Saturday, December 1, 2007
तुलसी जी का सपना
महकवि तुलसीदास ने,
तेज तेज कदमों से जाते हुए
बार बार सोने की अंगूठी सहलाते हुए ,
भगवान राम को देखा
तुलसी ने श्रद्धा से माथा टेका
और बोले , प्रभु सुबह सुबह किधर
राम बोले भक्त प्रवर
त्रेता का इतिहास कलियुग में दोहरा रहा हूं
सरयू में जल समाधी लेने जा रहा हूं
बड़ी मुश्किल से नंबर लगा है
तुलसी राम से बोले प्रभु
आप तो वी आई पी है
आपको भी डूबने केलिए नंबर लगाना पड़ा
राम को रहस्य बताना पड़ा
वो बोले वत्स
वो रामराज्य था ये प्रजातंत्र है
रिश्वत इसका मूलमंत्र है
अब तो केवट भी चरण नहीं पखारता
मैं कहता हूं भइया मैं राम हूं
तो कहता है मैं किसी राम नाम को नहीं जानता
आत्महत्या करना है तो तो जल्दी बताइये
अंगूठी के साथ साथ सौ रुपए भी लूंगा
तब कहीं डूबने की परमिशन दूंगा
तुलसी अंगूठी का जुगाड़ तो मैने कर लिया
सौ रुपए उधार दे सकता है तू
तुलसी बोले आप भी कमाल करते है प्रभु
सो रुपए होते तो रत्नावली मायके जाती
रामायण के बदले महाभारत नहीं लिखवाती।
तुलिका सिंह CNEB
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
बहुत खूब। मुझे यकीन नही होता कि हमारे साथ ही काम करने वाली तुलिका इतनी अच्छी रचनाऐ भी लिखती है। मै कहना चाहुगीं कि तुलिका तुम छुपी रुस्तम हो पर हो कमाल की। बस इसी तरह से लिखती रहो। शुभकामनाओं सहित
आरती सुमन
वाह भई वाह...हमारे लोकतंत्र की कड़वी हक़ीकत को थोड़े से लफ्जों में बयां कर दिया है आपने। सचमुच, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार ने समूची व्यवस्था को हैक कर लिया है। मैं बस इतना ही कहूंगा कि सिस्टम की बुराइयों पर आप इसी तरह शब्दबाण चलाते रहिए। अपनी बेबाक राय रखने के लिए ये अच्छा मंच है। बधाई......
अमित मिश्रा, सीएनईबी, दिल्ली
Gifts for Birthday
Post a Comment