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Sunday, February 21, 2010

सखियाँ खेलन को आई बन के सजना, मैं ना खेलूंगी तुम संग करो मोहे तंग ना। ---- साजन के रंग में रंगकर साजन की हो ली, तू तो हो गई री जोगन खेले ना होली। ---- घर घर धमाल मचाए सखियों की टोली, साजन परदेश बसा है कैसी ये होली।

Saturday, February 20, 2010

साजन का संग ना

सखियाँ रंगों में हो ली संग है सजना, मेरी होली तो हो ली साजन का संग ना। ---- रंगों में भीगी सखियाँ मुझसे यूँ बोली, साजन के संग बिना री काहे की होली। ---- हाथों में ले पिचकारी आई मेरी सखियाँ, साजन की राह निहारे मेरी सूनी अखियाँ ।

Friday, February 19, 2010

फाल्गुन में प्यारा लागे

फाल्गुन में प्यारा लागे मोहे मोरा सजना, उसके बिना री सखी काहे का सजना। ---- कानों में मिश्री घोले चंग का बजना, घुंघरू ना बजते देखो बिन मेरे सजना। ---- रंगों के इस मौसम में भाए कोई रंग ना, फाल्गुन बे रंग रहा री आये ना सजना।

Thursday, February 18, 2010

---- चुटकी---- पी ओ के वालो लौट के आओ, कश्मीरी पंडित भाड़ में जाओ।

Wednesday, February 17, 2010

देश पर नक्सली हमला

प.मिदनापूर में ईएफआर जवानों पर हुए नक्सली हमले ने एक बार फिर नक्सलियों की कथनी और करनी के बारे में देश को बता दिया है.......इस हमले के बाद कौन कह सकता है की नक्सली अपने हक की लड़ाई लड़ रहे है......अगर अपनी हक की लड़ाई इसी तरह से लड़ी जाती तो कई महापुरुषों का नाम आज इतिहास के पन्नों में दर्ज ना होता.......कई सालों पहले जब नक्सली अंदोलन शूरु हुआ तो उसकी सोच और मकसद कुछ और था......उस समय वह उस तबके की अवाज को उठाने के लिए शुरु हुआ जिनकी अवाज़ सुनने वाला कोई नहीं था......लेकिन आज का नक्सल आंदोलन पूरी तरह से अपनी दिशा से भटक चुका है.......कहते है नक्सल सरकार द्वारा शुरू किए गए ओपरेशन ग्रिन हंट से खिन्ने हुए है और इसी के चलते वह इस तरह की घटना को अंजाम दे रहे है........लेकिन क्या नक्सली कभी सोचते होंगे की आज इसकी नोबत क्यों आई की सरकार को उनके खिलाफ यह ओपरेशन शुरु करना पड़ा.....नक्सलियों की सोच चाहे जो भी हो लेकिन उनके इस तरह के हमले को किसी भी सूरत में बर्दाशत नहीं किया जा सकता......उन्होंने मारे गए जवानों के परिवार के लोगों को जो जख्म दिए है उन एक एक जख्म का हिसाब उनसे लिया जाना चाहिए.......मै चाहूंगा जो मेरे इस लेख को पड़े वो Indian Express(Wednesday Edition) की हेडलाइन स्टोरी जरुर पड़े जिसमें एक जवान ने मरने से पहले अपनी जिंदगी की कुछ बातें अपनी डायरी में लिखी है.......

Monday, February 15, 2010

पुणे के जख्म

पूणे में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर पूरे देश को झकझौर के रख दिया है.....खास कर पूणे हमले में मारे गए बंगाल के एक ही परिवार के दो बच्चों की कहानी दिल दहला देने वाली है........उस परिवार ने कभी सोचा भी नहीं होगा की उनके बच्चों को उस गुनाह की सज़ा मिलेगी जो उन्होंने कभी किया ही नही.....आनंदी और अंकिक दोनों की तस्वीरों को देखकर लगता है कि किस तरह वो दोनों अपनी जिंदगी को भरपूर तरीके से जी रहे थे....शायद कभी उनके मन में यह ख्याल तक नहीं आया होगा की कुछ दिनों में उनकी जिंदगी का सफर खत्म होने वाला है........लेकिन उनकी मौत ने मेरे मन में कई सवाल खड़े किए है.....जर्मन बेकरी में हुए विस्फोट में आनंदी और अंकिक इस लिए मारे गए क्योंकि वो वहां मौजूद थे.....अगर उनकी जगह मैं होता तो शायद आज मैं यह लिख भी नहीं पाता.....शाहरुख की फिल्म माय नेम इज खान में शाहरुख की अम्मी ने उन्हें एक बात सिखाई थी कि इस दुनिया में दो ही तरह के लोग होते है अच्छे और बुरे..........आनंदी और अंकिक अच्छे थे इसलिए आज हमारे साथ नहीं है और वह आतंक जो इस तरह के कामो को अंजाम देते है वो शायद यह भी भूल गए है की वो इंसान है..........

Saturday, February 13, 2010

उत्सव और उसका आक्रोश!!!

उत्सव का नाम पहले भी सुना है मैंने। टेनिस खिलाड़ी रुचिका गेहरोत्रा को आत्महत्या के लिए मजबूर कर देने वाले हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौड़ पर छोटे से चाकू से हमला करने वाला उत्सव ऐसा क्यों कर बैठा, कोई नहीं समझ पा रहा। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की फाइन आर्ट्स फैकल्टी में बीएफए का यह गोल्ड मेडलिस्ट सबको याद है। गोल्ड मेडलिस्ट है तो बताने की जरूरत नहीं कि एक्स्ट्रा आर्डिनरी परफॉर्मेंस की वजह से उसे सब जानते थे। उसके साथियों को याद है कि उत्सव में जबर्दस्त कांफिडेंस था। वह खुलकर कहता कि मेरा नेशनल स्कूल आफ डिजाइन में चयन होगा और ऐसा हुआ भी। यह इंस्टीट्यूट भी कला के छात्रों का एक सपना होता है, खासकर एप्लाइड आर्ट स्टूडेंट्स के लिए। उत्सव ने वर्ष 2006 में एनीमेशन फिल्म डिजाइन के ढाई वर्षीय स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया और वहां भी रंग जमा लिया। इस बात का उदाहरण उसकी शार्ट फिल्म चाय ब्रेक का प्रतिष्ठित अवार्ड के लिए चयन हो जाना है। मेधावी छात्र का इस तरह की वारदात कर बैठना चिंता पैदा करता है। मनो चिकित्सक मां प्रोफेसर इंदिरा शर्मा के अनुसार, वह डिप्रेशन का शिकार था और अहमदाबाद में चार माह से उसका इलाज चल रहा था। एसोसिएशन आफ साइकियाट्रिस्ट इन यूएस की एक रिपोर्ट कहती है कि कलाकारों में डिप्रेशन के मामलों की संख्या ज्यादा होती है, विशेषकर फाइन आर्ट्स से जुड़े लोगों में। यह भी सच है कि कलाकार अधिक संवेदनशील भी होते हैं। उत्सव भी कलाकार है। पिता प्रो. एसके शर्मा बताते हैं कि वह कुछ दिन से न्याय-अन्याय की ज्यादा बातें करने लगा था। हम भी उद्वेलित होते हैं और रुचिका प्रकरण तो है ही ऐसा। पुलिस का एक अफसर उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी को विदेश जाने से रोक लेता है। अभद्रता करता है और शिकायत न की जाए, इसके लिए परिवार पर जमकर दबाव बनाया जाता है। इससे ज्यादा बेशर्मी क्या होगी कि मुंह न खोलने देने के लिए भाई की गिरफ्तारी कर ली जाती है। आरोप लगाया जाता है कार चोरी का। यही नहीं, फिर हरियाणाभर में कार चोरी के मामलों में उसका नाम जोड़ा जाने लगता है। चंडीगढ़ के स्कूल से सिर्फ फीस लेट हो जाने पर रुचिका का नाम काट दिया जाता है। पिता और बाकी परिवार अघोषित नजरबंदी का शिकार बनता है और नतीजा, अभद्रता की शिकार चौदह साल की रुचिका आत्महत्या कर लेती है। चंद लाइनों में मैंने जो कहानी कहने की कोशिश की है, वास्तव में वह मन में आक्रोश का हजारों लाइनें पैदा कर देती है। एक अफसर और उसके सामने पूरे प्रदेश के पुलिस तंत्र का नतमस्तक हो जाना एवं नेताओं के साथ रिश्तों की बदौलत साथ ही उसे प्रोन्नति मिलते जाना, अकल्पनीय तो नहीं लेकिन शर्मनाक है। गण के इस तंत्र में गण ही कहीं गौण सा है और उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं। और तो और... पीड़ित परिवार को किसी तरह न्याय की उम्मीद बंधती है तो उसमें भी रोड़े डाल दिए जाते हैं। राठौड़ सजा सुनाए जाने के बाद भी आजाद है तो क्यों कोई उत्सव का आक्रोश न भड़के। बकौल प्रो. इंदिरा, उनके यहां कोई भी रुचिका के परिवार को नहीं जानता। ऐसे में उत्सव में जो आक्रोश पैदा हुआ, वह अन्याय की खबरें सुनकर हुआ। वह चंडीगढ़ में था, राठौड़ की पेशी और रुचिका कांड की खबरें वहां हवा में घुली हुई हैं तो वह कैसे बचता। जब पूरा देश प्रतिक्रिया में है तो चंडीगढ़ में तो यह स्थिति और भी तीव्र हो जाती है। जब आम मुजरिम को थर्ड डिग्री से नवाजने वाली पुलिस राठौड़ को किसी वीआईपी की तरह ट्रीट करे, जैसे वह अब भी उनका अफसर हो तो हिंदुस्तान में अपराधी के हिस्से आने वाली यह थर्ड डिग्री देने के लिए कोई उत्सव तो आएगा ही। वैसे, शुक्र अदा करने की बात यह है कि राठौड़ को सजा देने की तैयारी शुरू हुई है। उसकी पेंशन काटी जा रही है, हरियाणा के मुख्यमंत्री सख्त हैं। उत्सव उन भावनाओं का प्रतीक है जो रुचिका प्रकरण में हर आम भारतीय के मन में घुमड़ रही हैं लेकिन बाहर नहीं आ पा रहीं। उत्सव के साथ शायद कानून नहीं होगा लेकिन भीड़ है तमाम भारतवासियों की। एक मेधावी छात्र के एकाएक अपराधी बन जाने की वजह जो है, उससे तो वह कानून से भी क्षमा का हकदार है। बहरहाल, कोर्ट ने उसे सशर्त जमानत पर छोड़ने के आदेश दे दिए हैं। http://kalajagat.blogspot.com

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