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Saturday, February 28, 2009

"झील को दर्पण बना"

"झील को दर्पण बना"
रात के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना चाँद जब बादलो से निकल श्रृंगार करता होगा चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...
मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
नदिया पुरे वेग मे बह
किनारों से टकरा टकरा दीवाने दिल के धड़कने का
सबब सुनाती तो होगी .....
खामोशी की आगोश मे रात जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे फिसल लजाती तो होगी ......
दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

Wednesday, February 25, 2009

लैला-मंजनू की आखिरी पनाहगाह

लैला-मंजनू का नाम कौन नहीं जानता! ये नाम तो अमर प्रेम का प्रतीक बन गया है। लैला-मंजनू के आत्मिक प्रेम पर कई फ़िल्म बन चुकी हैं। लैला-मंजनू कैसे थे? कहाँ के रहने वाले थे? इनके परिवार वाले क्या करते थे? कौन जानता है। लेकिन ये बात सही है कि इन दोनों प्रेमियों ने अपनी अन्तिम साँस श्रीगंगानगर जिले में ली। श्रीगंगानगर जिले के बिन्जोर गाँव के निकट लैला-मंजनू की मजार है। दोनों की मजार पर हर साल जून में मेला लगता है। मेले में नवविवाहित जोडों के साथ साथ प्रेमी जोड़े भी आते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि बँटवारे से पहले पाकिस्तान साइड वाले हिंदुस्तान से भी बहुत बड़ी संख्या में लोग मेले में आते थे। मेले के पास ही बॉर्डर है जो हिंदुस्तान को दो भागों में बाँट देता है। राजस्थान का पर्यटन विभाग इस स्थान को विकसित करने वाला है। लैला-मंजनू की मजार को पर्यटन स्थल बनाने के लिए दस लाख रुपये खर्च किए जायेंगें।अगर इस स्थान का व्यापक रूप से प्रचार किया जाए तो देश भर से लोग इसको देखने आ सकते हैं। मजार सुनसान स्थान पर है ,इसलिए आम दिनों में यहाँ सन्नाटा ही पसरा रहता है। लैला -मंजनू की इसी मजार के बारे में जी न्यूज़ चैनल पर प्राइम टाइम में आधे घंटे की स्टोरी दिखाई गई। सहारा समय भी इस बारे में कुछ दिखाने की तैयारी कर रहा है।

Friday, February 20, 2009

पत्नी की आरती

आज बंडमरु गिरी करने का मन किया है। शुरुआत कर रहा हूँ पत्नी की आरती से .... मुझे मेरे मित्र ने मुझे एक मेल किया उस मेल को मैं यथावत आपके सामने परोस रहा हूँ... मुझे आच्छा लगा आपको भी आच्छा लगेगा। ऐसा विश्वाश है। आप अपनी राय जाहिर करें... कैसा लगा......धन्यवाद ।

दूरियाँ

दूरियाँ बहुत है न हम दोनों में जानते है रोज रात चाँद चुपके से रोता है उसके अश्को की चाँदनी हमारे हथेली पर सूखती है .........

Sunday, February 15, 2009

खोया बचपन (नुक्कड़ नाटक )

लेखक :विनयतोष मिश्रा © सर्वाधिकार सुरक्षित  
यह नुक्कड़ नाटक कॉमर्शियल प्रयोग के लिए नहीं है | परन्तु सामाजिक हित के लिए प्रयोग हेतु अनुमति की आवश्कयता नहीं है | 
पात्र परिचय : 
१.सूत्रधार
२.आदमी १
३.लड़का १ 
४.लड़का २
५.पिता  
६. टीवी रिपोर्टर
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दृश्य १ 
आदमी १ :क्या प्रोग्राम है आज का भाई | बहुत धांसू व्यवस्था है | बाजा वाजा भी लाये हो |क्या इरादा है | 
सूत्रधार : आप बताइए क्या सुनेंगे आप | 
आदमी १: कुछ गाना बजाना हो जाए | ससुरा धंधा मंदा है गम ही गम है | कुछ मनोरंजन का ही इन्तेजाम कर दीजिये | 
सूत्रधार :ठीक है जैसा पब्लिक बोले |  
(सारे बैठ जाते है ज़मीं पर और गाना शुरू होता है )  
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बच्चे का बचपन छीन लिया रे उसे खच्चर बना के -२ 
जब जब उड़ा वह मन की उड़नियाँ-२
जब जब उड़ा वह मन की उड़निया.
हो रामा(एक साथ ) 
उसके पंख क़तर दिया रे कैंची चला के | 
बच्चे का बचपन छीन लिया रे उसे खच्चर बना के -२ !! 
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आदमी १ :अरे यह तो ग़लत है . मगर हम तो अपने बच्चों का बहुत ध्यान रखतें हैं.
पढ़ाई की हर जरूरत पूरी करते हैं .अपनी औकात से बाहर जाके इंग्लिश मीडियम मैं एडमिशन भी कराया है
सूत्रधार : कभी कभी हम जाने अनजाने में ख़ुद के बच्चों का मानशिक शोषण करते हैं.
आदमी १ : क्या बात कर रहें हैं .मुझे कुछ भी समझ मैं नहीं आ रहा है .
सूत्रधार :चलिए हम समझाते हैं .
दृश्य २ 
गाना गाते हुए छात्र १ प्रवेश करता है.
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नन्हा मुन्ना राही हूँ ,पापा का सिपाही हूँ . 
बोलो मेरे संग जय हिंद -३  
बड़ा होगे डॉक्टर इंजिनियर बनूँगा . 
सुबह से शाम तक किताबों का ही संग .  
दाहिने बाएं -२ ,थम (बेहोश हो जाता है )  
__________________________ 
अभिनेता खड़े हो कर छात्र १ का चक्कर लगाते हुए गाना गातें हैं .
____________________________ 
मेरे प्यारे बंधू .भोले भाले बंधू . 
सीधे सधे बंधू ,अरे बंधू रे बंधू .
सोचो कोई बचपन ऐसा जिसमें खेल न हो ?
अकेला जो बैठे जो दूर जहाँ ... 
सपनों से भी मेल न हो ? 
मेरे प्यारे बंधू .भोले भाले बंधू . 
सीधे सधे बंधू ,अरे बंधू रे बंधू  
_______________________
आदमी १ :अरे भाई आप लोग यह बताओ बच्चा पढेगा नहीं तो कमाएगा कैसे ?
घर कैसे चलाएगा ?आज के बच्चे पढ़ाई करने से दूर भागते हैं .
हम अपने ज़माने में ५ घंटे पढ़ते थे रोज ,वह भी लालटेन की रोशनी में.
सूत्रधार : तो क्या आप अपने जैसा ही बनाना चाहतें है बच्चों को .
आप ने बचपन नहीं जिया तो क्या औरों को भी हक नहीं है जीने का .
और फिर हर बच्चा एक जैसा नहीं होता .हर किसी में कुछ अलग खासियत होती है .
आदमी १ : मगर पढ़ाई के बिना कैसे कोई कमाएगा.अगर कम पढ़ के कुछ किया तो कितना कमाएगा . 
सूत्रधार : बात पैसे की नहीं है .बात है की बच्चे का मन किस चीज मैं लगता है .
फिर भी अगर आप उदाहरण ही चाहते है तो सुनिए .  
सारे कलाकार एक एक कर के गातें हैं .
______________________________
देखो देखो देखो .... 
शाहरुख़ का जलवा देखो ,सचिन का बल्ला देखो .
सानिया की शान देखो ,ऐ आर रहमान देखो . 
लालू का चमत्कार देखो ,हमीद का देश प्यार देखो . 
अम्बानी का अरमान देखो ,तारे ज़मीं का इशान देखो  
टेरेसा का सम्मान देखो ,विजेंद्र कुमार की जान देखो ...
देखो देखो देखो ....
__________________________________  
दृश्य ३ 
(छात्र १ तथा छात्र २ प्रवेश करतें है .सारे मिल के गाना गातें हैं .)
 
एक दो तीन चार ,भइया बने होशियार .
सबका है कहना अनपढ़ न रहना .
जाओ गुरूजी के पास एक दो तीन चार ,भइया बने होशियार . 
(टीचर बैठा है ,दोनों छात्र प्रवेश करतें हैं और नीचे बैठ जाते हैं )
टीचर :(छात्र २ से) गृहकार्य आप दिखाओ .
छात्र २ :सर आज तक नहीं दिखाया तो अब क्या दिखाऊँगा ?
टीचर :तुम बहुत ही उदंड और नालायक लड़के हो .
छात्र २ : अच्छा मुझे मालूम नहीं था .चलो कुछ तो पता चला . स्कूल की फीस से कुछ तो वसूल हुआ (हँसता है )
टीचर :गधे मुर्गा बन जाओ .
छात्र २ : वाह सर .आप को तो नोबल प्राइज मिलना चाहिए . एक गधे को रोज मुर्गा बनाते हैं . 
(टीचर चिल्लाता है ..छात्र २ कोने में जा कर मुर्गा बन जाता है .)
टीचर :( छात्र १ से) .गृहकार्य दिखाओ . 
छात्र १ : सर वह कल मैं आर्ट के कॉम्पटीशन में भाग लेने चला गया था .
टीचर :कलाकार बनोगे .एम् ऍफ़ हुसैन बनोगे क्या .
काम नहीं करने का दंड तो मिलेगा ही .हाथ आगे करो . 
(छात्र १ आगे हाथ करता है .टीचर जोर जोर से मारता है .छात्र १ रोता हुआ छात्र २ के पास से गुजरता है ) 
छात्र २ :देखा पढ़ के कुछ फायदा हुआ क्या ? तुझे तो मेरे भी हिस्से की भी मार पड़ती है .
छात्र १ : तो क्या करून पढ़ाई न करून ? 
छात्र २ : जिस चीज का फायदा नहीं है उसे कर के क्या फायदा ?सिगरेट पीता है क्या ?
छात्र १ :नहीं 
छात्र २ :तो पी न .और हाँ इन छोटी बात से दुखी नहीं होने का .
दृश्य ४  
(दृश्य बदलता है थोडी देर में एक चक्कर लगा के दोनों छात्र फ़िर से बीच मैं आ जाते हैं )
छात्र १ :यार मेरे पास सिगरेट के लिए पैसे नहीं हैं .मेरा बाप साला बहुत मखीचूस है . 
छात्र २ : तो मैं हूँ न .चल आज से बाप की गोदी से कूद कर अपने पाँव पर खड़ा हो जा .
छात्र १ :तो क्या अभी तक मैं किसी दूसरे के पाँव पर खड़ा हूँ ? 
छात्र २:मेरा मतलब बाप को दिखा ठेंगा मैं तुझे रामभरोसे के ढाबे पर काम पर लगा देता हूँ . 
छात्र १ :घर पता चल गया तो ?
छात्र २:रोज स्कूल के लिए आना और काम करना ढाबे पर .आख़िर पढ़ के क्या करेगा ,कमाएगा ही न ?तो अभी से कमा . 
दृश्य ५
 
(दृश्य बदलता है .छात्र १ अपने पिता के साथ प्रवेश करता है )
पिता: पढ़ाई ठीक से नहीं करते ,प्री बोर्ड एग्जाम्स में मार्क्स इतने ख़राब क्यूँ हैं ?
छात्र १ :वह तबियत ठीक नहीं थी न पापा .
पिता :तो पहले से क्यूँ पढ़ाई नहीं की ?
छात्र १ :अरे वह पेपर ही फालतू था यादव सर ने स्टूडेंट्स से बदला लिया है .और पाठक सर ने भी . सारे स्टूडेंट्स के मार्क्स भी ऐसे ही हैं. 
पिता :ठीक है बोर्ड में कम से कम ९० % मार्क्स नहीं आए तो टांग तोड़ दूँगा . इंजीनियरिंग में दाखिला कैसे होगा ?मालूम भी है मैंने क्या क्या सपने पाल रखें हैं तुम्हारे लिए ? अगर तुम्हारा दाखिला इंजीनियरिंग में नहीं हुआ तो मेरी नाक कट जायेगी मगर आपको उससे क्या आप तो दिन भर फुटबॉल खेलिए या गली के आवारा लड़कों के साथ घूमिये . 
( बाप चला जाता है .दृश्य बदलता है )
दृश्य ६
 
पेपर वाला : बोर्ड के नतीजे घोषित ..बोर्ड के नतीजे घोषित ..२ रूपये -२ 
छात्र १ :(पेपर वाले से )भइया एक न्यूज़ पेपर देदो ...हे भगवान् मैं पास तो हो जाऊँगा न ?
छात्र २ :हाँ जरूर हो जाएगा .आल द बेस्ट !!
छात्र १ :अरे यार ..इस पेपर मैं तो मेरा नाम ही नहीं है ..
छात्र २ : ठीक से देख ..पढ़ाई नहीं की थी क्या ?
छात्र १ : नहीं यार... मैं फेल हो गया .मेरा क्या होगा .अब घर गया तो पापा मारेंगें .मैं घर नहीं जा सकता अब !
छात्र २ :तो किसने कहा की घर जा .चल कुछ देखते हैं हिम्मत रख सब ठीक हो जाएगा .  
(दोनों छात्र जाते हैं दृश्य बदलता है .लोग टीवी का ढांचा लेके अभिनयन करते हैं ) 
दृश्य ७
(टीवी एंकर के साथ कैमरा मैन है .टीवी पर सब न्यूज़ सुनते हैं .) 
टीवी एंकर :आज बरहंवी के नतीजे घोषित किए गए .हर बार की तरह इस बार भी लड़कियों ने लड़कों से बाजी मर ली है . 
कानपूर की ऋचा ने ९७ % के साथ प्रथम स्थान अर्जित किया है .परन्तु परीक्षा में ख़राब परिणामों से दुखी हो कर देश के 
विभिन्न भागों में २०० छात्रों ने मौत को गले लगा लिया है .आख़िर कौन हैं इसका जिम्मेदार .शिक्षा व्यवथा ,
छात्र की लापरवाही या अभिवावकों की अपनी संतान से अत्यधिक आशाएं? 
कानपूर से कैमरा मैन मनीष के साथ मैं सपना !!  
(गाना आरम्भ होता है ,तब तक सारे कलाकार पोस्टर ले के पीछे खड़े हो जाते हैं .)  
"टुटा टुटा एक परिंदा ऐसे टुटा, कि फिर जुड़ न पाया ! लूटा लूटा किसने उसको ऐसे लूटा ,कि फिर उड़ ना पाया !!"
समाप्त  
(लेखक को vinaytosh@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है .विनयतोष की अन्य रचनाओं के लिए www.vinaytosh.blogspot.com पर लाग करें )

मिलन का क्षण

अनबुझ प्यास प्रेम की आस मिलन का क्षण । प्यासी धरती कहीं दरकी तृषार्त मन । बादल घनघोर छाये चहुँ और आया सावन । बूंदें टपटप बने धार अब भीगे तनमन । तृप्त हुई देह मन मे भरा नेह प्रमुदित आनन

Sunday, February 8, 2009

आदत

हमारी बोलने की आदत से परेशां होते हो तुम और गुस्सा करके चले जाते हो कही आज देखो हम मौन है और हमारे आसपास बिखरी अनगिनत खामोशिया फिर भी तुम्हारी गुस्सा करने की अदा का इंतज़ार बाकि शायाद अपनी अपनी आदत की बात है .......

Wednesday, February 4, 2009

दरवाजे पर खड़ी खड़ी खड़ी

दरवाजे पर खड़ी खड़ी सजनी करे विचार फाल्गुन कैसे गुजरेगा जो नहीं आए भरतार। ---- फाल्गुन में मादक लगे जो ठंडी चले बयार बाट जोहती सजनी के मन में उमड़े प्यार। ---- साजन का मुख देख लूँ तो ठंडा हो उन्माद, "बरसों" हो गए मिले हुए रह रह आवे याद। ---- प्रेम का ऐसा बाण लगा रिस रिस आवे घाव साजन मेरे परदेसी बिखर गए सब चाव। ---- हार श्रंगार सब छूट गए मन में रही ना उमंग दिल पर लगती चोट है बंद करो ये चंग। ---- परदेसी बन भूल गया सौतन हो गई माया पता नहीं कब आयेंगें जर जर हो गई काया। ---- माया बिना ना काम चले ना प्रीत बिना संसार जी करता है उड़ जाऊँ छोड़ के ये घर बार। ---- बेदर्दी बालम बड़ा चिठ्ठी ना कोई तार एस एम एस भी नहीं आया कैसे निभेगा प्यार।

"एहसास"

"एहसास"
हर साँस मे जर्रा जर्रा पलता है कुछ, यूँ लगे साथ मेरे चलता है कुछ. सोच की गागर से निकल शब्द बन अधरों पे खामोशी से मचलता है कुछ. ये एहसास क्या ... तुम्हारा है प्रिये ??? जो मोम बनके मुझमे , बर्फ़ मानिंद ..... पिघलता है कुछ

Monday, February 2, 2009

रात भर यूं ही.........

कुछ भी कहो, पर.... रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो....... चाहता हूँ कि तुम प्यार ही जताते रहो, अपनी आंखो से तुम मुझे पुकारते रहो, कुछ भी कहो, पर.... रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो....... चुपके से हवा ने कुछ कहा शायाद .. या तुम्हारे आँचल ने कि कुछ आवाज़.. पता नही पर तुम गीत सुनाते रहो... रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो....... ये क्या हुआ , यादों ने दी कुछ हवा , कि आलाव के शोले भड़कने लगे , पता नही , पर तुम दिल को सुलगाते रहो रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो....... ये कैसी सनसनाहट है मेरे आसपास , या तुमने छेडा है मेरी जुल्फों को , पता नही पर तुम भभकते रहो.. रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो....... किसने की ये सरगोशी मेरे कानो में , या थी ये सरसराहट इन सूखे हुए पत्तों की, पता नही ,पर तुम गुनगुनाते रहो ; रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो....... ये कैसी चमक उभरी मेरे आसपास , या तुमने ली है ,एक खामोश अंगढाईं पता नही पर तुम मुस्कराते रहो; रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो....... कुछ भी कहो, पर.... रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......

Sunday, February 1, 2009

शमा को जलना और पिघलना होगा

किसी को महसूस हो अपनापन तो जज्बातों को दिल से निकलना होगा कामयाबी करनी है हासिल अंधेरों में शमा को जलना और पिघलना होगा तूफानों को पहचानना सिख लेना वक्त रहते हवाओं का रुख बदलना होगा फूलों में महक सजी रहती है हमेशा काँटों से उँगलियों को संभालना होगा

ख़याल

युही कुछ ख़याल आते जाते रहते है सच के करीब मगर उन में से कोई नही होता

सुरक्षा अस्त्र

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