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Sunday, May 15, 2011

अमरीका की तानाशाही और इराक का दर्द है “द लॉस्ट सेल्यूट”

इराकी पत्रकार मुंतज़िर अल ज़ैदी का जूता आज तक लोग नही भूले हैं। दरअसल वो जूता इतना खास बन गया था कि दुनिया के कौने कौने मे उस जूते के चर्चे आम हो गये। इराकी जनता के गुस्से का इज़हार करने के लिये अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश पर फेंका गया वो जूता भारत मे भी कई लोगों के लिये प्रेरणा बन गया।

पूरी दुनिया के लोग आज तक ये जानने को उत्सुक रहते हैं कि आखिर मुंतज़िर अल ज़ैदी को जूता फेंकने की ज़रुरत क्यों पड़ी? इसी बात को ध्यान मे रखकर जाने-माने फिल्म निर्माता निर्देशक महेश भट्ट ने इस संवेदनशील विषय को लोगों के सामने रखने के लिये रंगमंच की दुनिया में कदम रख दिये।

महेश भट्ट ने मुंतज़िर अल ज़ैदी की किताब द लॉस्ट सेल्यूट टू प्रेसीडेन्ट बुश पर आधारित एक नाटक की रचना कर डाली। शनिवार और रविवार की शाम राजधानी दिल्ली के श्रीराम सेन्टर में महेश भट्ट के नाटक द लॉस्ट सेल्यूट का मंचन किया गया। नाटक मे दर्शाया गया कि किस तरह से अमरीका ने शान्ति के नाम पर छोटे से मगर सम्पन्न राष्ट्र इराक को बर्बाद किया। किस तरह से आंतक और जैविक हथियारों के बहाने बगदाद शहर पर आग बरसाई गयी। किस तरह से अमरीकी सेना ने मासूम बच्चों और औरतों पर कहर बरपाया। यहां तक कि इराक में अस्पतालों को जंग के दौरान बमों के हवाले कर दिया गया। ये नाटक उस आम आदमी की कहानी है जो अपनी आँखों से अपने घर, शहर और वतन की बर्बादी देखता है और जब उसकी हिम्मत जवाब दे जाती है तो वो कुछ कर गुज़रने की ठान लेता है। दरअसल ये नाटक अमरीका की तानाशाही को लोगों के सामने रखता है जो किसी भी मुल्क पर किसी भी बहाने से हमला करने की फिराक मे रहता है। या फिर ये कहें कि दुनिया भर के मुल्कों को डराने की कोशिश करता रहता है। ताकि वो अपनी जायज़ और नाजायज़ नीतियों को दुनिया पर थोप सके।

अस्मिता थियेटर ग्रुप के कलाकारों ने करीब एक घण्टे की इस प्रस्तुति में दर्शकों के सामने मुंतज़िर अल ज़ैदी की पूरी कहानी बंया की। अभिनय की अगर बात की जाये तो नाटक का मुख्य किरदार महेश भट्ट की अगली फिल्म में बतौर नायक एन्ट्री करने वाले इमरान जाहिद ने अदा किया। पूरे नाटक की जान मुंतज़िर अल ज़ैदी का ये किरदार ही था। लेकिन इमरान जाहिद यहां अपने अभिनय की छाप नही छोड़ पाये। नाटक मे कई जगहों पर अन्य किरदार इमरान पर हावी दिखाई दिये। आवाज़ और अभिनय के मामले में इमरान अपने किरदार मे आत्म विश्वास भरने मे नाकाम रहे तो नाटक के सूत्रधार की शक्ल मे विरेन बसोया ने दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया। जार्ज वी बुश का किरदार निभाने वाले ईश्वाक सिंह ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया। इन दोनों की संवाद अदायगी काबिल-ए-तारीफ थी। शिल्पी मारवाह ने अपने छोटे पर सशक्त किरदार को जीवंत बनाने का सफल प्रयास किया। इसके अलावा राहुल खन्ना, हिमांशु, सूरज सिंह, गौरव मिश्रा, पंकज दत्ता, शिव चौहान, रंजीत चौहान और मलय गर्ग ने  संवाददाताओं की भूमिका मे अपनी आवाज़ को दूर तक पंहुचाया।

नाटक का संगीत और गायन पक्ष कमज़ोर दिखाई दिया। जिसकी ज़िम्मेदारी संगीता गौर को दी गयी थी। पार्श्व संगीत की कमी तो नाटक में शुरु से ही दिख रही थी जबकि पार्श्व संगीत के लिये नाटक मे काफी गुंजाइश थी। कोरस ने गीतों के साथ कोई न्याय नही किया। यहां तक अभिनेताओं और कोरस के बीच तालमेल की कमी लगातार दर्शकों को खलती रही। कई जगहों पर गीतों मे कोरस खुद ही भटक गया। यहां तक फैज़ अहमद, साहिर लुधियानवी और हबीब जलीब के जनगीत दर्शकों को समझ मे ही नही आये।

नाटक के निर्देशक अरविन्द गौर लगातार कई सालों से रंगमंच कर रहे हैं। अरविन्द सामाजिक और रानीतिक नाटकों के लिये जाने जाते हैं। इसलिये उनके निर्देशन मे इस नाटक से उम्मीदें ज़्यादा थी। एक माह की रिहर्सल के बाद भी वो मुख्य किरदार निभाने वाले इमरान ज़ाहिद को पूरी तरह तैयार नही कर पाये। जबकि अन्य किरदार दर्शकों पर छाप छोड़ने मे कामयाब रहे।

नाटक की स्क्रिप्ट और संवाद दर्शकों को पसन्द आये। लखनऊ के राजेश कुमार  मुंतज़िर अल ज़ैदी की किताब से ली गयी कहानी को नाटक बनाने मे सफल दिखाई दिये। मैकअप पक्ष को श्रीकान्त वर्मा ने संवारा। नाटक मे लाइटिंग पक्ष भी अच्छा रहा।

मंचन के दौरान खासतौर पर इराकी टीवी पत्रकार मुंतज़िर अल ज़ैदी दिल्ली आये थे। उन्होने नाटक देखने के बाद कहा कि इस नाटक को देखकर उनकी वो सारी यादें ताज़ा हो गयी जो उनके साथ गुज़रा। उन्होने गांधी जी की सराहना करते हुये कहा कि ये देश बहुत सौभाग्यशाली है क्योंकि गांधी जी यहां रहा करते थे। जिन्होने उन्हे भी सच के लिये लड़ने की प्रेरणा दी।

नाटक के निर्माता महेश भट्ट ने कहा कि हम सभी को अन्याय के खिलाफ चुप रहने के बजाय आवाज़ उठानी चाहिये। जब तक हम आवाज़ बुलन्द नही करेगें तब तक हमारी सुनवाई नही होगी। सब साथ आईये और अपने हक के लिये, सच के लिये आवाज़ बुलन्द किजीये।

इस दौरान अभिनेत्री पूजा भट्ट, सांसद जया प्रदा, अभिनेता डीनो मारियो, सन्दीप कपूर आदि मौजूद रहे।

Wednesday, May 11, 2011

सेना के युद्धाभ्यास से राजस्थान का रेगिस्तान गौरवान्वित हो गया। अपने देश की सेना का युद्ध कौशल देख रेगिस्तानी मिट्टी का कण कण उत्साहित है। वह अपने सैनिकों का माथा चूम रहा है। माथे पर तिलक लगा रहा है। हजारों सैनिक इस रेगिस्तानी मिट्टी तो अपने पैरो से रोंद रहे है। मगर मिट्टी है कि इसको अपना अहोभाग जान हर सैनिक के चरण स्पर्श कर रही है। क्योंकि जो मिट्टी आज वहाँ है उसको फिर मौका नहीं मिलेगा अपने इन जांबाजों के चरण छूने का। उसे तो उड़ जाना है। आँधी बनकर। मीडिया इस अभ्यास से रेगिस्तान के थर्राने की बात करता है। कोई थर्राए तो तब ना जब कोई दुश्मन हो। यहाँ तो अपनी सेना अपना क्षमता दिखा रही है। बता रही है, चिंता मत करो, किसी से मत डरो। सेना देश की सुरक्षा बहुत अच्छी तरह से कर सकती है। तो फिर यह थर्राने की नहीं गौरवान्वित होने की बात है। आओ रेगिस्तान की मिट्टी के साथ हमभी गर्व करे अपनी सेना पर। उनको बधाई दें,उनके रण कौशल के लिए। जयहिंद ।

Tuesday, May 3, 2011

श्रीगंगानगरविनाबा बस्ती मे,सिंधियों के मंदिर के थोड़ा आगे। सुबह एक घर के सामने टांय टांय करते तोतों को देख हैरत हो सकती है। कई दर्जन तोते एक साथ। हमें नहीं बताया गया होता तो हमें भी हैरानी होती। परंतु हम तो आए ही इसलिए थे की उन तोतों को देख सकें। जिस मकान के सामने तोते आए थे वह है आयकर अधिकारी अशोक किंगर का। किंगर दंपती चबूतरे पर बैठे थे ओर तोते ले रहे थे अपना दाना पानी। किंगर दंपती सुबह सुबह सबसे पहले इन तोतों से ही मिलते हैं। साढ़े पाँच बजे तोतों के लिए मूँगफली के दाने रख दिये जाते हैं। तोते आ चुके हैं। पहले एक तोता आएगा। दाना चुगेगा। बिजली की तार पर जा बैठेगा। उसके बाद भीड़ मे से आठ आठ,दस-दस तोते बारी बारी से आते हैं। चुग्गा लेते हैं। जा बैठते हैं। कोई हाय तौबा नहीं। लड़ाई नहीं। लगभग एक घंटे तक तोतों का यह सह भोज चलता है। किंगर दंपती अपनी दिनचर्या मे व्यस्त हो जाते हैं और तोते उड़ जाते हैं कल फिर आने के लिए। यह कर्म लंबे समय से चल रहा है। किसी समय अशोक किंगर कबूतरों के लिए ज्वार डालने जाया करते थे। जहां जाते थे वहाँ कुछ मनमाफिक नहीं लगा तो घर की चारदीवारी पर इंतजाम किया। एक दिन किसी ने मूँगफली के दानों के बारे मे बताया। वहाँ रखे। कई दिन तो पाँच सात तोते ही आए। फिर इनकी संख्या बढ़ती चली गई। अब तो कभी कभी सौ तोते भी वहाँ दिखाई पड़ जाते हैं। जब किंगर दंपती यहाँ नहीं होते तो तोतों के भोजन की ज़िम्मेदारी किसी को सौंप का जाते हैं। एक बार शुरू हुआ यह सिलसिला जारी है। संभव है आईटीओ के रूप मे श्री किंगर की पहचान कुछ अलग प्रकार की हो परंतु पक्षियों के प्रति ऐसा प्रेम बहुत कम देखने को मिलता है। श्रीगंगानगर मे जहां जहां पक्षियों के लिए ज्वार,बाजरा डाला जाता है वहाँ इतनी संख्या में कोई पक्षी दिखाई नहीं दिया। एक घर मे इतनी संख्या मे तोतों का आना बहुत बड़ी बात है। ऐसा ही दृश्य मरघट मे देखने को मिला था। सुबह और दोपहर के बीच का समय था। किसी के अंतिम संस्कार मे शामिल होने गया था। एक आदमी छोटा सा थैला लेकर छत पर गया। पीछे मैं भी। उसके छत पर पहुँचते ही बड़ी संख्या मे कौए वहाँ मंडराने लगे। उसने थैले मे रोटी निकाली और कौए को डाली । कुछ ही क्षणों मे वहाँ और कौए आ गए। काफी देर तक वहाँ कौए भोजन करते रहे। ये दोनों कभी किसी अखबार मे नहीं गए अपनी खबर छपवाने। उनको तो यह पढ़कर मालूम होगा कि हमारे तोतों,कौए की खबर आई है। पहले एक शेर फिर एसएमएस। आ मेरे यार फिर इक बार गले लग जा,फिर कभी देखेंगे क्या लेना है क्या देना है। राजेश अरोड़ा का एसएमएसअध्यापकहिन्दी की पहली साइलेंट फिल्म

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