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Friday, December 28, 2007

जंग लगी जम्हूरियत

घर नया खरीदा है, रोशनी नहीं हैं यारों, वतन हो चुका आजाद, हर शख्स यहाँ लुटेरा है यारों। बदनसीबी, गरीबी से शिकस्त होती है हर बार, गरीब हो तुम गरीबी में ही रहो यारों । कल सुना है की पटरी पर कोई शख्स कटा है, दुनियावी जहमतों से वो आजाद हो गया यारों । इन इंसानों की निगाहों में कुछ कमीनापन सा दिखता है, घर में बहन बेटी हो तो सम्हालों यारों । हिंद को बदलनें की बात कर रहे थे जो हरामखोर, विदेशी सरज़मीं पर घर खरीद लिया है यारों । परदा किये हुए अपनी माँ को देखा है हर बार, सड़ चुकी जो परम्पराऐं, बदलो नया वक्त है यारों । नलों में पानी, खंबों में बिजली, पेट मे खाना नहीं, सटीक देश है, गुजारिश है, जहां मिले नेता, सालों को पटक पटक के मारो यारों । अनुराग अमिताभ

6 comments:

Smriti Dubey said...

सर,
आपके द्वारा लिखित जंग लगी जम्हूरिअत ने हमें बावस्ता कराया है व्यवस्था की सच्चाई से,जो पढ़ने में भले ही चुभे लेकिन उसमें वो ताकत है जो आपको सोचने पर मजबूर करती हैं कि समय आ चुका है कुछ करने का।
इस शेर की पंक्तियां झूठी जम्हूरियत को केवल बयां या महसूस ही नहीं कर रही हैं बल्कि पढने वाले तक उस मर्म को बखूबी पहुँचा भी रही हैं।
पहले देश बंटा फिर इंसान आखिर इस जंग लगी जम्हूरित को हम कब तक ढोते रहेंगे।
सर इस प्रश्न को हम पहुँचाने का शक्रिया।

स्मृति दुबे,सीएनईबी

Parvez Sagar said...

अनुराग ने अपनी रचना के ज़रीये एक ऐसी सच्चाई को शब्दों मे ढाल दिया जिससे हम सभी हरदम जो-चार होते है। जम्हुरियत का मतलब सिर्फ कहने या लिखने से ही नही बल्कि सामाजिकतौर दिखाई देना चाहिये। लेकिन हकीकत मे ऐसा नही है। अगर सपनों की दुनिया से बाहर आकर देखें तो अनुराग की रचना हकीकत की शक्ल मे आपके सामने खड़ी नज़र आती है। ज़रुरत इस बात की है कि अनुराग की तरह ही हम सभी को इस बारे मे सोचना होगा। नही तो जंग लगी ये जम्हुरियत इस हाल से भी बदतर हो जायेगी। हमारे साथी अनुराग को बधाई इस पोस्ट के लिये। सभी साथियों से उम्मीद है कि वो सब अपनी लेखनी के दम पर सच को उजागर करते रहेगें। क्योंकि आँखे बदं कर लेने से नज़ारे नही बदलते............
परवेज़ सागर

शशिश्रीकान्‍त अवस्‍थी said...

अनुराग जी,
समाज को समाज का चेहरा दिखाने के लियें धन्‍यवाद । आपकी उपरोक्त रचना भडास पर डालना चा‍हता हु आप उस पर डाल दे अथवा हमे इसकी अनुमति प्रदान करें जिससे कि सभी भड़ासी सी इसे पढ कर अपनी प्रतिक्रिया दे सकें । आपको पुन: धन्‍यवाद ।

शशिश्रीकान्‍त अवस्‍थी said...

अनुराग जी,
समाज को समाज का चेहरा दिखाने के लियें धन्‍यवाद । आपकी उपरोक्त रचना भडास पर डालना चा‍हता हु आप उस पर डाल दे अथवा हमे इसकी अनुमति प्रदान करें जिससे कि सभी भड़ासी सी इसे पढ कर अपनी प्रतिक्रिया दे सकें । आपको पुन: धन्‍यवाद ।
कानपुर से
शशिकान्‍त अवस्‍थी

shuklapurnendu said...

amitabh sir,
now its time to think about our democracy.of the people,for the people,bye the people well known definition by great linkon.but now whats the reality.of the capitalist,for the capitalist and bye the capitalist this is definition of present democracy.leaders are working as a agent for capiatalist.and in media too its more important that who is in forbe's billionaires club from india rather than whats the reason for continuous farmer's sucide in vidarbha.
sir now we have need a revolution with common people's participation to change this so called democracy.
we need a democracy that will be for 99% people not for the 1% people.
jamhooriyat me sirf jung hi nahi lugi hai bulki ab to ye sud chuki hai is lie isko badla jaana jaroori ho jata hai.
purnendu
c voter

satyandra yadav said...

sir, aapne apne lekh me itna energy dal diya hai ki yadi yah apne room me aa jaye to ... kya nahi ho sakata... aapne ek lekh 'inklab' likha tha... vah bhi ek sachai hia... app ajj ki vaswikta ko ukera hai .... sir bas jaroorat hai ki esko jinda rakha jaye .... jo jahan mile wahi mara jaye... ye mar physical se jyada mansik tarchar kiya jay....

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