skip to main |
skip to sidebar
नारी रंग
श्वेत नीला काला नारंगी सुर्ख अंबर
हर दिन हर पल बदले रंग अंबर
ऐसे ही रंग बदले नारी हर पल
परिवार के लिए ओढे शांत रंग
दुनिया से लड़े बन आग का रंग
पीया के लिए संवरे लगा सिंदूरी रंग
कभी बरसे बन घनश्याम रंग......
कीर्ती वैद्य
9 comments:
कीर्ति जी आपकी कविता पढ़ कर इस बात का एहसास होता है कि कहीं ना कहीं आप के अन्तर्मन में भी एख ऐसी नारी छिपी हुई है जो नारी के हर रंग को बखूबी जीना चाहती है और बाकी लोगो को भी जीना सिखाना चाहती है।
तुलिका सिंह
नारी शक्ति के बाद नारी रंग देखकर अच्छा लगा। सही भी है नारी के बिना इस संसार की कल्पना करना भी नामुमकिन है। तुलिका और आपकी रचना सभी साथियों को पसन्द आ रही है। उम्मीद है आपकी लेखनी के सभी रंग रंगकर्मी से जुड़े साथियों को लिखने की प्रेरणा देगें। क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ..........
रंगकर्मी परिवार
haanji tulika ji..aapney theek samjha..ase he rango ko mein bhi odhti hun...kabhi ghar/office/dosto/kavi mitro/bacho ke saath
Parvez ji....
shukriya apkey abnandan aur shabdo ke liye....
mein hamesha RANGKARMI ke saath judi rahungi
बहुत अच्छी कविता है, इसी सन्दर्भ
शक्ति-अर्चना भी देखें.
बिल्कुल सच लिखा है। नारी बहुत adjustable होती है। "पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमें मिलाएँ हो जाए उस जैसा" या यों भी कह सकते हैं न "गिरगिट की तरह" ?????
Very good poem,small yet powelful
New Year Gifts Online
Flowers for Valentine Day
Post a Comment