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Tuesday, July 19, 2011

दुख्तक

रात गहरी और काली
मेरे राहों की तरह
कहीं कुछ सूझता ही नही ।

इस शहर में मौत का तांडव
कब हो जायेगा
कोई जानता ही नही ।

हम निकम्मे, बेईमान
किस को हम दोषी कहें
सब हमारा ही किया धरा ।

जिस जनता की रगों में
खून बहता ही नही
उसका जीना मरना क्या ।

छटपटाती जिंदगी
और बेरहम ये मौत भी
आज शरमिंदा है ।

मोटी चमडी, काले चश्मे
उजले लिबास, काली करतूतें
हमारे नेता हैं ये ।

सुरक्षा अस्त्र

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