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Friday, February 20, 2009

दूरियाँ

दूरियाँ बहुत है न हम दोनों में जानते है रोज रात चाँद चुपके से रोता है उसके अश्को की चाँदनी हमारे हथेली पर सूखती है .........

Sunday, February 8, 2009

आदत

हमारी बोलने की आदत से परेशां होते हो तुम और गुस्सा करके चले जाते हो कही आज देखो हम मौन है और हमारे आसपास बिखरी अनगिनत खामोशिया फिर भी तुम्हारी गुस्सा करने की अदा का इंतज़ार बाकि शायाद अपनी अपनी आदत की बात है .......

Sunday, February 1, 2009

शमा को जलना और पिघलना होगा

किसी को महसूस हो अपनापन तो जज्बातों को दिल से निकलना होगा कामयाबी करनी है हासिल अंधेरों में शमा को जलना और पिघलना होगा तूफानों को पहचानना सिख लेना वक्त रहते हवाओं का रुख बदलना होगा फूलों में महक सजी रहती है हमेशा काँटों से उँगलियों को संभालना होगा

ख़याल

युही कुछ ख़याल आते जाते रहते है सच के करीब मगर उन में से कोई नही होता

Sunday, December 7, 2008

वो फिर न कभी हमराह हुआ

अरसा बिता तुम्हे देखा नही याद आए मगर तुम बहुत पल पल आवाज़ देकर भी तुम क्यूँ नही आते ? रूठने की कोई वजह तो हो इंतज़ार किया था उस दिन तुम्हारा शायद वक्त की अफरा तफरी हुयी अब मिओगे जहा ऐसी कोई जगह तो हो एक क्षण में बदल जाती ज़िन्दगी हर पल का दिल मोहताज हुआ जो छुटा पल पीछे इंसान के हाथ से वो फिर न कभी हमराह हुआ

Thursday, November 27, 2008

इश्क की लत

कहते है आदते बदली जा सकती है जो कोई जिद्द पे उतर आए ये नामुमकिन है एक बार गर किसी को इश्क की लत लग जाऐ

Wednesday, January 16, 2008

करके मोहोब्बत हमसे

दूवायें दे कितनी ,आपने वो काम किया है अपने साथ साथ हमारा भी नाम किया है करके आपने मोहोब्बत हमसे आसमान का चाँद बना दिया है पहले तो हमे कोई पहचानता भी न था जिस गली से भी गुज़रे अब , उसका मेहमान बना दिया है ताजमहल पर लगाई है तस्वीर एक और नया अरमान दिया है कैसे शुकराना अदा करे हम आपने हमे इतना जो मान दिया है

Tuesday, January 8, 2008

एहमियत

एहमियत खुद कि एहमियत पता न थी कांच का टुकडा समझते रहे तराश कर तुमने हमे नायब हिरा बना दिया

Sunday, January 6, 2008

देखिए आप हमे चन्दा ना कहलाये

देखिए आप हमे चन्दा ना कहलाये ये सुनकर आज कल हमसे पहले वो आसमान का चाँद ही शरमाये जो लफ्जे तारीफ आप हमारी करते हो चाँद उनसे अपना दिल है बहलाए शाम ढलते तुरंत ही प्रतीक्षा करता ताकि आप उसे सबसे पहले नज़र आये इसे जलन कहे या और कुछ पता नही हम अपने दीवाने मन् को कैसे समझाए हम इस उलझन में बावरे से फिरते चाँद आपको हमसे कही दूर न ले जाये .

Friday, January 4, 2008

आस

रुके थे कभी ज़िंदगी की राहो पर राह देखी थी तुम्हारी हर दिन,हर रात हर लम्हा,हर घड़ी बेसुद से खड़े रहे हर आने जाने वाले को पूछा, कही उन्हे तू नज़र आया किसीने देखा हो तेरा साया किसी को पता हो अगर तुझ तक पहुँचे जो डगर पर कोई जवाब नही एक हमारे सिवा किसी को तू याद नही तेरी तलाश में आख़िर हम खुद चल दिए इस गली से उस गली मुसाफिर बन लिए आज तक चल ही रहे है बस एक उमिद में के किसी मोड़ पर शायद तुम नज़र आओ फिर दुबारा जमी पर ही तुम हमे मिल जाओ…………

Thursday, January 3, 2008

वही पलाश के फूल लाना तुम

वही पलाश के फूल लाना तुम चले जो कभी लहराती हवाये काया को मृदुसी छुकर जाये हमारी छुअन का आभास कराये हमारी याद दिल को सताए बिन बुलाये पास चले आना तुम जो हमारे प्यार के गवाह सदा है साथ वही पलाश के फूल लाना तुम | कभी जो बहारों का मौसम आये रंगो से सारी अवनी सज जाये हमारी ख़ुशबू का आभास जताए हमसे मिलन को तरसाए याद कर हमे यूही मुस्कुराना तुम जो हमारे साथ महके सदा है साथ वही पलाश के फूल लाना तुम | कभी जो पुकारे बेसुद घटाए प्यार की बुन्दो को बरसाए हमारी बाहो का आभास कराए हमारी तन्हाई और बढ़ाए प्यार की सुरीली मेहफ़ील सजाना तुम जो हमारे संग गाते सदा है साथ वही पलाश के फूल लाना तुम | कभी जो नभ पर चाँद आये अपनी शीतल चाँदनी बिखराये हमारे अक्स का आभास कराए हमे देखने जिया मचल जाये पलको में अपनी हमे बसाना तुम जो हमारे साथ रौशन सदा है साथ वही पलाश के फूल लाना तुम |

ख्वाहिश

मन के झरोके से झाकती और उठती ख्वाहिशो की छोटी लहरें हर दिन नया जनम लेकर आती है देखती है ख्वाब संपूर्ण होने का तितली सी बनती चंचल पतंग बन आसमान में करती हलचल कोई ख्वाहिश पूरी होती है अपना नया चेहरा लेती है बाकी बिखर जाती है दिल के गलियारे में गिरकर,हसती,खिलती फिर उमड़ पड़ती नयी रूह लेकर जुड़ जाती ख्वाहिशो के कारवाँ से जो कभी थमता नही....

Wednesday, January 2, 2008

बाबुल

नयनो की जलधारा को, बह जाने दो सब कहते पर तुम इस गंगा जमुना को मेरे बाबुल कैसे सहते इसलिए छूपा रही हूँ दिल के एक कोने में जहाँ तेरे संग बिताए सारे पल है रहते होठों पर सजाई हँसी,ताकि तू ना रोए इन आखरी लम्हों को,हम रखेंगे संजोए आज अपनी लाड़ली की कर रहे हो बिदाई क्या एक ही दिन मे, हो गयी हू इतनी पराई जानू मेरे जैसा तेरा भी मन भर आया चाहती सदा तू बना रहे मेरा साया वादा करती हूँ निभाउंगी तेरे संस्कार तेरे सारे सपनो को दूँगी में आकार कैसी रीत है ये,के जाना तेरा बंधन तोड़के क्या रह पाउंगी बाबुल, मैं तेरा दामन छोड़के.

शृंगार

शृंगार 1.बिंदिया,झुमका,पायल,बाजूबंद मैं सब कुछ पहनकर आउ एक काला तीट मुझे लगाना, सब की नज़र से मैं बच पाउ 2.पिया लुभावन, हर दिन में दुल्हन , चाहे सोला शृंगार करे शृंगार उसका अधूरा लागे,जब तक ना सिंदूर से माँग भरे 3.गोल गोल जो सदा घूमत रहे, मुझे वो ही गरारा चाहिए पिया मिलन से मैं शर्माउ,चहेरा छुपाने ओढनी भी लाइए 4.किन किन करते कंगना मेरे,खनक खनक सब कुछ बोले है लाज के मारे लब सिले है , तब कंगना दिल के राज़ खोले है 5.ठुमक ठुमक जब गोरिया चले है ,उसकी तारीफे कीजिए गा रूठे जो सजना से गोरी ,मनाए खातिर, नौलखा दीजिए गा

सुरक्षा अस्त्र

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