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Thursday, December 31, 2009

चिट्ठाजगत के चिट्ठाकारों को

नव वर्ष की पूर्व संध्या पर चिट्ठाजगत के सभी चिट्ठाकारों को लोकसंघर्ष परिवार की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं
सुमन लोकसंघर्ष का सादर प्रणाम

Wednesday, December 30, 2009

नयी पीढ़ी कैसे शिक्षित होगी

हमारे समाज में बेरोजगारी अत्याधिक है दूसरी तरफ शिक्षण संस्थाओ में शिक्षा देने के लिए शिक्षकों का भी अभाव हैसरकार ने अध्यापकों के सेवानिवृत्ति की उम्र 65 वर्ष तक करने का प्रस्ताव रखा और विश्वविद्यालयों में 70 साल तक की उम्र के अध्यापक अध्यापन कार्य कर सकेंगेसरकार नयी पीढ़ी को तैयार करने की जिम्मेदारी से हट रही है और इस तरह के प्रयोगों से शिक्षा का स्तर गिरेगा और आने वाली पीढ़ी का भी भविष्य अच्छा नहीं होगाउत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए प्रयोगों के कारण कक्षा पांच का छात्र अंगूठा लगा कर छात्रवृत्ति प्राप्त करता है उसका मुख्य कारण यह है कि बेसिक विद्यालयों में अध्यापक की नियुक्त ही नहीं हैशिक्षा मित्रों का प्रयोग भाजपा सरकार ने किया उसके पीछे मंशा यह थी कि 2000 रुपये में हम अध्यापक रखेंगे और सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करेंगे अब सरकार शिक्षा मित्रों को ही कुछ प्रशिक्षण देकर स्थाई नियुक्ति करने की मंशा व्यक्त कर चुकी हैउसी तरह केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ा रही हैजिससे शिक्षा व्यवस्था और पतन की तरफ बढ़ेगीनिजी क्षेत्र के शिक्षा संस्थान चाहे वह मेडिकल हों या टेक्निकल कोई भी संस्थान मानक के अनुसार काम नहीं कर रहा है उनसे निकलने वाले छात्र ज्ञान में अधकचरे होते हैं हद तो यहाँ तक हो गयी है कि उत्तर प्रदेश के अन्दर कोई भी राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज मानक के अनुसार शिक्षण कार्य नहीं कर रहा हैवहां भी अध्यापकों की कमी है अच्छा यह होगा की नयी पीढ़ी के निर्माण के लिए योग्य अध्यापकों की भर्ती की जाए तथा मानक के अनुसार प्रशिक्षित अध्यापक तैयार किए जाएँयदि यह काम प्राथमिकता के आधार पर नहीं किया गया तो शिक्षा व्यवस्था और अधिक अस्त-व्यस्त हो जाएगी
सुमन loksangharsha.blogspot.com

Wednesday, December 23, 2009

लालगढ़ की कहानी,मेरी ज़ुबानी

लालगढ़ की कहानी,मेरी ज़ुबानी लालगढ़ में जो हुआ वो सब ने देखा.....नक्सलियों ने किस तरह आम लोगों का समर्थन लेकर सीपीएम के गढ़ मानेजाने वाले लालगढ़ पर कब्जा कर लिया.....इस दौरान नक्सलियों ने कईयों की जाने भी ली और भारी मात्रा में आगजनी की......लालगढ़ की पुलिस चौकी पर नक्सली कब्जे को शायद ही कोई भूल पाएगा.....यह सब वो दृश्य थे जिन्हें पूरे देश ने देखा.....लेकिन लालगढ़ के कुछ ऐसे अनछुए पहलु भी हैं जिन्हें शायद हम और आप कभी ना देख पाएं..... 10 दिसंबर, गुरुवार-अपने चचेरे भाई की आकस्‍मिक दुर्घटना में लगी चोट के चलते मुझे अपने घर डलहौजी जाना पड़ा था....आज मैं उन्हें अस्पताल में देखने के बाद पठानकोट रेलवे स्टेशन पहुंचा.......घर में अपनी मां से बात करते करते जम्मू से दिल्ली की और चलने वाली ट्रेन पूजा एक्सप्रेस स्टेशन पर पहुंच गई........ट्रेन की एसी-3 कोच में चढ़ कर अपनी 13 नम्बर की सीट पर पहुंचा.....सीट पर पहले से ही दो युवा लड़के बैठे हुए थे......समान रखकर मैं भी सीट पर बैठ गया....मेरी सिट पर बैठे वह दोनों लड़के आपस में बात कर रहे थे.....उनकी बातों से मुझे अंदाजा हो गया था की यह दोनों सेना के जवान ही होगें.....तभी उस एक लड़के की फोन की घंटी बजी.....घंटी बजते ही मानों उसके दिल की धडकनें रुक गई हों.....घर से बीवी का फोन आया था......शायद फोन आते ही उस जवान को वो मंजर याद आ गया जब वह अपने घर से सिने पर पत्थर रखकर निकला था....अपने मां के आंसूओं ने शायद उसे बहुत रोका होगा.....लेकिन न चाहते हुए भी उसे उस सफर पर निकलना पड़ा जहां जाने के बाद उसे खुद पता नहीं कि वो वापिस आएगा भी या नहीं....बहरहाल गाड़ी आगे बढ़ रही थी और मंजिल और करीब आ रही थी....दोनों जवानों ने अपने बेग से खाना निकाला और खाने लगे....खाना एक जवान की बीवी ने बनाया था.....दोनों को खाना खाते देख मैंने भी बैग से खाना निकाला और खाने लगा....उसी दौरान मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछ ही लिया कि आप क्या करते हैं?.....उन्होंने बताया की वो सीआरपीएफ में काम करते हैं और लालगढ़ में तैनात हैं.....लालगढ़ का नाम सुनते ही मेरे सामने वो सारी तस्वीरें एक बार फिर से आ गई जिन्हें कभी मैने अपने चैनल पर चलाया था और उन्हें जिया भी था........मुझे वो तस्वीर साफ दिखने लगी जिसमें औरतों ने मानव श्रंखला बनाकर नक्सलियों को सुरक्षा दी थी.....यह कुछ ऐसी तस्वीरें थी जिन्हें शायद ही मैं कभी भूल पांऊ.......लेकिन आश्चर्य की बात यह थी की मेरी उन तस्वीरों में एक भी जवान की तस्वीर नहीं थी जो उस समय वहां बैठकर अपनी जान पर खेल कर नक्सलियों से मुकाबला कर रहे थे.......आज वो जवान मेरे साथ थे जिन्होंने नक्सलियों के साथ हुए लालगढ़ के संघर्ष को जिया था......धीरे-धीरे करते हमारी बात शुरू हुई....एक जवान ने मुझे बताया की जिस समय लालगढ़ में हिंसा हुई वो वहीं मौजूद था......पिछले एक साल से वह अपनी कंपनी के साथ वहां तैनात हैं.....उसे यह भी पता नहीं की पिछला एक साल कैसे गुजर गया.......इस पूरे एक साल में उसने क्या खाया और कितनी बार सोया उसे खुद पता नहीं.......हंसते हुए मुझसे बात करते हुए वह बोला की जब घर में एक हफ्ता रहने के बाद अपना चहरा शिशे में देखता हुं तो अच्छा लगता है.....कहा भाईसाहब आप यकिन नही करेंगे जब डयूटी पर होते हैं तो ये आंखे बाहर निकल आती हैं....चेहरा ऐसा लगता है मानो पिछले कई सालों से धोया ना हो.....कई बार ऐसा भी हुआ है की खाना खाने बैठे और घंटी बज गई....और बोला गया की आपको अभी आगे बढ़ना है.......कुछ समझदार जवान तो जेब में चना लेकर या कुछ और लेकर चलते हैं वो तो अपना पेट में कुछ डाल लेते हैं लेकिन बाकी जवानों को पानी से ही काम चलाना पड़ता है......यह सुनाते सुनाते जब जवान ने मुझे खाना खाते देखा तो उसकी आंखे भर आई.....कहा की पिछली बार मैं घर से खाना लाया था पर रास्ते में ही फैंक दिया.......सोचा जब खाना खाऊंगा तो घर वालों की याद आएगी और दिल का दर्द और भी ज्यादा बढ़ जाएगा........इस जवान की बात सुनकर मेरा पेट भी भर गया और मैं अपना पूरा खाना भी नही खा पाया.....इसके बाद बात शुरू हुई लालगढ़ के संग्राम की.....उस जवान ने मुझे बताया की लालगढ़ का संग्राम कई माईनो में दूसरी लड़ाईयों से अलग है....सबसे बड़ी बात यह लड़ाई हमें अपने घर में ही लड़नी पड़ती है....इस लड़ाई में हमारे ऑफसर हमें पहले ही उन बातों के बारे में बता देते हैं जो हमें नही करनी होती हैं......मसलन नक्सली अगर आपके सामने 9 गज की दूरी पर बंदूक लेकर भी खड़ा है तो आप उस पर गोली नहीं चला सकते.....अगर आप पर कोई पत्थर फैंकता है या तीर से वार करता है या फिर डंडे से वार करता है आप उस पर किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर सकते चाहे फिर आप इस में जख्मी भी क्यों ना हो जाए......आपको यह सख्त निर्देश हैं की आप पहले किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर सकते.....लालगढ़ में पुलिस थाने में हुए कब्जे के दौरान भी ऐसा हुआ....नक्सलियों ने आम लोगों के साथ मिल कर पुलिस थाने और पास के घरों में धाबा बोल दिया और लोगों के घरों में आग लगा दी....लेकिन हम उनपर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं कर पाए......गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी और मैं बहुत कुछ उनसे जानना चाहता था.....मैने उनसे पूछा की क्या कभी कोई ऐसा वाकिया हुआ जब उनके सामने मौत खड़ी हो और उनकी आखिरी घड़ी नज़दीक आ गई हो......इस पर उस जवान ने मुझे कहा की हमें डयूटी जोईन करने से पहले ये कहा जाता है की हम कुछ बातों को सब को नहीं बता सकते....अपने घरवालों को भी नहीं.....लेकिन मैंने उनसे फिर सवाल किया की क्या कभी अपने मौत को सामने देखा है.......उन्होंने मुझे हंसते हुए बोला की क्या कभी आपने गोली की खुशबु को महसूस किया है....गोली की खुशबु तब महसूस होती है जब किसी ने आप को टारगेट पर रखा हो और गोली आपको छू कर निकल जाए.......उस समय आप गोली की खुशबू को महसूस कर सकते है.....उस पहली गोली की आवाज को सुनने में भी बड़ा अच्छा लगता है....लेकिन असल में वो गोली आप को मारने के लिए चलाई गई होती है.....और ऐसी कितनी ही गोलियों को उन्होंने अपने पास से गुजरते हुए देखा है जिनपे उनकी मौत नही लिखी हुई थी.......जैसे जैसे हमारी बात आगे बड़ी कुछ और बातें समाने निकल कर आई......मुझे उस जवान ने बताया की किस तरह नक्सलियों ने एलजेपी के नेता राम विलास पासवान को अपना शिकार बनाने की नाकाम कोशिश की......जवान ने बताया जिस दिन नक्सलियों ने पासवान पर हमला किया उस दिन उनकी टीम को ही रास्ते की पैट्रोलिंग करने का आदेश दिया गया था....स्‍थानीय एसपी ने उन्हें 15 किलोमीटर के कच्चे रास्ते की पैट्रोलिंग करने के निर्देश दिए थे......जब हम लोगों ने रास्ते की पूरी पैट्रोलिंग कर ली और वापिस लौटने लगे तो अचानक एक धमाके की अवाज़ सुनाई दी.......थोड़ी देर बाद खबर लगी की नक्सलियों ने लैंडमाईन बिछा कर पासवान के काफीले को निशाना बनाने की कोशीश की है.....बाद में पता लगा की पासवान तो हमले में बच गए लेकिन उनको एसकोट कर रही एक पाईलेट गाड़ी उस धमाके में क्षतिग्रस्त हो गई....दरअसल नक्‍सलियों ने इस बार लैंडमाईन कच्चे रास्ते की बजाए पक्के रास्ते पर लगाई थी जिसके चलते यह हादसा हुआ.....जवान ने मुझे बताया की नक्सली जो लैंड माईन लगाते है उसमें किताना बारुद भरना होता है इसकी उन्हें ज्यादा जानकारी नही होती...इसलिए कभी कभी वो बहुत ज्यादा बरुद भी डाल देते है जिससे कई बार एक ही ब्लास्ट में कई लोगों की मौत हो जाती है......इसके अलावा उस जवान ने मुझे उस हमले के बारे में भी बताया जिसमें नक्सलियों ने राजधानी एक्सप्रेस को अपने कब्जा में ले लिया था....इस बार भी इन्हीं की टीम थी जो सबसे पहले मौके पर पहुंची थी और नक्सलियों से ट्रेन के कब्जे को छुड़वाया था......हम लोगों के लिए शायद यह दोनों बड़े हादसे थे क्योंकि हमने इन्हें टीवी पर देखा था....लेकिन इन जवानों के लिए यह वो दिन थे जिन्हें ये हर रोज़ जिते है.....आज घर से जाते हुए कहीं ना कहीं इन्हें वो मंजर साफ नजर आ रहे थे.....बातचीत के दौरान कई बार उन्होंने कहा की वह नौकरी छोड़ देना चाहते हैं लकिन क्या करें दूसरा कोई रास्ता भी नही है......कहीं ना कहीं उनकी असमर्थता मुझे साफ नजर आ रही थी....इस बातचीत के दौरान कई बार मैने खुद को उनकी जगह पर महसूस किया......कई बार सोचा की क्या मेरे में इतनी ताकत है की मै लालगढ़ जैसी जगह पर जांऊ और जिस तरह की जिंदगी यह जी रहे है मै भी जियूं.....लेकिन दिल से सिरफ एक ही अवाज आई की शायद मेरा दिल इनकी तरह इतना विशाल नही है की मैं इन विषम परिस्तिथियों का सामना कर सकूं....आज इन जवानों की बहादूरी की बदौलत ही हम अपने घरों में सकून की जिंदगी जी पा रहे हैं....यह जवान ही है जो हमें सोने देने के लिए कई कई रातें जागते हैं....इसलिए हमें ना केवल मुसीबत में बल्कि हर एक उस पल में इन जवानों को याद रखना चाहिए जो जान को हथेली में रख कर हमारी और आपकी सुरक्षा कर रहे है.........

Tuesday, December 22, 2009

पाकिस्तान में सेना और भारत में नौकरशाही सत्ता पलट में माहिर हैं

पकिस्तान में जब सेना को सरकार जब पसंद नहीं आती है तो वह तख्तापलट कर देती हैकिन्तु इसके विपरीत हमारे देश में यह कार्य बखूबी नौकरशाही बड़े आराम से करती रहती हैअमेरिकन साम्राज्यवाद को दुनिया में चुनौती देने वाली भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की सरकार को नौकरशाही ने अपने कारनामो से जनता से सत्ताच्युत करा दिया थाश्रीमती इंदिरा गाँधी ने 20 सूत्रीय कार्यक्रम जनता के हितों के लिए लागू किया था तथा उनके पुत्र संजय गाँधी ने 5 सूत्रीय कार्यक्रम जारी किया थाउस समय की नौकरशाही शक्तिशाली प्रधानमंत्री नहीं चाहता था उसने आपातकाल के नाम पर गाँव से लेकर दिल्ली तक बेगुनाह लोगों को फर्जी मुकदमों में बंद कर दिया थानसबंदी के नाम पर जबरदस्ती अविवाहित नवजवानों की नसबंदी कर दी गयी थी और प्रेस पर तरह-तरह के आरोप लगा कर उनके भी नकेल डाल दी गयी थीजिन नवजवानों ने इन सब नौकरशाही के गलत कार्यों का विरोध किया या तो वह मार डाले गए या फर्जी मुकदमों में जेलों में निरुद्ध कर दिए गएइस समय उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार है नौकरशाही तरह-तरह से सरकार को हमेशा के लिए सत्ताच्युत करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रही हैप्रदेश के पूर्व महानिदेशक ने आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम नवजवानों को या तो एन्कोउन्टर के नाम पर मरवा दिया है या कड़े कानूनों के तहत जेलों में बंद करवा दिया था पूरे प्रदेश में अफसरशाही अंतर्गत धारा 198 उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम के तहत चलने वाले वादों में जबरदस्ती जुर्म इकबाल करा कर या सुलह समझौते वादों में सौ प्रतिशत सजा कर तमगा जीतने की होड़ मचा रखी है जिसके उदाहरण बाराबंकी जनपद में देखने में रहा हैएक उपजिलाधिकारी के यहाँ इस धारा के अंतर्गत चलने वाले सभी वादों में सजा हो चुकी है कई मुकदमों में वादी और प्रतिवादी में सुलह हो चुकी थीसुलह के पश्चात भी सजा सुनाई गयी हैअनुसूचित जाति/ जनजाति निवारण अधिनियम के तहत कोई भी विवेचना नहीं की जा रही हैअभियुक्त घटना के दिन चाहे प्रदेश से बाहर ही क्यों हो विवेचना अधिकारी उसको घटना स्थल पर दिखाकर वाद में आरोप पत्र न्यायलयों में भेज रहे हैंइससे यह महसूस होता है की जब नौकरशाही अति उत्साह में फर्जी आंकड़ों के नाम पर जनता का भला करने लगे कानून के नाम पर जनता का उत्पीडन करने लगे तो समझ लेना चाहिए की नौकरशाही जिस दल की सरकार है उसको मौन रहकर सत्ताच्युत करना चाहती हैं । सुमन loksangharsha.blogspot.com
---- चुटकी---- जिनके भी हैं पेट खाली, सब मिल के बजाओ ताली, नेता जी को मिलेगी बारह रूपये में भोजन की थाली।

Monday, December 21, 2009

अपनी केचुल बदलती भाजपा

लोकसभा चुनाव में चारो खाने कांग्रेस से चित्त होने के पश्चात भाजपा ने अपनी पुरानी केचुल यानी अडवाणी को उतार फेंका है, अब वह पार्टी के लिए कोच की भूमिका निभाएंगे और लोकसभा में अपनी पुरानी प्रतिद्वंदी सोनिया गाँधी से दो-दो हाथ करने सुषमा स्वराज मैदान में उतर रही हैंसाथ ही अडवाणी के चहेते राजनाथ सिंह भी बड़े बे- आबरू होकर अध्यक्ष की कुर्सी से उतारे जा चुके हैंइस पद पर संघ ने अपनी राईट च्वाइज़ को सुशोभित किया है जिनका बचपन जवानी दोनों ही संघ के आँगन में बीता हैदरअसल संघ ने खूब सोच समझ कर टू टायर व्यवस्था इस बार की हैपार्टी संघ संचालक चलाये और सदन में सुषमा स्वराज कांग्रेस से नाराज दलों को अपनी लच्छेदार बातों से उसी प्रकार रिझा कर लायें जैसे कि पार्टी के अवकाश प्राप्त लीडर अटल बिहारी बाजपेई उदारवादी एवं धर्म निरपेक्ष मुखौटा चढ़ा कर अन्य दलों को साथ मिला कर किया करते थेज्ञातव्य रहे की सुषमा स्वराज जय प्रकाश नारायण के आन्दोलन के समय राजनीति में आई थी और नितीश कुमार , लालू यादव, शरद यादव मुलायम सिंह सभी के साथ वह जनता पार्टी में कंधे से कंधा मिला कर चल चुकी हैं । -तारिक खान loksangharsha.blogspot.com

Saturday, December 19, 2009

---- चुटकी---- बीजेपी में बदलाव ऐसे, सर्दी में अलाव जैसे।

देश के साथ विश्वासघात

केंद्र सरकार के पूर्व रेल मंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने 2004 से 2008 तक भारतीय रेल को हजारों करोड़ रुपये के मुनाफे में दिखाया थातब प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने बड़े जोर-शोर से लालू प्रसाद के अर्थ शास्त्र के प्रशंसा के गीत गए थे । रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के समय प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह थे और आज भी प्रधानमंत्री वह हैं और रेल मंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने संसद में श्वेत पत्र पेश कर पूर्व कार्यकाल प्रधानमंत्री के समय के घोटाले को संसद के अन्दर बेनकाब कर रही हैंयह भी हो सकता है कि भविष्य में आने वाला रेल मंत्री सुश्री ममता बनर्जी की पोल खोलने के लिए श्वेत पत्र लायेकबिनेट के फैसले सामूहिक होते हैंयदि यह सब बाजीगरी हुई है तो प्रधानमंत्री के ऊपर कोई भी जिम्मेदारी नियत है की नहींकांग्रेस पार्टी कि सरकार के प्रधानमंत्री रहे पी वी नरसिम्हाराव, बाबरी मस्जिद का ध्वंस होता रहा और वह मूकदर्शक बने रहेवही स्तिथि वर्तमान प्रधानमंत्री की है कि घोटाले दर घोटाले होते रहे उनको मौन ही रहना हैऐसे बेबस प्रधानमंत्रियों से क्या देश प्रगति कर सकता हैइस तरह से देश के साथ विश्वासघात हो रहा हैश्री लालू प्रसाद यादव कुछ को कुछ संसद जीता लाये होते तो क्या ममता बनर्जी रेलवे का श्वेत पत्र जारी करती क्योंकि वह भी कबिनेट मंत्री होतेइन वर्तमान राज़नीतज्ञों का दोहरा चरित्र है जब तक कुर्सी नहीं मिलती है तब तक इनसे बड़ा देश प्रेमी कोई नहीं हैकुर्सी आयी की बजट तक में हेरा-फेरी करने लगते हैं
सुमन loksangharsha.blogspot.com

Friday, December 18, 2009

लो क सं घ र्ष !: हमारे देशभक्त

भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ट अधिकारी श्री मनोज अग्रवाल दिल्ली विकास प्राधिकरण में उच्च पद पर पदासीन हैं मनोज अग्रवाल के यहाँ सी.बी.आई ने छापा डाला तो 2.75 लाख रुपये उन्होंने ने अपनी छत से नीचे फेंक दिए । विभिन्न जगहों कि छापामारी के पश्चात लगभग 1 अरब रुपये से ज्यादा की परसम्पत्तियाँ प्रकाश में आई हैं और पांच बैंक लाकरों का खुलना अभी बाकी है । उत्तर प्रदेश आई.ए.एस एसोसिएसन ने अपने वहां पांच महाभ्रष्टों को चिन्हित करने का कार्य किया था तब यह मामला प्रकाश में आया की वरिष्ट नौकरशाहों को सेवा अवधि में जितना वेतन भत्ता व सुविधाएं मिलती हैं उससे हजारों गुना ज्यादा उनकी परिसंपत्तियां है और एक-आध प्रशासनिक अफसर को छोड़ कर सभी अपनी देश भक्ति में लगे हुए हैं । यह तथ्य आने के बाद आई.ए.एस एसोसिएसन ने महाभ्रष्टों के चयन का कार्य बंद कर दिया । केंद्र सरकार को चलाने के लिए विभिन्न प्रकार के नौकरशाह नियुक्त होते हैं । जिनके दिशा निर्देशों व सोच पर केंद्र सरकार संचालित होती है। वास्तविक देश की प्रगति इन्ही के हाथों तय होती है । हमारे ये नौकरशाह देश को राष्ट्रभक्त, देशभक्ति, नैतिकता, कानून, न्याय, लोकतंत्र का पाठ विभिन्न समारोहों में मुख्य अतिथि या अतिथि बनकर पढ़ाते रहते हैं और उनके अनुकरणीय आचरण को देख कर जनता भी इन्ही चीजों का अनुसरण करती रहती है। अब सवाल यह उठता है कि देशद्रोही, गद्दारी बेचारा क्या करे ? ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने दुनिया की जनता को गुलाम बनाने के लिए गुलाम देशों में प्रशासनिक सेवाओं का तंत्र निर्मित किया था और आज भी नौकरशाहों का न चरित्र ही बदला है न ही साम्राज्यवादी सोच इस कारण इन लोगों से भारतीय जन गण का भला नहीं होने वाला है । सुमन loksangharsha.blogspot.com

Tuesday, December 15, 2009

लो क सं घ र्ष !: गंगा ही नहीं हमारा जीवन ही प्रदूषित कर दिया गया है

मानव सभ्यता नदियों के किनारे जन्मी है, पली है और बढ़ी है पानी के बगैर हम रह नहीं सकते हैंविश्व में बड़े-बड़े शहर और आबादी समुद्र के किनारे है या नदियों के किनारे पर स्तिथ है । कभी भी जल के श्रोत्रों को कोई गन्दा नहीं करता था लेकिन जब पूँजीवाद ने अपने विचारों के तहत मुनाफा को जीवन दर्शन बना दिया है, तब से हर चीज बिकाऊ हो गयी है जल श्रोत्रों को भी गन्दा करने का काम उद्योगपतियों, इजारेदार पूंजीपतियों ने मुनाफे में अत्यधिक वृद्धि के लिए गन्दा कर दिया हैहमारा जनपद बाराबंकी जमुरिया नदी के किनारे पर था और अब जमुरिया नाले के किनारे हैजनपद मुख्यालय के पास एक शुगर मिल स्थापित होती है जिसका सारा गन्दा पानी जमुरिया में गिरना शुरू होता है और फिर तीन और कारखाने लगते हैं जिनका सारा कूड़ा-कचरा जमुरिया में गिरकर नाले में तब्दील कर दिया हैनगर नियोजकों ने जो पूंजीवादी मानसिकता से ग्रसित हैंउन लोगो ने शहर के सम्पूर्ण गंदे पानी को जमुरिया नदी में डाल कर उसको मरणासन्न कर डाला हैनहरों, बड़ी सड़कों, रेलवे लाइनों ने जमुरिया नदी में आने वाले पानी को भी रोककर उसके प्रवाह को समाप्त कर दिया हैब्रिटिश साम्राज्यवाद ने अँधाधुंध तरीके से जंगलो की कटाई कर जमुरिया नदी को उथली कर दिया थावन विभाग ने कागज पर इतने पेड़ लगा दिए हैं की जनपद में कोई भी जगह पेड़ लगने से अछूती नहीं रह गयी हैजमुरिया में मछली से लेकर विभिन्न जीव जंतुओं का विनाश भी मुनाफे के चक्कर में हुआ हैजहर डाल कर पानी को विषाक्त कर मछलियां मारी गयी जिससे पानी कि सफाई का कार्य भी स्वत: बंद हो गयागंगा गौमुख से निकल कर बंगाल कि खाड़ी तक जाती है जिसमें हजारों नदियाँ , उपनदियाँ मिलती हैंजमुरिया नदी के साथ जो कार्य हुआ वही गंगा के साथ हुआ हैजमुरिया नदी भी से गंगा बनती हैजब हमारी मां या बाप या प्राणरक्षक गंगा हो या जमुरिया उसको पहले साम्राज्यवाद ने बर्बाद किया और अब हमारे उद्योगपति, पूंजीपति और नगर नियोजक हमारी नदियों को समाप्त करने पर तुले हैंयह लोग यह चाहते हैं की पानी के ऊपर उनका सम्पूर्ण अधिपत्य हो जाए और कम से कम 20 रुपये लीटर पानी हम बेचेंआज जरूरत इस बात की है कि इन पूंजीवादी, साम्राज्यवादी शक्तियों उनके द्वारा उत्पन्न नगर नियोजकों के खिलाफ जन आन्दोलन नहीं चलाया जाता है तो हमारी गंगा बचेगी हमारी जमुरियासुमन loksangharsha.blogspot.com

लो क सं घ र्ष !: ‘‘आस्तीन के सांप और दूध पिलाने वाले’’

अब हैं हमारे जनप्रतिनिधि महान जो करते हैं राजनीति जाति, धर्म और क्षेत्रवाद की। पर लागू नहीं होता कोई कानून, न लगता है NSA, न लगता है मकोका। आखिर जनता और रियाया है इन्ही के खिलवाड़ की चीज। क्यूं नही लगवाते रोक, जाति, धर्म और क्षेत्रवाद की राजनीति पर? न्हीं लगवायेंगे! क्योंकि हमाम में सब हैं नंगे। क्या राष्ट्रीय! क्या क्षेत्रीय! इन्होंने ही तो पाला था भस्मासुर पंजाब का, जिसने मरवाये, बच्चे, बूढ़े, महिलाएं अनेक, जिनकी तादात हजारों में नहीं लाखों में थी। यही हाल कश्मीर, आसाम, मणिपुर का अभी भी है। मरे जा रहे हैं रोज अनेक, कभी गोलियों से, कभी बारूद के धमाकों से, उड़ते हैं चीथड़े, खून के लोथड़े, इंसानी अंगों के और इंसानियत के भी। मरते हैं रोज वर्दी वाले या बिना वर्दी के, हैं तो सब ही भारत मां के सपूत। फिर ऐसा क्यूं होता है? वर्दी वाला मरा तो इंसान मरा, बिना वर्दी के मरा तो कुत्ता मरा। आखिर क्यूं चलवाते हैं, प्रदर्शनकारी भीड़ पर गोली? आखिर क्यों करवाते हैं, फर्जी एन्काउन्टरों में सतत् हत्यायें? आखिर क्यूं छीनते हैं, जीवित रहने का नैसर्गिक संवैधानिक अधिकार? कानून व्यवस्था के बहाने, फर्जी क्राइम रिकार्ड के नाम सिर्फ और सिर्फ फर्जी आंकड़ेबाजी के लिए, जनता को ही बेवकूफ बना झूठी वाहवाही के लिए। जनता का ध्यान मूल मुद्दों से हटाने के लिए, छोड़ते रहते हैं शिगूफों पर शिगूफे, ताकि आये ही न ध्यान, रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा और महंगाई का। हमारे ही प्रतिनिधि, मुखिया सरकार के, चलवाते हैं बाकायदा अभियान, भरते हैं जेलें गरीब गुरबा जनता से, फर्जी मुकदमें तो है बपौती, पुलिस और प्रशासन की। क्या इस अमानवीयता के बिना कानून व्यवस्था रह जाएगी अधूरी। खड़ा है इस भ्रष्टाचार की नींव पर, घूस के रूपयों का बहुत बड़ा साम्राज्य। दबी जा रही है अदालतें ढाई करोड़ मुकदमों के बोझ से, बेगुनाह साबित होने में लग जाते हैं चार-छः साल। फिर भी छीना ही जाता रहता है जनता का, सामान्य जीवन जीने का संवैधानिक अधिकार होती रहेंगी सतत् हत्यायें मानवता की फर्जी एन्काउन्टरों में। क्यूं बढ़ावा देते रहते हैं झूठी बहादुरी को? तमगे और आउट आॅफ टर्न प्रमोशन देकर। आखिर क्यूं करवाते रहते हैं सतत्, संविधान की हत्या? जबकि संविधान से ही पाते हैं, ताकत और शासन का अधिकार। फिर क्यूं रख देते हैं संविधान को, सजाकर सिर्फ अलमारी में? जहन से निकाल ही क्यूं देते हैं, संविधान और जनता को? फिर भी देते फिरते हैं संविधान की दुहाई। जनता को सिर्फ बेवकूफ बनाने की खातिर। जबकि खुद ही नहीं करते संविधान का पालन, करते हैं राजनीति - जाति, धर्म, क्षेत्रवाद और हत्या की। आखिर ऐसा क्यूं है? वर्दी वाला मरा तो इंसान मरा, बिना वर्दी के मरा तो कुत्ता मरा। बागी भी तो हैं इंसान और भारत मां के ही सपूत। पर उनके मन में है एक आग, उस आग को ही क्यूं ठंडा नहीं करते? पानी क्यूं नहीं डालते उस पर? इंसान क्यूं मारते हैं? क्यूं बनाते हैं, नीति दमनकारी? आखिर जानबूझकर क्यूं करते हैं नीतिगत गलती? वह आग पैदा तो आप ही करते हैं, आकण्ठ व्याप्त भ्रष्टाचार की विष बेल पर। आखिर क्यूं पिला रहे हैं दूध आस्तीन के सांपों को? क्या राज्य की कुर्सी राष्ट्र से ज्यादा जरूरी है? एक राज्य में कुर्सी न मिले तो क्या कम रह जाता रूतबा राष्ट्र में? इंदिरा का बलिदान क्या कम है समझने के लिए? क्यूं नहीं करते स्वच्छ पारदर्शी राजनीति? क्या तब पेट न भरेगा या रोटी पड़ जाएगी कम? जिन्ना ने मरवाया था बीस लाख, ठाकरे और राज मरवायेंगे करोड़ों। जिन्ना ने करवाया था देश के दो टुकड़े, प्रान्त में छिपे जिन्ना करवायेंगे अनेक। फिर क्यूं नहीं लगवाते रोक, जाति, धर्म और क्षेत्रवाद की राजनीति पर? नजर बन्द करें इन भस्मासुरों को या डालें काल कोठरियों में। इन्हें पूरी तरह काट दें समाज और देश दुनिया से। संेसर काटें इनकी जहरीली वाणी का, नहीं घुलेगा जहर समाज में नहीं लगेगी आग। अभियान7 चलाना है तो चलाएं इनके ही खिलाफ, और शासन तन्त्र में आकण्ठ व्याप्त भ्रष्टाचार के ही खिलाफ। जो है राष्ट्रद्रोह से भी बढ़कर राष्ट्र के जन-जन के प्रति अपराध, यही है असली अपराधी समाज के। ताज में कसाब से निपटाया ब्लैक कैट बार्डर के दुश्मनों से तो निपट सकते हैं तोप और बुलेट से पर, आस्तीन के सापों से निपटेंगे कैसे? माहिर पुलिस रोज करती है फर्जी मुठभेड़ मरते हैं अनेक क्या है कोई व्यवस्था देश में? जो इन भस्मासुरों से करे वास्तविक मुठभेड़। क्यूं बढ़ने और पकने ही दें ऐसे फोड़ों को? जो बन जाएं नासूर रिसने लगे मवाद और खून। शुरू में ही क्यूं नहीं नश्तर से देते चीर, ऐसे गम्भीरतम मामलों में? कहां खो गयी है विशेषता राष्ट्र की? कुछ बताएंगे विधि-विशेषज्ञ, कुछ करेंगे, हमारे विद्वान न्यायाधीश। इतने बड़े देश में एक अरब की आबादी में। जूझ रहा है निहत्था सिर्फ एक खिलाड़ी महान। क्या है कोई ‘‘जांबाज मानुस’’ जो करे मुठभेड़, अन्त करे इन भस्मासुरों का आस्तीन के सांपों का।। - महेन्द्र द्विवेदी

Sunday, December 13, 2009

लो क सं घ र्ष !: लड़ो वोट की चोट दो

यह लोकतंत्र है मजबूत और सुदृढ़ लोकतंत्र। इसको और सुदृढ़ बनाने के लिए वोट का हथियार उठाना बहुत जरूरी है। हम आये दिन रोते हैं रोना अपनी गरीबी का, अपनी कमजोरी का, साधन विहीनता का, बेरोजगारी का, जमाखोरी का, महंगाई का, गुंडागर्दी का, गुंडाराज का, माफिया राज का, चोरी-डकैती का, घूसखोरी का, सरकारी कामों में कमीशन का और लूट का - कहां तक गिनाऊं, गिनाना आसान नहीं है। कुछ ने कहा दाल में काला है, कुछ ने कहा पूरी दाल काली है। सच है जिसने जो भी कहा पर इसका इलाज, शायद लाइलाज है यह मर्ज। अभी चन्द दिनों पहले बात हो रही थी एक अधिकारी से जो मुझसे बोले एक मामले जनहित याचिका करने के लिए, मैंने कहा अगर वो याचिका मैं करता हूं तो वह जनहित याचिका न होकर मेरी स्वहित याचिका बनकर रह जायेगी क्योंकि उसमें लोग मुझे हितबद्ध व्यक्ति समझकर निशाना मुझ पर साधेगें इसलिए मैंने इसके लिए नाम सुझाया सामाजिक हितों को रखकर एक सामाजिक कार्यकर्ता का। जाने-माने कार्यकर्ता हैं वो नाम लेते ही बोले- अच्छा आप संदीप पाण्डे को बता रहे हैं, जो सभी अधिकारियों को भ्रष्ट बताते हैं। भ्रष्टाचार हम करते नहीं बल्कि वह तो हमारी मजबूरी है। हम अपने वेतन में कैसे चला पायेंगे अपनी जिंदगी, गिनाना शुरू किया हर चीज की महंगाई का। मैंने उनको समर्थन देते हुए कहा-हम देश के लगभग सब लोग बेईमान हैं। अपने को बेईमान बताते हुए उन्होंने खुशी से मुझे बेईमान होना मान लिया। मैंने बात फिर आगे बढ़ाई, हां, हम सब बेईमान हैं लेकिन ईमानदार है वह व्यक्ति जिसको बेईमानी का मौका नहीं मिलता। वह बोले आपने तो मेरी बात कह दी, लेकिन मैंने उनकी बात में एक बात और जोड़ी, लेकिन यह तो सिद्धान्त है और हर सिद्धान्त का अपवाद भी होता है अगर कोई ईमानदार है तो अपवाद स्वरूप। लगता है मैं बहक गया अपनी बात कहते-कहते विषय से हट गया, विषय तो सिर्फ इस वक्त है-लोकतंत्र में वोट की चोट का। हमने तो लोकतंत्र को भी राजशाही में बदल रखा है। राजा का बेटा राजा, उसका बेटा राजकुमार, आगे चलकर राजा। आजकल मीडिया ने एक राजकुमार को बहुत ही बढ़ा रखा है, खबरों में चढ़ा रखा है। कभी खबर आती है-राजकुमार ने दलित के साथ भोजन किया, कभी खबर आयी-राजकुमार ने दलित के घर में रात बितायी। राजकुमार ने दलित के साथ भोजन किया दस रूपये का, दलित के घर तक पहुंचने का खर्च आया, लाख में, दलित के घर तक चलकर सोने में खर्च आया, लाखों का और कुल मिलाकर राजकुमार पर प्रतिदिन खर्च आता है लगभग करोड़ का। फिर छोटे राजकुंवर पीछे क्यों रहें उन्होंने भी सिर उठाया, साम्प्रदायिक उन्माद फैलाया, साम्प्रदायिकता की सीढ़ी पर चढ़कर आकाश छूने का प्रयास किया, वो अलग बात है धराशायी रहे। इस लोकतंत्र ने बहुत सारे छोटे-छोटे राजा पैदा किये हैं जिनके अपने-अपने राज हैं, अपना-अपना ताल्लुका है और अपने दरबारी हैं। गोण्डा के गजेटियर में पढ़ा है कि अली खान के बेटे शेखान खान ने अपने बाप को मारकर उनका सिर मुगल दरबार में पेश किया जो अजमेर गेट पर लटकाया गया और मुगल शासक ने शेखान खान को खुश होकर खान-ए-आजम मसनत अली का खिताब देकर उसे जमींदारी का अधिकार दिया। यही हाल आज के लोकतांत्रिक राजशाही में है-भाई-भाई से लड़ता है, बाप-बेटे से लड़ता है, चाचा-भतीजे से लड़ता है, भतीजा-चाचा से लड़ता है। कोटा और परमिट तक के लिए हम नेताओं की चापलूसी करते हैं, उस चापलूसी में चाहे हमें उनका हथियार ही क्यों न बनना पड़े और हमें हथियार बनाकर लोकतंत्र के ये राजा आगे बढ़ते हैं और वंशवाद फल-फूल रहा है और हम चाटुकारिता करके ही अपने को बहुत बड़ा आदमी मान बैठते हैं। कभी कहते हैं भइया ने मुझे पहचान लिया, नेता जी ने मुझे नाम लेकर बुलाया, देखो कितनी अच्छी याददाश्त है, मंत्री जी ने सभा मेरे नाम का ऐलान किया बहुत मानते हैं मुझे, कहां जाते हैं किसी के घर नेताजी हमारे घर आये थे, सिक्योरिटी के साथ चलते हैं, बहुत बड़े आदमी हैं, देखो सिक्योरिटी छोड़कर और उसे चकमा देकर मेरे घर पहुंच गये, लेकिन यह नहीं सोचा सिक्योरिटी किससे हम जिसके प्रतिनिधि हैं उसके डर से सिक्योरिटी या फिर जिसके प्रतिनिधि हैं उसको डराने के लिए सिक्योरिटी, जितनी बड़ी फोर्स चलेगी जिसके साथ, उतना ही बड़ा स्टेटस माना जाएगा उसका, यह मान्यता दे रखी है हमारे समाज ने। इन मान्यताओं को समाप्त करना होगा, लोकतंत्र में रहकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लोकतंत्र में भागीदार बनना बहुत जरूरी है, अगर हम हर काम में यही सोचेगें कि लोकतंत्र सिर्फ बड़े लोगों के लिए है, लोकतंत्र में कामयाबी बेईमानों की है, भ्रष्ट लोगों की है, झूठों और धोखेबाजों की है, बेईमानों और दगाबाजांे की है तो हम अपने साथ छल करते रहेगें इसलिए आवश्यक है इन मान्यताओं पर उठाराघात करने की। आइए, समझिए-समझाइए, मिलिये-मिलाइये लोकतंत्र में वोट की कीमत का सही इस्तेमाल कीजिए और देश की पूंजी पर कुण्डली मारकर बैठे लोगों को शिकस्त देने के लिए, देश की सम्पत्ति को लूटने वालों के लिए एक हो जाइये, मिलकर लड़इये ओर लोकतंत्र के हत्यारों को राजा बनने से देश को बचाने के लिए वोट का चोट दीजिए। मुहम्मद शुऐब एडवोकेट

Monday, December 7, 2009

वेश्यावृति त्यागने वाली युवतियों की शादी

डेरा सच्चा सौदा [सिरसा,हरियाणा]के संत गुरमीत राम रहीम सिंह इंसा द्वारा वेश्यावृति त्याग कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने वाली युवतियों के कल्याण के लिए चलाई गई मुहिम में १०११ युवक वेश्यावृति त्यागने वाली युवतियों से शादी करने को तैयार हैं। इन युवतियों को अपनी बहिन,बेटी बनाने के लिए ९४ तथा ९ परिवार उनके बच्चों को गोद लेने के लिए आगे आए हैं। गुरु जी ने इन युवकों को भक्त योद्धाओं की संज्ञा दी है। वेश्यावृति के अभिशाप से मुक्त होने वाली युवतियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए तीन चरण निर्धारित किए गए हैं। पहले चरण में देश के विभिन्न भागों में टीमे भेजी गई हैं। जो वेश्यावृति के अभिशाप से मुक्त होने की इच्छुक महिलाओं को लेकर आएगी। दूसरे चरण में इन युवतियों की चिकित्सीय जाँच व उपचार की व्यवस्था की जाएगी। पूर्ण रूप से स्वस्थ युवती की ही शादी करवाई जाएगी। अगर किसी युवती में एड्स जैसी बीमारी के लक्षण दिखाई दिए तो उसके उपचार के सभी प्रबंध किए जायेंगे। यह जानकारी डेरा के प्रवक्ता डॉ०पवन इंसा ने दी। ---दैनिक प्रशांत ज्योति, श्रीगंगानगर से साभार।

लो क सं घ र्ष !: धन्य हैं हमारी खुफिया एजेंसियां

हमारी खुफिया एजेंसियां 26 जनवरी , 15 अगस्त, 6 दिसम्बर जैसे मौकों पर व आतंकी मामलों में मीडिया के माध्यम से मालूम होता है की वो काफ़ी सक्रिय हैं और देश चलाने का सारा भार उन्ही के ऊपर हैखुफिया एजेंसियों की बातें और उनकी खुफिया सूचनाएं बराबर अखबार में पढने इलेक्ट्रोनिक माध्यम से सुनने को मिलती हैंछुटभैया नेता रोज प्रेस विज्ञप्ति जारी करता है और छपने पर अखबार खरीद कर जगह-जगह किसी किसी बहाने लोगो को पढवाता रहता है और उसी तरह खुफिया एजेंसियां मीडिया में अपने समाचार प्रकाशित करवाती रहती हैं। खुफिया सूचनाओं का अखबारों में प्रकाशित होना क्या इस बात का धोतक नही है कि जान बूझ कर वह प्रकाशित करवाई जाती हैं और उन सूचनाओ में कोई गोपनीयता नही हैअक्सर विशिष्ट अवसरों से पहले तमाम तरह की कार्यवाहियां मीडिया के माध्यम से मालूम होती हैं जो समाज में सनसनी भय फैलाने का कार्य करती हैं अंत में वो सारी की सारी सूचनाएं ग़लत साबित होती हैंनागरिक उस विशिष्ट अवसर से पहले इन सूचनाओ से भयभीत रहते हैं जबकि खुफिया जानकारियों का गोपनीय रहना आवश्यक होता है और किसी घटना होने के पूर्व उन अपराधियों को पकड़ कर घटना को रोकने का कार्य होना चाहिए लेकिन हमारी खुफिया तंत्र का कार्य घटना हो जाने के पश्चात् शुरू होता हैभारतीय कानूनों के तहत सबूतों को बयानों को अंतर्गत धारा 161 सी आर पी सी के तहत केस ड़ायरी में दर्ज किया जाता हैउस केस ड़ायरी को विपक्षी अधिवक्ता देख सकता है पढ़ सकता हैछोटी से लेकर बड़ी घटनाओं तक सारे सबूतों बयानों को प्रिंट इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से जनता को बताया जाता हैइस तरह का कृत्य भी अपराध है जिसको हमारा खुफिया तंत्र पुलिस तंत्र रोज करता हैखुफिया सूचनाओ का कोई महत्त्व नही रह जाता हैइन दोनों विभागों की समीक्षा ईमानदारी से करने की जरूरत है अन्यथा इन दोनों विभागों का कोई मतलब नही रह जाएगाअगर खुफिया तंत्र इतनी छोटी सी बात को समझ पाने में असमर्थ है तो धन्य है हमारे देश की खुफिया एजेंसियां
सुमन loksangharsha.blogspot.com

Sunday, December 6, 2009

लो क सं घ र्ष !: कलंक दिवस है आज

6 दिसम्बर 1992 को नियोजित तरीके से अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ डाला गया थाभारतीय संविधान के अनुसार देश धर्म निरपेक्ष है और सभी को अपना धर्म मानने उपासना करने का संवैधानिक अधिकार हैदेश के अन्दर एक छोटा सा तबका जो पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद से संचालित होता था और अब अमेरिकन साम्राज्यवाद से संचालित होता है। साम्राज्यवादियों के इशारे पर देश कि एकता और अखंडता को कमजोर करने की नियत से यह प्रलाप करता है कि वह देश का यह स्वरूप बदल कर एक ऐसे धार्मिक राष्ट्र के रूप में तब्दील कर देना चाहता है कि जिससे वर्तमान देश का स्वरूप ही बचा रहेऐसे तत्वों ने देश के अन्दर गृहयुद्ध करवाने के लिए बाबरी मस्जिद विवाद खड़ा किया था। देश धार्मिक विवाद में फंसा रहे और उसकी प्रगति रुकी रहे जिससे देश साम्राज्यवादी ताकतों के सामने खड़ा न हो सके । इस विवाद से आज तक मुक्ति नही मिल पायी है और हम आर्थिक रूप से भी कमजोर हुए है और हमारी प्रगति बाधित हुई है । देश का वर्तमान स्वरूप 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में आया था जो चीजें जिस स्तिथि में थी उसको संविधान और कानून के दायरे में ही रखकर ही हल किया जा सकता है किंतु, 6 दिसम्बर की घटना ने देश में एक मजबूत सरकार होने का जो भ्रम था उसको तोड़ दियायदि उन्मादियों और दंगाइयों को राज्य द्वारा कहीं कहीं से संरक्षण प्राप्त होता तो यह घटना नही घटतीराज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप है जब उसकी उदारता या संलिप्प्ता के कारण इस तरह की घटनाएं होती हैं तो संविधान, न्यायव्यवस्था, पुरानी विरासत सब कुछ टूटता है मिलती सिर्फ़ बर्बादी हैराजनीतिक दलों ने क्षणिक फायदे के लिए दोनों तरफ़ से आग में घी डालने का कार्य किया है ताकि उनका वोट बैंक सुरक्षित हो सके6 दिसम्बर को इस देश में रहने वाले अधिकांश लोगो का विश्वाश टूटा था इसलिए यह दिन देश के लिए कलंक दिवस है और जो लोग शौर्य दिवस की बात करते हैं, वह लोग मुखौटाधारी हैंमुखौटाधारी इसलिए हैं कि जब जहाँ जैसा स्वार्थ आता है उसी के अनुसार वो बोलने लगते हैकभी वह कहते हैं कि बाबरी मस्जिद थी, कभी वह कहते हैं राम मन्दिरशौर्य दिवस के नाम पर जो जहर बोया गया है उसका विष कितने समय में समाप्त होगा यह कहना मुश्किल है। हजारो नीलकंठ हार जायेंगे उस जहर को समाप्त करने में। उस दिन देश हारा था, अराजक ,उन्मादी और देशद्रोही जीते थे । उन्ही का शौर्य दिवस है , हम हारे थे इसलिए कलंक दिवस है ।
सुमन loksangharsha.blogspot.com

Saturday, December 5, 2009

लो क सं घ र्ष !: पुलिस पर कब्ज़ा करने की नई रणनीति

टेलिकॉम कंपनियों ने अपने मुनाफे के लिए आबादी क्षेत्र में नियमो-उपनियमों का उल्लंघन मोबाइल टावर लगा कर रखा हैजिससे अधिकांश जनता का जीना दूभर हो गया हैटेलिकॉम कंपनियों ने लोगो की छतों पर मोबाइल टावर लगा रखे हैंमोबाइल टावर को संचालित करने के लिए बड़े-बड़े जनरेटर छत पर रखे हैंजनरेटर चलने से उत्पन्न कंपन से पड़ोसियों के मकान चिटक रहे हैंशोर से आबादी क्षेत्र में रहने वाले लोगो को काफ़ी असुविधा होती हैमोबाइल टावर क्षेत्र में तरंगो से लगातार बन रहे बादल से मानव जीवन के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा यह आने वाला समय ही बताएगामोबाइल टावर के कारण जगह-जगह विवाद उत्पन्न हो रहे हैं जिनसे निपटने के लिए टेलिकॉम कंपनियों ने पुलिस विभाग को अपने कब्जे में करने के लिए उत्तर प्रदेश शासन को प्रस्ताव दिया है कि प्रदेश के 15 सौ थानों में पुलिस लाइन्स में मोबाइल टावर लगाने के लिए किराए पर दे दिए जाएँयह उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा हैनागरिको से विवाद होने पर पुलिस टेलिकॉम कंपनियों की तरफ़ ही होती है और यदि वह पुलिस विभाग के किरायेदार हो जाएँ तो मालिक और किरायेदार मिलकर नागरिको का जीना दूभर कर देंगेटेलिकॉम कंपनियों ने बहुत सोच समझ कर पुलिस विभाग पर कब्ज़ा करने की रणनीति अपनाई हैटेलिकॉम कंपनियां जनता से तरह तरह के लोक लुभावन वादे करती हैं जो वास्तव में अप्रत्यक्ष रूप से ठगी के कोटि अपराध होता हैएक छोटा सा बिन्दु लगा कर बहुत ही महीन शब्दों में लिखा होता है कि कुछ शर्तें लागू हैं जिनको उपभोक्ता ध्यान नही दे पाता है और ठगा जाता हैइस तरह से टेलिकॉम कंपनियां अपने अपराधों में पुलिस के नजदीक रहकर छिपाना चाहती हैं
सुमन loksangharsha.blogspot.com

Friday, December 4, 2009

लो क सं घ र्ष !: लोकतंत्र जिसका गुन अमेरिका गाता है

अमेरिका ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई को चेताविनी दी है कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अच्छे काम- काज के नतीजे जाहिर करो अन्यथा उनकी जगह कोई और लेगाअमेरिका जिसके पास पूरी दुनिया में लोकतंत्र कायम करने का ठेका है वह अब लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकारों के नेताओं को यह बताएगा कि तुम्हारा काम काज ठीक नही हैतुम्हारी जगह पर हम दूसरे व्यक्ति को नेता नियुक्त करेंगेजनता द्वारा किसी भी चुनी गई सरकार को हटाने का हक़ जनता को ही होता है लेकिन साम्राज्यवादियों के अगुआ अमेरिका ने पूरी दुनिया के अधिकांश राष्ट्राध्यक्षों को अपना नौकर समझ रखा है और धीरे-धीरे वह जनता को भी गुलाम समझने लगा हैअमेरिकां साम्राज्यवादी दुनिया में लोगों को लोकतंत्र का सपना दिखाते हैं और उसके बहाने वह उस देश को गुलाम बनने कि रणनीति बनाते हैंअफगानिस्तान में हामिद करजई कि सरकार उनकी पिट्ठू सरकार है ही और अब जब अफगान समस्या का समाधान नही कर पा रहे हैं तो हामिद करजई को चेतावनी दे रहे हैंअमेरिकी लोकतंत्र का मतलब यह है कि उस देश को येन-प्रकारेण किसी भी तरह से गुलाम बनाओ और उसकी प्राकृतिक सम्पदा को लूटोजब उनका पिट्ठू गुलाम अमेरिकी गुलामी को और आगे बढ़ा पाने में असमर्थ हो जाता है तब प्रयोग करो और फेंको की नीति अपनाते हैंयही अमेरिकां का लोकतंत्र है, जिसका गुन वह गाता हैं
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सुरक्षा अस्त्र

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