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Thursday, December 6, 2007

बेकार हाथ

बगल में एक पोटली दबाए एक सिपाही थाने में घुसा , सहसा थानेदार को सामने पाकर सैल्यूट मारा, थानेदार नेपोटली की तरफ निहारा सैल्यूट के झटके में पोटली भिंच गई औऱ उसमें से एक गाढ़ी सी कथई बूंद रिस गई थानेदार ने पूछा........... ये पोटली में से क्या टपक रहा है ... क्या कहीं से शरबत की बोतले मार कर आ रहा है... सिपाही हड़बड़ाया हूजुर इसमें शरबत नहीं है.... शरबत नहीं है..... तो घबराता क्यों हैं , हद है शरबत नहीं है तो क्या शहद है ...... सिपाही कांपा सर शहद भी नहीं है इसमें से तो कोई औऱ ही चीज बही है। और ही चीज तो खून है क्या ,अबे जल्दी बता क्या किसी मुर्गे की गर्दन मरोड़ ,या किसी मेमने की टांग तोड़ दी। अगर ऐसा है तो बहुत अच्छा है ,पकाएंगे , हम भी खाएंगे , तुझे भी खिलाएंगे । सिपाही घिघियाया..... सर न पका सकता हूं न खा सकता हूं, मैं तो बस आपको दिखा सकता हूं इतना कह कर सिपाही ने मेज पर पोटली खोली देखते ही थानेदार की आत्मा डोली पोटली से निकले ,किसी नौजवान के दो कटे हुए हाथ थानेदार ने पूछा बता क्या है बात .... यह क्या क्लेश है । सिपाही बोला हुजूर.... रेलने लाइन एक्सीडेंट का केस है । एक्सीडेंट का केस है तो यहां क्यो लाया है ....... और २० परसेंट बॉडी लाया है 80परसेंट कहां छोड़ आया है । सिपाही ने कहा माई बाप ,यब बंदा इसीलिए तो शर्मिंदा है , क्योंकी 80परसेंट बॉडी तो जिंदा है। पूरी लाश होती तो यहां क्यों लाता ,वहीं उसका पंचनामा न बनाता। लेकिन गजब बहुत बड़ा हो गया, वह तो हाथ कटवा के खड़ा हो गया रेल गुजर गयी तो मैं दौड़ा वह तना था मानिंद-ए-हथौड़ा मुझे देखकर मुस्कुराने लगा , और अपनी ठूंठ बाहों को हिला हिला कर बताने लगा ले जा ले जा ये फालतू है,बेकार है और बुलाले कहां पत्रकार है मैं उन्हें बताउंगा,कि काट दिए किसलिए..... इसलिए कि मैने झेला है भूख और गरीब का एक लंबा सिलसिला... पंद्रह वर्ष हो गए इन हाथो को कोई काम नहीं मिला हां इसलिए......... इसलिए मैने सोचा कि फालतू है इन्हें काट दूं और इस सोये हुए जनतंत्र के आलसी पत्रकारो को लिखने के लिए एक प्लाट दूं। प्लाट दूं कि इन कटे हुए हाथों में,पंद्रह साल से रोजी रोटी की तलाश है आदमी जिंदा है और ये उसकी तलाश की लाश है इसे उठा ले ॥ अरे इन दोनो हाथो को उठा ले ..... कटवा के मैं तो जिंदा हूं तू क्यों मर गया ..... हूजूर इतना सुनकर मैं तो डर गया। जिन्न है या भूत मैने किसी तरह अपने आपको साधा हाथो को झटके से उठाया पोटली में बांधा और यहां चला आया ,हुजूर अब मुझे न भेजे , इन हाथो को भी अब आप ही सहेजे । थानेदार चकरा गया , शायद कटे हाथ देखकर घबरा गया बोला इन्हें मेडिकल कॉलेज ले जा, लड़के इन्हें देखकर स्टडी करेंगे , इसके बाद पता नहीं क्या हुआ लेकिन घटना ने मन को छुआ। अरे उस पढ़े लिखे नौजवान ने अपने हाथो को खो दिया और सच कहती हूं कि अख़बार में यह ख़बर पढ़ कर मैं रो दी । सोचने लगी कि इसे पढ़ कर तथाकथित बड़े लोग शर्म से क्यों नहीं गड़ गये देखिए आज एक पेट के लिए दो हाथ भी कम पड़ गए। वह उकता गया झूठे वादों ,झूठी बातों से वरना क्या नहीं कर सकता था ॥ अपने हाथों से । वह इन्हीं हाथओ से किसी मकान का नक्शा बना सकता था । हाथ में बंदुक थाम कर ,देश को सुरक्षा दिला सकता था । इन हाथों से वह कोई सड़क बना सकता था ,क्रेन से सामान चढ़ सकता था और तो और ब्लैक बोर्ड पर ह से हाथ लिखकर बच्चों को पढ़ा सकता था । मैं सोचती हूं , इन्हीं हाथो से उसने बचपन में तिमाही,छमाही सलाना परिक्षाएं दी होंगी मां ने पास होने की दुआएं दी होंगी इन्ही हाथों में डिग्रिया सहेजी होंगी ,इन्हीं हाथों से अर्जिया भेजी होगीं और अगर काम पा जाता तो वह नहूता इन्हीं हाथों से मां के पाव भी छूता खुशी से इन हाथो से ढपली बजाता और किसी खास रात को इन्हीं हाथों से ,दुल्हन का घूंघट उठाता इन्हीं हाथों से झुनझूना बजाकर बेटी को खिलाता । तुने तो काट लिए अपने हाथ लेकिन तू कायर नहीं है कायर तो तब होता जब समूचा कट जाता और देश के रास्ते से, हमेशा हमेशा को हट जाता । सरदार भगत सिंह ने ,यह बताने के लिए कि देश में गुलामी है पर्चे बांटे और तूने बेरोजगारी है ,यह बताने के लिए हाथ काटे बड़ी बात बोलने का तो मुझमें दम नहीं है लेकिन तू किसी शहीद से कम नहीं है । तुलिका सिंह.... सीएनइबी

10 comments:

हरिराम said...

वाह! क्या गजब की परिकल्पना की है ज्वलन्त समस्या के उपस्थापन की। अत्यन्त प्रभावशाली! इस समस्या के कुछ समाधान यहाँ दिए गए हैं।

Dipti said...

देश के हाल और मीडिया के हालात पर सटीक टिप्पणी ।

दीप्ति।

alok said...

dil ko choo gai ye kavita...na na karte ansu aa he gaye....(...ma ne dua de hogi....)

anek sadhuwad is kavita ke liye...likte raheye.

पारुल "पुखराज" said...

o god..kya ye sirf ek kavitaa hai?
aapkey bhaav ...mun chuu gaye..aabhaar

Keerti Vaidya said...

supereb

Sak's said...

Awesome thoughts Tulika. Really heart touching.

Hats Off to you.

regards,
Saket Jain.

Unknown said...

hi tuli!

kya gazab dhaa rahi hai yaar ! sach sirf sach likha aur kya kahu ab mere paas to is umda, bebak per kuch unkahi daastan ki badai ke liye koi shabd nahi hai. kavita keh is kriti ko mai limited nahi ker sakti. agar tum permission do to kya mai tumhari is kriti ko kisi magzine ke liye tumhari taraf se refrer ker du...
take care..

Ankit Mathur said...
This comment has been removed by the author.
Ankit Mathur said...

Ma'am, Firstly when I saw your post
I simply overlooked it, thinking
its another poetical expression
of probably some kind of a love
triangle, or may be something, which is related to immediate
socio political scenario.
But today i got this opportunity
to go through it thoroughly,
I discovered that there are so many
sattirical comments hidden in your expression which actually depicts our so called modern society which claims to be civilized beyond any
boundaries and limits.
This simple and yet very
serious desrtiption of a particular
situation is really touching
and somewhat mind blowing.
Kudos to you...
Ankit Mathur

Daisy said...

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