir kab tak? which i wrote last night.
AAKHIR KAB TAK?
SUCH KA SAAMNA
SUCH KO JHUTHLAAKAR
YA SUCH SE CHHUPKAR
AAKHIR KAB TAK?
KUCH PANE KI TALASH MEN
BAHUT KUCH KHOTE HUE
PALATNA JINDAGI KE PANNE
AAKHIR KAB TAK?
MAIN UNKE LAYAK NAHI
YA VO MERE LAYAK NAHI
AADHI BHARI AADHI KHALI GILAAS KI UHAPOH
AAKHIR KAB TAK?
PURNENDU
C VOTER
बहुत खूब। अच्छा लगा सर, हम सबके दिल की बात को ब्लॉग पर लाने के लिए। ऐसी चुभती हुई सच्चाई वही शख्स कह सकता है,जो इसे क़रीब से महसूस करे। बस आप ऐसे ही लिखते रहें।
धन्यवाद।
अमित मिश्रा, सीएनईबी।
sir,
when i have read ur words which holds the emotion of real indian journalist and revolutionary like the legendry poet dushyant kumar,i understand the inner safocation of a journalist like u,who does not accept the social system as it is and alwayz want revolution and change for the fullfilment of humanity and vyawastha like Dushyant ji.
this spoiled journalism could dimolish the dream of many budding journalists and their ethics.
sir we totaly agreed with ur NAYI PATITKARITA.
sir i ws amazed to read out ur INQUALAB which consists the power of the word inqualab and used oxymoron in every sentence.
This is my first visit to RANGKARMI and always wants to keep myself intouch with great talants and their words bcz words are the sword of d journalist.
sir always inspired us with ur lekhani jo patitkarita se ru-b-ru to karaye lekin usme samahit hone se bachae.
SMRITI DUBEY,CNEB
Splendid Anutag ji!!!!!!!!!
The first daring video journalist...... Pleasure to know somebody who dares to write truth in todays' market dominated world....
Tahnks for showing mirror to all
GArima
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