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Wednesday, December 31, 2008

साल 2008

1. दिल्ली भी थर्राया, जयपुर बंगलोर भी थर्राई इस साल खुनी खेल में मुंबई भी नहाई क्या याद करे क्या बात करे साल 2008 की जश्न अधुरा नए साल का हर दिल में है खौफ समाई. 2. इस बीच इंडियन क्रिकेट का ऐसा कायापलट हुआ ICL और IPL का मुकाबला भी गज़ब हुआ क्रिकेट के आगे फुटबॉल हॉकी पानी भरते रहे धोनी नम्बर 1, सीढियाँ ऊपर चढ़ते रहे. 3. विश्व-अर्थव्यवस्था की बिगड़ी ऐसी चाल मार्केट गिरा मुंह के बल आया ऐसा भूचाल आया ऐसा भूचाल अमेरिका भी हारा रिजर्व बैंक हो या वर्ल्ड बैंक सब बेचारा कहत सुलभ कविराय कोई उपाय न सूझे रोजगार के हजारो दीये पलभर में बूझे Happy New Year to Rangkarmi family and all Readers. - Sulabh Jaiswal

अलविदा-2008

साल 2008 का अन्तिम सूर्यास्त
जैसे कह रहा हो :-
सूरज हूँ ज़िन्दगी की रमक छोड़ जाऊँगा, मैं डूब भी गया तो शफक छोड़ जाऊँगा।

" नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं"

" नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं"
दुखदायी जो पल थे उन्हें भुलाएं मधुर स्म्रतियों से नव वर्ष को गले लगायें , करते है दुआ हम रब से सर झुकाके ... इस साल के सारे सपने पुरे हो आपके.
"नव वर्ष २००९ - आप सभी ब्लॉग परिवार और समस्त देश वासियों के परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "

आया नव वर्ष आया

आया नव वर्ष ,आया आपके द्वार दे रहा है ये दस्तक , बार बार ! बीते बरस की बातों को , दे बिसार लेकर आया है ये , खुशियाँ और प्यार ! खुले बाहों से स्वागत कर ,इसका यार और मान ,अपने ईश्वर का आभार ! आओ , कुछ नया संकल्प करें यार मिटायें ,आपसी बैर ,भेदभाव ,यार ! लोगो में बाटें ,दोस्ती का उपहार और दिलो में भरे , बस प्यार ही प्यार ! अपने घर, समाज, और देश से करें प्यार हम सब एक है , ये दुनिया को बता दे यार ! कोई नया हूनर ,आओ सीखें यार जमाने को बता दे , हम क्या है यार ! आप सबको ,है विजय का प्यारा सा नमस्कार नव वर्ष मंगलमय हो ,यही है मेरी कामना यार ! आया नव वर्ष ,आया आपके द्वार दे रहा है ये दस्तक , बार बार !

प्रीत,प्यार और स्नेह की धरा पर

वृन्दावन,नंदगाँव,बरसाना ये वो जगह है जहाँ पर श्री कृष्ण- राधा के अलावा कुछ भी नहीं है। गत पांच दिनों में से चार दिन इन्ही के सानिध्य में गुजरे। राधा कभी थी या नहीं, लेकिन आज इन स्थानों के चप्पे चप्पे पर राधा ही राधा है। बहती हवा राधा राधा करके कान के पास से उसके होने का अहसास करवाती है। दीवारों पर राधा, श्री राधा लिखा हुआ है। एक रिक्शा वाला भी घंटी नहीं बजाता, राधे राधे बोलकर राहगीरों को रास्ता छोड़ने को कहता है। वृन्दावन में ५५०० मन्दिर हैं। सब के सब राधा कृष्ण के। बांके बिहारी का मन्दिर, कोई समय ऐसा नहीं जब भीड़ ना होती हो। मन्दिर में आते ही मन निर्मल हो जाता है। आंखों के सामने, मन में केवल होता है बांके बिहारी। रास बिहारी मन्दिर। मन्दिर में चार शतक पुरानी मूर्तियाँ हैं। मगर ऐसा लगता है जैसे आज ही उनको घडा गया हो। मन्दिर का रूप रंग देखते देखते मन नहीं भरता। श्री रंगराज का मन्दिर। मन्दिर में सोने की मूर्तियाँ, उनके सोने के वाहन,सोने के गरुड़ खंभ। क्या कहने! गोवर्धन की परिकर्मा। लोगों की आस्था को नमन करने के अलावा कुछ करने को जी नहीं हुआ। वाहन के लोग कहते हैं। वृन्दावन,नंदगाँव,बरसाना दूध दही का खाना। इस क्षेत्र में ताली बजाकर हंसने का भी बहुत महत्व है। हर किसी से सुनने को मिल जाएगा-जो वृन्दावन में हँसे,उसका घर सुख से बसे। जो वृन्दावन में roye वो अपने नैना खोये।वहां मधुवन है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ श्री कृष्ण गोपियों के संग रास रचाया करते थे। अब भी ऐसा होता है। इसलिए मधुवन में रात को किसी को भी रुकने नही दिया जाता। बाकायदा ढूंढ़ ढूंढ़ कर सबको वन से बहार निकल दिया जाता है। वृन्दावन में बंदरों का बहुत बोलबाला है। लेकिन आप उनके सामने राधे राधे बोलोगे तो बन्दर चुपचाप आपके निकट से चला जाएगा। इन बंदरों को चश्मा और पर्स बहुत पसंद हैं। पलक झपकते ही आपका चश्मा उतार लेंगें। इसलिए जगह जगह लिखा हुआ है कि चश्मा और पर्स संभाल कर रखें। यहाँ एक मन्दिर है इस्कोन। मन्दिर में कैमरा मोबाइल फ़ोन तक नहीं ले जा सकते। मन्दिर के अन्दर आरती के समय जब "हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे" के स्वर गूंजते हैं तो हर कोई अपने आप ही झुमने को मजबूर हो जाता है। कृष्ण नाम की ऐसी मस्ती आती है की मन्दिर से जाने को जी नहीं करता। मथुरा तो है ही कृष्ण की जन्म स्थली। जन्म स्थली पर सी आर पी एफ की चौकसी है। सब कुछ देखने लायक। चार दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। अब उस व्यक्ति के बारे जिसकी भावना के चलते हम इन स्थानों के दर्शन कर सके। उनका नाम हैं श्री मारुती नंदन शास्त्री। कथा वाचक हैं, मुझ से स्नेह करतें हैं। उनका कोई आयोजन था। उन्होंने स्नेह से बुलाया और हम कच्चे धागे से बंधे चले गए। कहतें हैं कि वृन्दावन में किसी ना किसी बहाने से ही आना होता है। अगर आप सीधे वृन्दावन आने को प्रोग्राम बनाओगे तो आना सम्भव नही होता। इसलिए शास्त्री जी को धन्यवाद जिनके कारन हम प्रेम की नगरी में आ सके।

कम्बल

तेरी यादों का कम्बल लपेट कर घुमती है वो आज कल गुलाबी ठण्ड को इससे बढ़िया गर्माहट भला मिलती और कही

Tuesday, December 30, 2008

युद्ध? को भी बना देंगें बाज़ार

इतने दिन कहाँ रहा, ये चर्चा बाद में, पहले उस "युद्ध" की बात जिसका अभी कोई अता पता ही नही है। इन दिनों शायद ही कोई ऐसा मीडिया होगा जो "युद्ध" युद्ध" ना चिल्ला रहा हो। हर कोई "युद्ध" को अपने पाठकों को "बेच" रहा है जैसे कोई पांच पांच पैसे की गोली बेच रहा हो। इतने जिम्मेदार लोगों ने इसको बहुत ही हलके तरीके से ले रखा है। मेरा शहर बॉर्डर के निकट है। हमने १९७१ के युद्ध के समय भी बहुत कुछ झेला और देखा। इसके बाद वह समय भी देखा जब संसद पर हमले के बाद सीमा के निकट सेना को भेज दिया गया था। बॉर्डर के पास बारूदी सुरंगे बिछाई गई थी। तब पता नहीं कितने ही लोग इन सुरंगों की चपेट में आकर विकलांग हो गए। अब ऐसी कोई बात नहीं है। मैं ख़ुद बॉर्डर पर होकर आया हूँ। पुरा हाल देखा और जाना है। पाक में चाहे जो हो रहा हो, भारत में सेना अभी भी अपनी बैरकों में ही है। बॉर्डर की और जाने वाली किसी सड़क या गली पर सेना की आवाजाही नहीं है। मीडिया में पता नहीं क्या क्या दिखाया,बोला और लिखा जा रहा है। ठीक है वातावरण में तनाव है, दोनों पक्षों में वाक युद्ध हो रहा है, मगर इसको युद्ध की तरह परोसना, कमाल है या मज़बूरी?अख़बारों में बॉर्डर के निकट रहने वाले लोगों के देश प्रेम से ओत प्रोत वक्तव्य छाप रहें हैं।अब कोई ये तो कहने से रहा कि हम कमजोर हैं या हम सेना को अपने खेत नहीं देंगें। मुफ्त में देता भी कौन है। जिस जिस खेत में सुरंगें बिछाई गई थीं उनके मालिकों को हर्जाना दिया गया था। हमारे इस बॉर्डर पर तो सीमा सुरक्षा बल अपनी ड्यूटी कर रहा है. सेना उनके आस पास नहीं है। हैरानी तो तब होती है जब दिल्ली ,जयपुर के बड़े बड़े पत्रकार ये कहतें हैं कि आपके इलाके में सेना की हलचल शुरू हो गई। अब उनको कौन बताये कि इस इलाके में कई सैनिक छावनियां हैं , ऐसे में यहाँ सेना की हलचल एक सामान्य बात है। आम जन सही कहता है कि युद्ध केवल मीडिया में हो रहा है।

Saturday, December 27, 2008

चोरी करना पाप है

हद है! अब ब्लॉग पर भी चोरी होने लगी ।मामला ताजा है , फरवरी २००८ में ही कृत्या मॆ धूमिल पर एक आलेख छपा था, लेखक थे जाने माने कवि और आलोचक भाई सुशील कुमार। अब इसी को शब्दशः चुरा कर मुकुन्द नामक व्यक्ति ने कालचक्र पर छाप दिया है। यहाँ तक कि क़ोटेशन भी वही है।यह ब्लाग की मस्त कलन्दरी दुनिया को गन्दा करने वाला प्रयास है। इसकी लानत मलामत की जानी चाहिये।सबूत के लिये यहाँ

दोनों लिन्क दे रहा हूँ ।http://www.kritya.in/0309/hn/editors_choice.html इस पर सुशील जी का आलेख फ़रवरी मे छपा।http://kalchakra-mukund.blogspot.com/2008/09/blog-post_5626.html इस पर है मुकुन्द जी का स्वचुरित लेख है।

फ़ैसला आप ब्लागर देश के नागरिकों का।

Thursday, December 25, 2008

हैप्पी क्रिसमस

आप सभी को

रंगकर्मी परिवार की ओर से

क्रिसमस की ढेरों शुभकामनाऐं।

Monday, December 22, 2008

मंदी की मार, पत्रकार बेकार

श्रीगंगानगर में पत्रकारों पर मंदी की मार का असर होने लगा है। हिंदुस्तान के सबसे बड़े प्रिंट मीडिया ग्रुप दैनिक भास्कर के श्रीगंगानगर संस्करण से दो पत्रकारों को नौकरी से अलग कर दिया गया है। इसके विरोध में आज राजस्थान पत्रकार संघ और श्रमजीवी पत्रकार संघ ने अखबार के स्थानीय ऑफिस के आगे धरना देकर एक ज्ञापन कार्यकारी सम्पादक को दिया। ज्ञापन ग्रुप के चेयरमेन के नाम था। धरना स्थल पर अखबार के प्रतियाँ जलाई गईं। यह पहला मौका था जब पत्रकारों के संगठनो ने पत्रकारों को निकाले जाने के विरोध में धरना दिया। श्रीगंगानगर में बड़ी संख्या में दैनिक अख़बार प्रकाशित होते हैं। यहाँ अक्सर कोई ना कोई अखबार के sanchalak किसी reporter को रखते या नौकरी से अलग करते रहें हैं।तीन माह पहले तो एक चलता दैनिक अख़बार समाचार भारती अचानक बंद कर दिया गया। वी ओ आई ने अपना श्रीगंगानगर ऑफिस बंद करके कई जनों को चलता कर दिया था। तब किसी ने इस प्रकार का विरोध नही किया। चलो, देर आयद दुरस्त आयद। उम्मीद है यह सिलसिला बरक़रार रहेगा।

Sunday, December 21, 2008

मैं चाहता हूं

मैं चाहता हूं एक दिन आओ तुम इस तरह कि जैसे यूं ही आ जाती है ओस की बूंद किसी उदास पीले पत्ते पर और थिरकती रहती है देर तक मैं चाहता हूं एक दिन आओ तुम जैसे यूं ही किसी सुबह की पहली अंगड़ाइ के साथ होठों पर आ जाता है वर्षों पहले सुना कोई सादा सा गीत और पहले चुम्बन के स्वाद सा मैं चाहता हूं एक दिन यूं ही पुकारो तुम मेरा नाम जैसे शब्दों से खेलते-खेलते कोई बच्चा रच देता है पहली कविता और फिर गुनगुनाता रहता है बेखयाली में मैं चाहता हूं यूं ही किसी दिन ढूंढते हुए कुछ और तुम ढूंढ लो मेरे कोई पुराना सा ख़त और उदास होने से पहले देर तक मुस्कराती रहो मै चाहता हूँ यूँ ही कभी आ बैठो तुम उस पुराने रेस्तरां की पुरानी वाली सीट पर और सिर्फ एक काफी मंगाकर दोनों हाथों से पियो बारी बारी मैं चाहता हूँ इस तेजी से भागती समय की गाड़ी के लिए कुछ मासूम से कस्बाई स्टेशन

अशोक कुमार पाण्डेय

http://asuvidha.blogspot.com/

एक छोटी सी कहानी-प्यार की

एक अंधी लडकी थी । उसे उसके एक दोस्त के अलावा सबने ठुकरा दिया था । पर वो दोस्त उससे बहुत प्यार करता था । लडकी रोज़ उससे ये कहती कि अगर वो उसे देख पाती तो उसी से शादी करती । एक दिन किसी ने उस लडकी को अपने आंखे दे दीं । जब वो देखने लगी तो उसने देखा की उसका वह दोस्त अंधा था । लड़के ने उससे पूछा की क्या अब वो उससे शादी करेगी ? लडकी ने साफ़ इनकार कर दिया । इस पर उसका दोस्त मुस्कुराया और चुप चाप उसे एक कागज़ देकर चला गया । उस पर लिखा था -
"मेरी आखों का ख्याल रखना"

बचपन के अनोखे दिन

बचपन में हम उन दिनों बहुत ज्यादा शरमाते थे. कविता के दो लाइन भी खुलकर नही बोल पाते थे.

दूरदर्शन के आगे बैठ जंगल- जिंगल गाते थे. पापा घर में आ जाये तब डर से उनके घबराते थे.  

....................आगे पढ़े

Saturday, December 20, 2008

----चुटकी----

जिसका ना दीन ना कोई ईमान, उसका नाम है पाकिस्तान। ----गोविन्द गोयल

Friday, December 19, 2008

कमाऊ पूत की उपेक्षा

अक्सर यह सुनने को मिल ही जाता है कि माँ भी उस संतान का थोड़ा पक्ष जरुर लेती है जो घर चलने में सबसे अधिक योगदान देता हो। किंतु राजनीति में ऐसा नही है। ऐसा होता तो राजस्थान के सी एम अशोक गहलोत अपने मंत्री मंडल गठन में श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ की उपेक्षा नही करते। दोनों जिले खासकर श्रीगंगानगर आर्थिक,सामाजिकऔर सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। किंतु श्री गहलोत ने अपने मंत्री मंडल में इस जिले के किसी विधायक को शामिल नही किया। यह जिला सरकार को सबसे अधिक राजस्व देता है,लेकिन इसकी कोई राजनीतिक पहुँच दिल्ली और जयपुर के राजनीतिक गलियारों में नही है। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिले से कांग्रेस को ६ विधायक मिले। इसके अलावा २ निर्दलियों ने सरकार बनने हेतु अशोक गहलोत ने समर्थन दिया। समर्थन देने वाला एक निर्दलीय सिख समाज से है इसी ने सबसे पहले अशोक गहलोत को समर्थन दिया। यह पहले भी विधायक रह चुका है। सब लोग यहाँ तक की मीडिया भी सभी क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिलने के गीत गा रहा है। पता नहीं उनका ध्यान भारत-पाक सीमा से सटे श्रीगंगानगर जिले की ओर क्यूँ नही जाता। क्या इस इलाके के विधायक उस गोलमा देवी जितने भी लायक नहीं जिसको शपथ लेनी भी नही आई। इस से साफ साबित होता है कि जयपुर के राजनीतिक गलियारों में हमारे जिले की क्या अहमियत है। किसी को यह सुनने में अटपटा लगेगा कि राजस्थान के इस लाडले जिले की कई मंडियों में रेल लाइन तक नहीं है जबकि वहां करोड़ों रुपयों का कारोबार हर साल होता है। छोटे से छोटा मुकदमा भी एस पी की इजाजत के बिना दर्ज नही होता। जिला कलेक्टर ओर एस पी नगर की गली ओर बाज़ार तक नहीं जानते। उनके पास नगर के ऐसे पॉँच आदमी भी नहीं जो नगर में कोई कांड होने पर उनकी मदद को आ सके, या उनके कहने से विवाद निपटाने आगे आयें। यहाँ उसी की सुनवाई होती है या तो जिसके पैर में जूता है या काम के पूरे दाम। इसके अलावा कुछ नहीं । हमारें नेताओं में इतनी हिम्मत ही नहीं जो अपना दबदबा जयपुर और दिल्ली के गलियारों में दिखा सकें। "चिंताजनक हैं आज जो हालात मेरी जां,हैं सब ये सियासत के कमालात मेरी जां" "खुदगर्जियों के जाल में उलझे हुये हैं सब,सुनकर समझिये सबके ख्यालात मेरी जां" "अब अपराधियों से ख़ुद ही निपटो, फरियादी का तो रपट लिखवाना मना है"

रिश्ता

तुझे देखा नही ,पर तुझे चाह लिया तुझे ढूँढा नही , पर तुझे पा लिया .. सच !!! कैसे कैसे जादू होतें है ज़िन्दगी के बाजारों में .... रिश्ता अभी अभी मिले है , पर जन्मों की बात लगती है हमारा रिश्ता ख्वाबों की बारात लगती है आओं...एक रिश्ता हम उगा ले ; ज़िन्दगी के बरगद पर , तुम कुछ लम्हों की रोशनी फैला दो , मैं कुछ यादो की झालर बिछा दूँ .. कुछ तेरी साँसे , कुछ मेरी साँसे . इस रिश्ते के नाम उधार दे दे... आओ , एक खवाब बुन ले इस रिश्ते में जो इस उम्र को ठहरा दे ; एक ऐसे मोड़ पर .... जहाँ मैं तेरी आँखों से आंसू चुरा लूँ जहाँ मैं तेरी झोली ,खुशियों से भर दूँ जहाँ मैं अपनी हँसी तुझे दे दूँ .. जहाँ मैं अपनी साँसों में तेरी खुशबु भर लूँ जहाँ मैं अपनी तकदीर में तेरा नाम लिख दूँ जहाँ मैं तुझ में पनाह पा लूँ ... आओ , एक रिश्ता बनाये जिसका कोई नाम न हो जिसमे रूह की बात हो .. और सिर्फ़ तू मेरे साथ हो ... और मोहब्बत के दरवेश कहे अल्लाह , क्या मोहब्बत है !!! vijay kumar sappatti B : http://poemsofvijay.blogspot.com/ M : +91 9849746500 E : vksappatti@gmail.com

Thursday, December 18, 2008

"नवभारत टाईम्स का आभार "

"नवभारत टाईम्स का आभार "
" मेरी रचना "ख्वाबों के आँगन " को नवभारत टाईम्स ने १७/१२/२००८ अपनी साइट http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3846072.cms#write पर जगह देकर मुझे जो मान सम्मान दिया है, उसके लिए मैं सम्पादक जी की दिल से आभारी हूं." अपने अभी पाठको का तहे दिल से शुक्रिया जिन्होंने इस रचना को पढ़कर मुझे एक बार फ़िर से प्रोत्साहन और आशीर्वाद दिया है" 'आभार'

एक और बयान बहादुर

महाराष्ट्र के एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे शहीद हुए या मारे गए? यह बहस थमी तो नई बहस आगे बढ़ाई गई है। इस बहस की शुरुआत दरअसल पाकिस्तानी मीडिया ने की थी। वहां भी बहस आशंका के रूप में थी, करकरे को गोली मालेगांव धमाकों से जुड़े लोगों ने तो नहीं मारी? पाकिस्तानी मीडिया की आशंका पाक सरकार को स्वर देने की कवायद थी। अब कुछ दिनों बाद केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री एआर अंतुले भी यही बात कह रहे हैं। पूरा देश जिस केंद्र सरकार से पाकिस्तान पर हमले की मांग कर रहा है, उस सरकार का एक वरिष्ठ मंत्री उसी पाक के सुर में सुर मिला रहा है। इसे ही सियासत कहते हैं। यहां देश की भावनाएं नहीं देखी जाती, वोट देखा जाता है। क्या करेंगे, राजनीति को यूं ही तो दलदल नहीं कहा जाता। अंतुले की एक और बात पर गौर करें। अंतुले कहते हैं पाकिस्तानी आतंकियों के पास एटीएस प्रमुख करकरे को मारने की कोई वजह नहीं थी। मतलब, मुंबई पर आतंकी हमलों में जितने लोगों ने जान गंवाई, उन्हें मारने की आतंकियों के पास वजह थी। (लगे हाथों अंतुले यह भी बता देते तो ज्यादा अच्छा रहता कि वह वजह क्या है)। अंतुले का यह बयान कहीं न कहीं आतंकियों की कारॆवाई को एक आधार भी देता है। हमारे केंद्रीय मंत्री का बयान हमें बताता है कि आतंकी बेवजह किसी को नहीं मारते। पाक परस्त आतंकी अरसे से भारत में खूनखराबा कर रहे हैं। हम मानते हों या नहीं, मंत्री जी मानते हैं कि इसकी वजह है। और वो मानते हैं, तो आपको सुनना-पढ़ना होगा। क्या करेंगे, अभिव्यक्ति की आजादी तो उनके लिए भी है। हो सकता है, कुछ लोग अंतुले की आशंका से सहमत हों। तब भी इस बयान को गैर-जिम्मेदाराना ही माना जाएगा। अगर इस तरह की कोई आशंका है, तो पहले उसकी जांच होनी चाहिए। जांच में यह बात स्थापित होती, तब कही जाती। जांच किए जाने की बात अंतुले भी कह रहे हैं। अंतुले केंद्र के वरिष्ठ मंत्री है। सरकार के स्तर पर अपनी बात रखते। जांच करवाते। तब तक इस पर मुंह खोलने से परहेज करते। लेकिन इतनी शांति से उनका मकसद कहां पूरा होता। पता नहीं, अब भी उनका मकसद पूरा हो पाएगा या नहीं। हो सकता है लेने के देने पड़ जाएं। दरअसल भारतीय राजनीति के कुछ पुराने योद्धा देश की जनता को वतॆमान समय के हिसाब से देख ही नहीं पाते। ये लोग देश की जनता को उसी वक्त के हिसाब से देखते हैं, जब इन्हें विस्मृति दोष नहीं हुआ था। उन्हें याद नहीं कि जनता काफी समझदार हो चुकी है। राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनावी नतीजों ने भी यही बताया है। किसी राज्य की जनता ने बयान के आधार पर वोट नहीं दिए। वोट काम पर डाले गए।

वैसे अंतुले महोदय शिवराज पाटिल, देशमुख, आरआर पाटिल जैसे बयान बहादुरों से भी कुछ सबक लें।

Tuesday, December 16, 2008

"द्रष्टि"

"द्रष्टि"
अनंतकाल से ये द्रष्टि प्रतीक्षा पग पर अडिग ,
पलकों के आंचल से
सर को ढांक ,
आतुरता की सीमा लाँघ
अविरल अश्रुधारा मे
डूबती , तरती , उभरती ,
व्याकुलता की ऊँचाइयों को छु
प्रतीक्षाक्षण से तकरार करती
तुम्हारी इक आभा को प्यासी
अनंतकाल से ये द्रष्टि
प्रतीक्षा पग पर अडिग

घुटनों के बल झुके बुश

सॉरी ! अचानक बिना बताये गायब रहना पड़ा। इस बीच बुश के साथ वो हो गया जो किसी ने कल्पना भी नही की होगी। कभी ज़िन्दगी में ऐसा होता है कि हम सोच भी नहीं पाते वह हो जाता है। अमेरिका के प्रेजिडेंट की ओर किसी की आँख उठाकर देखने भर की हिम्मत नहीं होती यहाँ जनाब ने दो जूते दे मारे, वो तो बुश चौकस थे वरना कहीं के ना रहते बेचारे। अमेरिकी धौंस एक क्षण में घुटनों के बल झुक गई। इसे कहते हैं वक्त ! वक्त से बड़ा ना कोई था और ना कोई होगा। यह वक्त ही है जिसे हिन्दूस्तान की लीडरशिप को इतना कमजोर बना दिया कि वह पाकिस्तान को धमकी देने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहा है। यह वही हिन्दूस्तान तो है जिसने आज के दिन [ १६/१२/१९७१] को पाकिस्तान का नक्श बदल दिया था। आज हमारी हालत ये कि जब जिसका जी चाहे हमें हमारे घर में आकर पीट जाता है। हमारी लीडरशिप के पैर इतने भारी हो गए कि वह पाकिस्तान के खिलाफ उठ ही नहीं पा रहे। हिन्दूस्तान की विडम्बना देखो कि उसके लिए क्रिकेट ही खुशी और गम प्रकट करने का जरिए हो गया। क्रिकेट में टीम जीती तो भारत जीता। कोई सोचे तो कि क्या क्रिकेट में जीत ही भारत की जीत है? इसका मतलब तो तो क्रिकेट टीम भारत हो गई, वह मुस्कुराये तो हिन्दूस्तान हँसे वह उदास हो तो हिन्दुस्तानी घरों में दरिया बिछा लें, ऐसा ही ना। क्या हिन्दूस्तान की सरकार उस इराकी पत्रकार की हिम्मत से कुछ सबक नही ले सकती? उसका जूता मारना ग़लत है या सही यह बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन उसने अपनी भावनाएं तो प्रकट की। हिन्दुस्तानी अगर मिलकर अपने दोनों जूते पाकिस्तान को मारे तो वह कहीं दिखाई ना दे। सवा दो करोड़ जूते कोई काम नहीं होते। लेकिन हम तो गाँधी जी के पद चिन्हों पर चलने वाले जीव हैं इसलिए ऐसा कुछ भी नही करने वाले। चूँकि लोकसभा चुनाव आ रहे हैं इसलिए थोड़ा बहुत नाटक जरुर करेंगें।

Monday, December 15, 2008

मै निकला हिमपात देखने

निकला मैं कल रात
देखने हिमपात।
क्या खूब बरसते थे
ठंडे तीखे रूई के फाहे
ज्यों तारे टूट कर
गिर रहें हों जमीन पर
या फिर,
स्वर्ग से फूट पड़ा हो
मणि रत्नों का प्रपात।
सडकों पर, छत पर,
पार्क में पड़ी कुर्सियों पर,
पर्वतों के शिखर तक
सागर के तट से
हर तरफ बिछी पड़ीं थी
ठंडी सफ़ेद चादर-
इतनी नाजुक, इतनी निर्मल
झिझक होती थी
कैसे रखूँ मैं कदम इन पर।
खूब घूमा
हवाओं में मदमस्त उडती
बर्फ की बूंदों को
जी भर के चूमा।
निकला मैं कल रात ........
Dr Anoop Kumar Pandey anu29manu@gmail.com
भाई यह कविता कनाडा मे रह रहे मेरे अनुज डा अनूप कुमार पाण्डेय ने भेजी है और चित्र भी … साहित्य के चितेरे थे पर डाक्टरी भारी पडी। अशोक कुमार पाण्डेय

Saturday, December 13, 2008

वैश्विक गाँव के पञ्च परमेश्वर

पहला कुछ नहीं खरीदता न कुछ बेचता है बनाना तो दूर की बात है बिगाड़ने तक का शऊर नहीं है उसे पर तय वही करता है कि क्या बनेगा- कितना बनेगा- कब बनेगा खरीदेगा कौन- कौन बेचेगा दूसरा कुछ नहीं पढ़ता न कुछ लिखता है परीक्षायें और डिग्रियाँ तो खैर जाने दें किताबों से रहा नहीं कभी उसका वास्ता पर तय वही करता है कि कौन पढ़ेगा- क्या पढ़ेगा- कैसे पढ़ेगा पास कौन होगा- कौन फेल तीसरा कुछ नहीं खेलता जोर से चल दे भर तो बढ़ जाता है रक्तचाप धूल तक से बचना होता है उसे पर तय वही करता है कि कौन खेलेगा- क्या खेलेगा- कब खेलेगा जीतेगा कौन- कौन हारेगा चौथा किसी से नहीं लड़ता दरअसल ’शुद्ध ’शाकाहारी है बंदूक की ट्रिगर चलाना तो दूर की बात है गुलेल तक चलाने में कांप जाता है पर तय वही करता है कि कौन लड़ेगा -किससे लड़ेगा - कब लड़ेगा मारेगा कौन - कौन

और पाँचवां सिर्फ चारों का नाम तय करता है।

Friday, December 12, 2008

"मौन का उपवास"

"मौन का उपवास" अनुभूतियों का आचरण शालीन सभ्य सह्रदय हुआ, और भावः भी चुप चाप हैं, अधरों पे आके थम गया शब्दों का बढ़ता कारवां, स्वर कंठ में लुप्त हुए, क्या "मौन" का उपवास है

Thursday, December 11, 2008

मुख्यमंत्री चुनाव December 2008

आये दिन सियासत में अफ़साने बहुत हैं    
खेल दावपेंच के आजमाने बहुत हैं.   
कुर्सी की दौर में सभी पागल से हुए हैं 
इक़ नाजनीन और दीवाने बहुत है .

Wednesday, December 10, 2008

" मायाजाल"

" मायाजाल"
ह्रदय के मानचित्र पर पल पल तमन्नाओं के प्रतिबिम्ब उभरते रहे, यथार्थ को दरकिनार कर कुछ स्वप्नों ने सांसे भरी... छलावों की हवाएं बहती रही बहकावे अपनी चाल चलते रहे, कायदों को सुला , उल्लंघन ने जाग्रत हो अंगडाई ली.. द्रढ़निश्चयता का उपहास कर संकल्प मायाजाल में उलझते रहे, ह्रदय के मानचित्र पर पल पल तमन्नाओं के प्रतिबिम्ब उभरते रहे..

वादियों का देश - हिंदुस्तान

अपना हिंदुस्तान जो वादियों का देश है तो लीजिये कुछ पंक्तियाँ पेश है...
वे देश मे अलगावादी की भूमिका निभाते हैं स्वयं को समर्पित राष्ट्रवादी बताते है। इस लोकतांत्रिक गणराज्य के, समाजवाद हिंदुस्तान के -स्वयंभू साम्यवादी, जनवादी, मनुवादी, इत्यादि इत्यादि खुद को बताते हैं ।
वैसे हमारा हिंदुस्तान सदियों से जकरा हुआ है, ना जाने किन किन वादियों के बोझ से दुहरा हुआ है। चुनाव मे जातिवादी, नौकरी मे भाई भातिजवादी, वादियों मे आतंकवादी, घाटियों मे उग्रवादी और जंगलों मे नक्सलवादी।हाय हम और आप सिर्फ वादी और प्रतिवादी। लेकिन याद रहे एक वादी जो सब पे भारी है वो है बढ़ती हुई आबादीजी हाँ बढ़ती हुई आबादी ॥

Tuesday, December 9, 2008

२६ नवंबर,2008

मस्त संगीत रोशनी मध्दम जिव्हा की तृप्ती माहौल में एक अजीब सी लहराती मस्ती अचानक चलती गोलियाँ सन् सन् जिंदगी सस्ती आँखों के सामने मृत्यु का तांडव करवाते दानव फटते बम धुआँ और आग चीखें पुकारतीं यह घमासान फिर हैं भी दौडते कुछ इन्सान रखते हैं लोगों को सुरक्षित जान पर खेल कर और वे शूर वीर वे जाँ-बांज आते हैं दौड कर लगे रहते हैं जब तक न खत्म होता आतंक जीवट से लडते हैं सीमित साधनों से, प्राण खोते हुए अंत में लहराते हैं मुस्कुराते हुए जीत का तिरंगा नसीबों वाले बच जाने वाले शुक्र मनाते हैं यह आतंक तो हुआ खत्म पर आगे क्या ?

Sunday, December 7, 2008

वो फिर न कभी हमराह हुआ

अरसा बिता तुम्हे देखा नही याद आए मगर तुम बहुत पल पल आवाज़ देकर भी तुम क्यूँ नही आते ? रूठने की कोई वजह तो हो इंतज़ार किया था उस दिन तुम्हारा शायद वक्त की अफरा तफरी हुयी अब मिओगे जहा ऐसी कोई जगह तो हो एक क्षण में बदल जाती ज़िन्दगी हर पल का दिल मोहताज हुआ जो छुटा पल पीछे इंसान के हाथ से वो फिर न कभी हमराह हुआ

Saturday, December 6, 2008

तुम बिन

'तुम बिन"
हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
साजों मे भी अब तार नही..
बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
शब्दों मे भी वो सार नही...
जज्बातों का उल्लेख करूं क्या ,
भावों मे मिलता करार नही...
तुम अनजानी अभिलाषा मेरी,
क्यूँ सुनते मेरी पुकार नही ...
हर राह पे जैसे पदचाप तुम्हारी ,
रोकूँ कैसे अधिकार नही ...
तर्ष्णा प्यासी एक नज़र को तेरी,
मिलने के मगर आसार नही.....

Thursday, December 4, 2008

शब्दों की वादियाँ"

"शब्दों की वादियाँ"
शब्दों की वादियों मे विचरता ये मन , खोज रहा कुछ ऐसे कण , जो सजा सके मनोभावों को, चाहत के सुंदर साजों को, लुकती छुपती अभिलाषा को, नैनो मे दुबकी जिज्ञासा को, सिमटी सकुचाई आशा को, निश्चल प्रेम की भाषा को, शब्दों की वादियों मे विचरता ये मन , खोज रहा कुछ ऐसे कण............

Wednesday, December 3, 2008

आतंक का दर्द - एक सच्चाई

ये कैसी लड़ाई है कैसा ये आतंकवाद मासूमो का खून बहाकर बोलते हैं जेहाद बोलते हैं जेहाद अल्लाह के घर जाओगे लेकिन उससे पहले तुम जानवर बन जाओगे बम फटे मस्जिद में तो कभी देवालय में महफूज़ छुपे बैठे हैं जो आतंक के मुख्यालय में आतंक के मुख्यालय में साजिश वो रचते हैं नादान नौजवान बलि का बकरा बनते हैं रो रहा आमिर कासव क्या मिला मौत के बदले अपने बुढडे आकाओं से हम क्यों मरे पहले ॥ - सुलभ पत्र - Hindi Kavita Blog

युही

वादा - ऐ - रस्म उन्हें निभानी आती भी होगी या नही या हम रूठना और वो मनाना इस खेल के नियम बनेंगे =============================== जिहाद के नाम पर भटक जाते मासूम मन उन्हें भी नही पता उनका नाम आतंकवाद है =============================== तकिये के निचे एक डायरी और कलम रखी हुई जब तेरी याद आती है कविता लिख लेती हूँ

Monday, December 1, 2008

सिर्फ़ शोर मचाने से क्या होगा?

जब भी कोई आतंकी हमला होता है, बड़ा शोर मचता है। नेताओं के साथ-साथ आम आदमी का भी शोर हर जगह ध्वनित होता है। किसी भी मुसीबत के बाद शोर स्वाभाविक ही है। इस पर किसी को क्या आपत्ति? दिक्कत यह है कि इस पूरे शोर-शराबे का कोई नतीजा नहीं निकलता। याद होगा, संसद पर हमले के बाद भी बड़ा शोर मचा था। देश के स्वाभिमान पर चोट थी। लगा था कि अब आतंकियों के खिलाफ कोई बड़ी कारॆवाई होगी, जिसके बाद इस तरह का दुस्साहस करने की कोई हिम्मत नहीं कर पाएगा। तब भी हमला पाक प्रायोजित होने के पूरे सुबूत थे। यह बात जोर-शोर से कही भी जा रही थी। इसे सुनकर लगा था कि आतंकियों को शरण और शह देने वाले पाक को इस बार सबक तो जरूर सिखाया जाएगा। पर सब जानते हैं वह शोर किस कदर बेमतलब था। हमारे घर में घुसकर पाक परस्त आतंकियों ने एक बार फिर हमारा सीना छलनी कर दिया। फिर बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं। आईएसआई चीफ को तलब किया गया। पाक ने मना कर दिया। अब हम दाऊद और अजहर मसूद को मांग रहे हैं। पता नहीं यह छोटी सी बात हमारे हुक्मरान क्यों नहीं समझ पाते कि मांगने से दाऊद नहीं मिलता। मिलता होता तो उसे पाक में शरण ही क्यों मिलती। इससे पहले भी कई बार दाऊद और मसूद मांगे गए। हर बार टका सा जवाब मिलता है और हम थक-हारकर चुप बैठ जाते हैं। इस बार भी कोई अलग नतीजा निकल पाएगा, लगता तो नहीं। सच बात तो यह है कि पूरे शोर-शराबे का मकसद सिफॆ जनता का ध्यान बंटाना है। हर बार इस तरह के बड़े हमलों के बाद हमारी सरकारें सियासी प्रबंधन में जुट जाती हैं। ताकि उसे कम से कम राजनीतिक नुकसान हो। कुछ इसी तरह की सोच शिवराज और आरआर पाटिल को हटाने और के पीछे भी दिखती है। शिवराज और चिदबंरम का फकॆ दिखेगा, इसकी क्या गारंटी है। शिवराज पाटिल के पहले आडवाणी के वक्त भी तो हालत कुछ इसी तरह की थी। जाहिर है, कुरसी पर बैठे इंसान को बदलने से कुछ नहीं होता। सच बात तो यह है कि बेहतर शासन-प्रशासन को लेकर किसी राजनेता या राजनीतिक दल के पास न तो कोई योजना है और न ही इच्छा। यही वजह है जनता का ध्यान बंटाने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। कोई आरआर पाटिल अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले को छोटी-मोटी बात कहता है तो कोई जनता के विरोध पर ही सवाल खड़ा करता है। समस्या केवल नेताओं या राजनीतिक दलों की नहीं है। पूरे समाज को देखें तो कहीं कोई तसल्लीबख्श बात नजर नहीं आएगी। आम जनता कहती है कि हमारे नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। बार-बार दोहराई जाने वाली इस बात को कहते वक्त कोई अपने अंदर झांककर नहीं देखना चाहता। नेताओं के दामन को दागदार बतानेवालों में वे भी शामिल हैं जो चावल, दाल और मसाले में मिलावट करते हैं। दूध में पानी मिलाने का मौका भी कोई नहीं छोड़ता। घूस लेकर काम करनेवाले लोग भी नेताओं को गालियां देने वालों में शामिल हैं तो घूस की बदौलत बड़ा या छोटा काम करवाने वाले भी। जिसे जहां मौका मिल रहा है वहीं भ्रष्टाचार के बहते नाले में डुबकी लगा रहा है। फिर हम किसी पाक-साफ नेता की उम्मीद करते भी हैं तो क्यों? आखिर नेता भी इसी समाज से निकलकर आएगा, ऊपर से तो आएगा नहीं। किसी आतंकी हमले या इसी तरह की किसी विपदा को लेकर नेताओं और सरकार पर बरस पड़ने वालों में वे लोग भी शामिल हैं जो चुनाव के दिनों अपने वोट का इस्तेमाल करने तक निकलने में कष्ट महसूस करते हैं। आखिर तभी तो अक्सर मतदान प्रतिशत साठ-पैंसठ फीसदी से आगे नहीं बढ़ता। मतलब सिफॆ यह कि नेताओं और सत्ता प्रतिष्ठान पर बरसने से कुछ नहीं होगा। पूरे समाज में बदलाव चाहिए। आतंक, भय-भूख और भ्रष्टाचार से लड़ने का संकल्प चाहिए। विभाजनकारी तत्वों से लड़ने की तत्परता और देश को एकजुट रखने के लिए कोई भी कुरबानी देने का माद्दा चाहिए। सिफॆ सरकार से उम्मीद लगाए न रहें, खुद भी कुछ करें। इससे काम नहीं चलने वाला कि हम क्या कर सकते हैं, यह तो सरकार और प्रशासन का काम है। या हमारे किए क्या होगा? यह वक्त जागने का है। वरना पता नहीं फिर हालात अपने हाथ में रहें या नहीं।

शेखी बघारतें हैं

---- चुटकी---- वो हमें जब चाहें घर में घुसकर मारते हैं, और फ़िर हम लुटी पिटी हालत में अपनी बहादुरी की शेखी बघारतें हैं। ---- इस बात पर हँसी आती है, कि पाटिल में शर्म और नैतिकता अभी बाकी है।

Sunday, November 30, 2008

दे जाना चाहता हूँ तुम्हे

ऊब और उदासी से भरी इस दुनिया में पांच हंसते हुए सालों के लिए देना तो चाहता था तुम्हे बहुत कुछ प्रकृति का सारा सौंदर्य शब्दों का सारा वैभव और भावों की सारी गहराई लेकिन कुछ भी नहीं बच्चा मेरे पास तुम्हे देने के लिए फूलों के पत्तों तक अब नहीं पहुंचती ओस और पहुँच भी जाए किसी तरह बिलकुल नहीं लगती मोतियों सी समंदर है तो अभी भी उतने ही अद्भुत और उद्दाम पर हर लहर लिख दी गयी है किसी और के नाम पह्दों के विशाल सीने पर अब कविता नहीं विज्ञापनों के जिंगल सजे हैं खेतों में अब नहीं उगते स्वप्न और न बंदूकें ... बस बिखरी हैं यहाँ-वहां नीली पद चुकीं लाशें सच मनो इस सपनीले बाज़ार में नहीं बचा कोई दृश्य इतना मनोहारी जिसे दे सकूँ तुम्हारी मासूम आँखों को नहीं बचा कोई भी स्पर्श इतना पवित्र जिसे दे सकूँ तुम्हे पहचान की तरह बस समझौतों और समर्पण के इस अँधेरे समय में जितना भी बचा है संघर्षों का उजाला समेटकर भर लेना चाहता हूँ अपनी कविता में और दे जाना चाहता हूँ तुम्हे उम्मीद की तरह जिसकी शक्ल मुझे बिलकुल तुम्हारी आँखों सी लगती है

अशोक कुमार पाण्डेय

http://asuvidha.blogspot.com

Saturday, November 29, 2008

चुनावी हवा बह रही है ...

राजनीत की रसोई में नित बनते नए पकवान चुनावी हवा बह रही है सुनो नेताओं के गुणगान सुनो नेताओं के गुणगान जो लगे हैं देश को बांटने गली गली में घूम रहे हैं सिर्फ़ वोटरों को आंकने कह सुलभ कविराय आज सुनलो सारे उम्मीदवार सीधे नरक में जाओगे जो चुनोगे जाती-धर्म की दीवार ॥ सुलभ पत्र - Hindi Kavita Blog

शहीद हूँ मैं .....

दोस्तों , मेरी ये नज़्म , उन सारे शहीदों को मेरी श्रद्दांजलि है , जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर , मुंबई को आतंक से मुक्त कराया. मैं उन सब को शत- शत बार नमन करता हूँ. उनकी कुर्बानी हमारे लिए है . शहीद हूँ मैं ..... मेरे देशवाशियों जब कभी आप खुलकर हंसोंगे , तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... जो अब कभी नही हँसेंगे... जब आप शाम के अपने घर लौटें ,और अपने अपनों को इन्तजार करते हुए देखे, तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... जो अब कभी भी मेरा इन्तजार नही करेंगे.. जब आप अपने घर के साथ खाना खाएं तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... जो अब कभी भी मेरे साथ खा नही पायेंगे. जब आप अपने बच्चो के साथ खेले , तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... मेरे बच्चों को अब कभी भी मेरी गोद नही मिल पाएंगी जब आप सकून से सोयें तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... वो अब भी जागते है ... मेरे देशवाशियों ; शहीद हूँ मैं , मुझे भी कभी याद कर लेना .. आपका परिवार आज जिंदा है ; क्योंकि , आज मैं नही हूँ....

यह कैसी बहस?

एक ब्लॉग पर टिप्पणियों के माध्यम से यह बहस चल रही है कि आतंकियों की गोलियों का शिकार बने एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे शहीद कहलाने का हक रखते हैं या नहीं? पूरी बहस महज बौद्धिकता के प्रदशॆन के लिए मौत के बाद किसी के चरित्रहनन जैसा ही है? शहीद नरकगामी नहीं होते..पर टिप्पणियों को देखकर लगता है, जैसे खुद को प्रबुद्ध साबित करने के लिए कुछ लोग, मर चुके कुछ लोगों की चीर-फाड़ में लगे हों। करकरे क्या किसी भी आदमी के अतीत के सभी पन्ने सुनहरे ही नहीं होते। कुछ पन्नों पर काली स्याही से लिखी कुछ इबारतें भी होती हैं। टिप्पणियां करनेवाले भी अपने अंदर टटोलकर देखें तो एेसा ही पाएंगे। घर बैठकर जुगाली करना बहुत आसान होता है। आतंकी हमले के बीच सिफॆ छुपने की बात सोचने वाले लोग ही किसी की मौत पर अफसोस प्रकट करने की बजाय तंज कर सकते हैं। वरना इतना तो सच है ही कि हेमंत करकरे हमले के बाद तुरंत अपने दायित्वों का निवॆहन करने निकल पड़े थे। ड्राइंगरूम में अलसाए हुए टीवी नहीं देख रहे थे। साध्वी की गिरफ्तारी जायज है या नाजायज यह अदालत के सिवा कोई और कैसे तय कर सकता है? यह गलत भी हो तो केवल साध्वी को गिरफ्तार भर कर लेने से उनका शहीद कहलाने का हक नहीं छिन जाता। वैसे तो आत्मप्रचार के लिए जानबूझकर किसी की मौत पर मजमा लगाना ही जायज नहीं माना जा सकता। कोई शहीद कहा जाएगा या नहीं यह तो बाद की बात है। अपनी संस्कृति और परंपरा तो यही कहती है कि हम किसी की मौत के बाद उसके बारे में अच्छा ही अच्छा सोचते और कहते हैं। कम से कम इस परंपरा का ख्याल तो रखा ही जाना चाहिए। वैसे भी इस पूरी बहस से नुकसान भले ही हो, किसी का भला होते तो नहीं दिखता।

आतंकंवेशन

क्या कारण है , आतंकवाद का ? अज्ञानता ,धर्मान्धता या फिर अन्याय !! क्या कारण है उनके निर्भीक होने का ? क्योंकि जान देके ही हो सकती है, उनकी आय !! उनके लिए जीना मरने से दुस्कर क्यों है ? क्योंकि उन्हें लगता है , कि उन्हें नहीं मिल सकता है न्याय !! आतंकवाद के पीछे बर्बाद राष्ट्र हैं , और उनके शासक राजनीती खेल रहें हैं !! इन राष्ट्रों के नागरिक पैदा होने पर रो रहें है , और एक रोटी के लिए खून कि होली खेल रहें हैं !! बिहार बंगाल का आतंक नक्श्ली है , बाहर का आतंक ही असली है , यह मानदंड दोहरा है , हमारी आंखों पर मोतियाबिंद धरा है !! घर के हालत शासनकर्ताओं मत बिगड़ने , जो अमेरिका ने जग में किया महारास्ट्र को भारत में न करने दो!! आतंकवाद के अंत कि अब एक ही गुंजाईश है , हर कोई खुश रहे जहाँ में , सबके पास कुछ खोने को हो; अल्लाह -ताला से यही गुजारिश है !! सोचता हूँ ,ऊपरवाला मुझे सुन रहा होगा , कदम सही बढ़ाना होगा तभी सब ठीक होगा !! ~विनयतोष मिश्रा

Friday, November 28, 2008

काले कपोत

किसी शांतिदूत की सुरक्षित हथेलियों में उन्मुक्त आकाश की अनंत ऊँचाइयों की निस्सीम उडान को आतुर शरारती बच्चों से चहचहाते धवल कपोत नही हैं ये न किसी दमयंती का संदेशा लिए नल की तलाश में भटकते धूसर प्रेमपाखी किसी उदास भग्नावशेष के अन्तःपुर की शमशानी शान्ति में जीवन बिखेरते पखेरू भी नही न किसी बुजुर्ग गिर्हथिन के स्नेहिल दाने चुगते चुरगुन मंदिरों के शिखरों से मस्जिदों के कंगूरों तक उड़ते निशंक शायरों की आंखों के तारे बेमज़हब परिंदे भी नही ये भयाकुल शहर के घायल चिकित्सागृह की मृत्युशैया सी दग्ध हरीतिमा पर निःशक्त परों के सहारे पड़े निःशब्द विदीर्ण ह्रदय के डूबते स्पंदनों में अँधेरी आंखों से ताकते आसमान गाते कोई खामोश शोकगीत बारूद की भभकती गंध में लिपटे ये काले कपोत ! कहाँ -कहाँ से पहुंचे थे यहाँ बचते बचाते बल्लीमारन की छतों से बामियान के बुद्ध का सहारा छिन जाने के बाद गोधरा की उस अभागी आग से निकलबडौदा की बेस्ट बेकरी की छतों से हो बेघर एहसान जाफरी के आँगन से झुलसे हुए पंखों से उस हस्पताल के प्रांगन में ढूँढते एक सुरक्षित सहारा शिकारी आएगा - जाल बिछायेगा - नहीं फंसेंगे का अरण्यरोदन करते तलाश रहें हो ज्यों प्रलय में नीरू की डोंगी पर किसी डोंगी में नहीं बची जगह उनके लिए या शायद डोंगी ही नहीं बची कोई उड़ते - चुगते- चहचहाते - जीवन बिखेरते उजाले प्रतीकों का समय नहीं है यह हर तरफ बस निःशब्द- निष्पंद- निराश काले कपोत ! ( यह कविता अहेमदाबाद के हास्पीटल में हुए विश्फोटों के बाद लिखी थी ... फिर एक हादसा... कवि और कर भी क्या सकता है.... या कर सकता है ? )

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कितनी अजीब बात है

कितनी अजीब बात है , बॉम्बे में धमाके न हुए जैसे सब को अपने अपने ब्लॉग पर लिखने का सामान मिल गया और इस में हम भी शामिल है ,इस बात से इनकार नही कोई आक्रोश करता है ,कोई हमदर्दी ,कोई शहीदों पर ताने कसता है ,कोई सरकार को गाली देता है क्या है ये सब ? सब को हक़ है अपने ब्लॉग पर अपने विचार रखने का मगर खुदा के लिए किसी शहीद का मजाक न बनाये हो सके उसके घर जाके सांत्वना दे कुछ निधि जमा करिएँ जिससे के उनके घरवालों को मदत मिले ली होगी किसी शहीद ने रिश्वत अ नही भी ,वो लाख बुरा इंसान सही ,मगर वो आज खून से धुला है अपनी जान दी है उसने देश के लिए हम सब के लिए हम में तो हिम्मत नही है न की गोली चलाये या गोली का सामना करे फिर जो ये कर सके उसका आदर तो हो

भारत और आतंकवाद

कभी घुसपैठ तो कभी जेहाद और आतंकवाद लगे हैं सबके सब करने भारत को बरबाद भारत को बरबाद रोज हो रहा ख़ूनी खेल ढुलमुल विदेश नीति की देखो रेलमपेल कह सुलभ कविराय क्षमादान अब त्यागो समय रहते आतंकवाद को जड़ से मिटादो

आज मेरा देश जल रहा है , कोई तो मेरे देश को बचा ले....

आज सुबह देखा तो मुबई की घटनाओ ने दिल दहला दिया . मुझे ये बात समझ नही आती है कि कोई भी आतंकवादी , हमारे जैसा सामर्थ्यवान देश में कैसे बार - बार चले आतें है , शायद दुनिया में भारत ही अकेला ऐसा देश है जो इतना सामर्थ्यवान होने के बावजूद इन हमलों को रोक नही पाता है. अच्छा ,एक बात और ..; अगर बाहर के आतंकवादी हमलों से हमारा पेट नही भरता , जो आपस में ही धर्म, भाषा, जाती , इत्यादि के नाम पर लड़ लेते है . और इन सारी बातों में सिर्फ़ बेक़सूर लोग मरते है ... मेरा देश अब पूरी तरह से banana country बन गया है ... किसी को क्या दोष दे... ...आईये दोस्तों मेरे साथ प्रार्थना करें... आज मेरा देश जल रहा है , कोई तो मेरे देश को बचा ले. कौन है ये ? कोई हिंदू ,कोई मुस्लिम, कोई सिख या कोई ईसाई ; क्या इनका कोई चेहरा भी है ? क्या ये इंसान है .... क्यों ये मेरे देश की हत्या करतें है , क्यों ये मेरी माँ का सीना छलनी करतें है .. हे प्रभु ; कोई कृष्ण ,कोई बुद्ध ,कोई नानक , कोई ईसा ; पैगम्बर बन कर मेरे देश आ जाए .. मेरे देश को जलने से बचाए . मेरे देश को मरने से बचाए.. आओं दोस्तों , मिल कर हम सब, इंसानियत का धर्म आपस में फैलाएं मिल कर हम सब मेरे देश को बचाएँ ... मेरे देश को बचाएँ

"दोषी कौन"

"दोषी कौन" मैं ताज ..... भारत की गरिमा शानो शौकत की मिसाल शिल्प की अद्भुत कला आकाश की ऊँचाइयों को चूमती मेरी इमारतें , शान्ति का प्रतीक ... आज आंसुओं से सराबोर हूँ मेरा सीना छलनी जिस्म यहाँ वहां बिखरा पढा आग की लपटों मे तडपता हुआ, आवाक मूक दर्शक बन अपनी तबाही देख रहा हूँ व्यथित हूँ व्याकुल हूँ आक्रोशित हूँ मुझे कितने मासूम निर्दोष लोगों की कब्रगाह बना दिया गया... मेरी आग में जुल्स्ती तडपती, रूहें उनका करुण रुदन , क्या किसी को सुनाई नही पढ़ता.. क्या दोष था मेरा .... क्या दोष था इन जीवित आत्माओं का ... अगर नही, तो फ़िर दोषी कौन.... दोषी कौन, दोषी कौन, दोषी कौन?????

Thursday, November 27, 2008

इश्क की लत

कहते है आदते बदली जा सकती है जो कोई जिद्द पे उतर आए ये नामुमकिन है एक बार गर किसी को इश्क की लत लग जाऐ

सबसे बुरे दिन

सबसे बुरे दिन नहीं थे वे जब घर के नाम पर चौकी थी एक छह बाई चार की बमुश्किलन समा पाते थे जिसमे दो जिस्म लेकिन मन चातक सा उड़ता रहता था अबाध! बुरे नहीं वे दिन भी जब ज़रूरतों ने कर दिया था इतना मजबूर कि लटपटा जाती थी जबान बार बार और वे भी नहीं जब दोस्तों की चाय में दूध की जगह मिलानी होती थी मजबूरियां कतई बुरे नहीं थे वे दिन जब नहीं थी दरवाजे पर कोई नेमप्लेट और नेमप्लेटों वाले तमाम दरवाजे बन्द थे हमारे लिये इतने बुरे तो खैर नहीं हैं ये भी दिन तमाम समझौतों और मजबूरियों के बावजूद आ ही जाती है सात-आठ घण्टों की गहरी नींद और नींद में वही अजीब अजीब सपने सुबह अखबार पढ़कर अब भी खीजता है मन और फाइलों पर टिप्पणियाँ लिखकर ऊबी कलम अब भी हुलस कर लिखती है कविता। बुरे होंगे वे दिन अगर रहना पड़ा सुविधाओं के जंगल में निपट अकेला दोस्तों की शक्लें हो गई बिल्कुल ग्राहकों सीं नेमप्लेट के आतंक में दुबक गया मेरा नाम नींद सपनों की जगह गोलियों की हो गई गुलाम और कविता लिखी गई फाईलों की टिप्पणियांे सी। बहुत बुरे होंगे वे दिन जब रात की होगी बिल्कुल देह जैसी और उम्मीद की चेकबुक जैसी वि’वास होगा किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी का विज्ञापन खुशी घर का कोई नया सामान और समझौते मजबूरी नहीं बन जायेंगे आदत। लेकिन सबसे बुरे होंगे वे दिन जब आने लगेगें इन दिनों के सपने!

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Wednesday, November 26, 2008

परायों के घर

कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई; सपनो की आंखो से देखा तो, तुम थी, मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी, उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था, मैंने तुम्हारे लिए, एक उम्र भर के लिए ... आज कही खो गई थी, वक्त के धूल भरे रास्तों में ...... शायद उन्ही रास्तों में .. जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो.... क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं कि, परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते..... विजय कुमार M : 09849746500 E : vksappatti@rediffmail.com B : www.poemsofvijay.blogspot.com

Tuesday, November 25, 2008

घोटाला हो रहा है

घोटाला हो रहा है !
बैंकों में रहने वाला पैसा तकिये के अन्दर काला हो रहा है . 
रातों में भी चलने वाले कारखानो पर ताला हो रहा है .
अब नथ्थू हलवाई विदेशी शर्मा जी का साला हो रहा है 
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है ! 
बेरोजगार बिना रोजगार के जबरन उद्योगपति हो गए 
जो सच्चे कर्मों से उद्योगपति हुए थे वह रोडपति हो गए  
भाग्य को धन से बड़ा मान अमीर गरीबों के दम्पति हो गए 
शेयर के चक्कर में सपनों में जीने वाले दुर्गति को गए  
एक बार फिर से कापित्लिस्म का मुंह कला हो रहा है 
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है!
 
आज कर्ज में डूबा है हर बुढ्ढा हर बच्चा 
बड़े कारोबारी भी खा गए हैं गच्चा  
फिर से सुनने मैं आया स!दा जीवन सच्चा 
उद्योगपति बेरोजगार को लगने लगा उचक्का  
सपनों में भी सपनों पर ताला हो रहा है  
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है ! 
~विनयतोष मिश्रा

Monday, November 24, 2008

इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं

मालेगांव धमाके की जांच कर रही एटीएस बड़ी जल्दबाजी में है। रोज-रोज नए-नए खुलासे कर रही है। ऐसा जताया जा रहा है जैसे एटीएस बड़ी समझदारी के साथ गुत्थी सुलझाती जा रही है। हर खुलासे को मीडिया मैं जोर-शोर से उछाला जा रहा है। एटीएस और मीडिया की भी भाषा इन खुलासों को लेकर ऐसी ही होती है, जैसे ki बिना मुकदमा चलाए, बिना अदालत ka फैसला आए- निर्णय सुना दिया गया हो। एटीएस ने जिसकa नाम भर ले लिया वह अपराधी। समझ में नहीं आता ki एटीएस खुलासा करने ke मामले में इतनी जल्दबाजी क्यों बरत रही है? हो सकता है, एटीएस जो खुलासे कर रही है-सच हों। उसke पास सुबूत हों, तथ्य हों। पर इन तथ्यों और सुबूतों को अदालत में परखा जाना तो अभी बाकी है। अदालत में यह तय होना अभी बाकी है ki क्या वास्तव में ये सारे लोग आतंकी हरकतों यानी धमाको में लिप्त हैं, जिनका नाम एटीएस ले रही है। lekin इससे पहले ही पूरी दुनिया में यह संदेश जा chuka है ki भारत में हिंदुओं ने भी आतंकवादी संगठन बना लिया है। इस आतंकी संगठन से जुड़े लोग धमाके कर रहे हैं। ऐसा है या नहीं, इसके पक्ष-विपक्ष में तमाम तर्क दिए जा रहे हैं। इन बातों को छोड़ दें तो जब तक अदालत ka फैसला आएगा पूरी दुनिया में यह बात स्थापित हो चुकी होगी िक भारत के हिंदू जवाबी आतंकी कार्रवाई कर रहे हैं। मान लिया जाए िक अदालत एटीएस द्वारा बताए जा रहे सभी आरोपियों को निर्दोष मान ले, तब क्या यह स्थापना खत्म की जा सकेगी? क्या तब हिंदू आतंकवादी शब्द, जिसे मीडिया में जोर-शोर से उछाला जा रहा है, खत्म हो जाएगा? या यह धब्बा तब भी बना रहेगा। इसके उलट यह मान लें िक अदालत में साबित हो जाता है िक एटीएस ·के द्वारा बताए गए और गिरफ्तार सभी लोग धमाकों में शामिल रहे हैं। तब भी कुछ सवाल हैं-क्या गिरफ्तार kiye गए पुरोहित, साध्वी, दयानंद जैसे चंद लोग पूरे हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं? आखिर हिंदू आतंकवादी क्यों, सिर्फ अपराधी या आतंकवादी क्यों नहीं? हां, यही आपत्ति मुस्लिम आतंकवादी कहने पर भी लागू होना चाहिए। और ऐसी आपत्तियां पूरे विश्व में जोर-शोर से उठती भी रहती हैं। ध्यान देने वाली बात यह भी है ki जब कश्मीर के मुस्लिम युवक kiसी आतंकी कार्रवाई को अंजाम देते हैं तो समझदार माने/कहे जाने वाले लोग उसे भटके हुए चंद युवकों की कार्रवाई बताते हैं। आश्चर्य होता है ki वही समझदार लोग हिंदू आतंकवादी शब्द पर आपत्ति नहीं करते। एटीएस की थ्योरी सही भी हो तो यहां तो सचमुच चंद भटके हुए लोग हैं। एक जमाना था जब भारत में होने वाली हर आतंकी कार्रवाई के लिए पड़ोसी देश को जिम्मेदार ठहराया जाता था। बात-बात पर उसे आतंकियों को संरक्षण देने वाला देश कहा जाता था। हिंदू आतंकवादी शब्द को आज जिस जोर-शोर से प्रचारित kiya जा रहा है, कल को कोई भी पड़ोसी देश अपने यहां होने वाली आतंकी गतिविधियों के लिए हमें जिम्मेदार ठहराने लगे, तो क्या होगा? हमें सोचना ही होगा ki हमारी अभी ki जल्दबाजी के ऐसे भी परिणाम हो सकते हैं। खासकर मीडिया, अदालत के फैसले के पहले ही फतवा जारी करने की अपनी आदत से बाज आए। िकसी भी जांच एजेंसी की बातों को नतीजे जैसा प्रचारित करने की मीडिया की आदत पर रोक तो लगनी ही चाहिए। अन्यथा होता यह है ki आरोप को ही, जांच एजेंसी की बातों के आधार पर खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया चीख-चीखकर सत्य और तथ्य ka रूप दे देता है। दुखद तो यह भी है ki मीडिया में आरोपों की बात जितनी जोर-शोर से आती है, अदालत में आरोप खारिज होने पर मीडिया की आवाज उतनी ही धीमी होती है। इतनी धीमी ki अधिसंख्य लोग तो उसे सुन भी नहीं पाते।

Thursday, November 20, 2008

गुनाह

खुदा से कहते है बंदे तुझ से मोहोब्बत है बेपनाह इन्सा को इंसानियत से इश्क़ क्यूँ हो जाता गुनाह

"कभी कभी"

"कभी कभी"
दिल मे बेकली हो जो, " कभी कभी" क्यूँ शै बेजार लगे हमे सभी कोई तम्मना भी न बहला सकी, क्यूँ हर शाम गुनाहगार लगे" कभी कभी..........."

Wednesday, November 19, 2008

बड़ी मछली छोटी मछली

बहुत दिनों से मेरे मन में एक बात आ रही थी की क्या वाकई में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है ? खैर सबसे पहले सभी ब्लोगर भाइयों को बंडमरु का नमस्कार । देर से ही सही दुरुस्त आए तो काफी आच्छा होता है काफी दिनों बाद आ रहा हूँ मैं । तो मै आपनी बात पर आता हूँ की क्या वाकई में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है ? कहानी कुछ यु शुरू होती है मैं अपने ऑफिस में काम कर रहा था की मेरे सर आए और कुछ बडबडाते हुए से आए । और कहने लगे की सभी जगह एक ही हाल है हर बड़ी मछली छोटी मछली को खाने के लिए आतुर होती है । चुकी हमारे वो बॉस है मैं उनसे कुछ पूछ नही सकता लेकिन बातचीत से लगा की उनके बॉस ने उनको दे दिया है खाने पिने भर ........ हालाँकि वो भी यानि मेरे बॉस भी कुछ कम नही है लेकिन अपने पर बीतती है तब इसका आभास होता है। इधर कुछ महीनो से मैं आपने कार्यक्रम में ब्यस्त था हम लोग भोजपुर जिले में एक कार्यक्रम करते है भोजपुर बल महोत्सव जिसमे पुरे जिले से ५००० से ७००० बच्चें भाग लेतें हैं । यह कार्यक्रम जिले स्तर का प्रतियोगिता होता है। इसी कार्यक्रम में ब्यस्त होने के करण मैं ब्लॉग पर नही आ सका। इस कार्य क्रम में मैं और मेरे तिन दोस्तों के सात भी वही हुआ । इस कार्य क्रम को कराने वाली संस्था में मै भी एक आदना सा सदस्य हूँ। खैर मैं अपने ऑफिस में अपने सहकर्मी से इस बाबत बात किया की वाकई में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है ? तो उसने कहा की बड़ी मछली को आजकल सोचना पड़ सकता है छोटी मछली को निगलने के लिए । वो पुराने ज़माने की बात है जब बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती थी। अब देखते है आप लोगो की क्या राय हैं ।

Monday, November 17, 2008

"कतरा कतरा"

"कतरा कतरा" कतरा कतरा दरया देखा , कतरे को दरया में न देखा , लम्हा लम्हा जीवन पाया, जीवित एक लम्हे को न पाया, आओ हम दोनों मिलकर एक लम्हे को जिंदा कर दें, प्रेम प्रणव से जीवन भर दें

Sunday, November 16, 2008

गिरगिट समाज के सामने संकट

श्रीगंगानगर की सड़कों पर बहुत ही अलग नजारा था। चारों तरफ़ जिधर देखो उधर गिरगिटों के झुंड के झुंड दिखाई दे रहे थे। गिरगिट के ये झुंड नारेलगा रहे थे " नेताओं को समझाओ, गिरगिट बचाओ", "गिरगिटों के दुश्मन नेता मुर्दाबाद", " रंग बदलने वाले नेता हाय हाय"," गिरगिट समाज का अपमान नही सहेगा हिंदुस्तान"। ये नजारा देख एक बार तो जो जहाँ था वही रुक गया। ट्रैफिक पुलिस को उनके कारन काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। गिरगिटों के ये सभी झुंड जा रहे थे राम लीला मैदान। वहां गिरगिट बचाओ मंच ने सभा का आयोजन किया था। रामलीला मैदान का नजारा, वह क्या कहने। लो जी सभा शुरू हो गई। जवान गिरगिट का नाम पुकारा गया। उसने कहा- यहाँ सभा करना कायरों का काम है। हमें तो उस नेता के घर के सामने प्रदर्शन करना चाहिए जिसने रंग बदल कर हमारी जात को गाली दी है। बस फ़िर क्या था सभा में सही है, सही है, के नारों के साथ जवान गिरगिट खड़े हो गए। एक बुजुर्ग गिरगिट ने उनको समझा कर शांत किया। गिरगिट समाज के मुखिया ने कहा, इन नेताओं ने हमें बदनाम कर दिया। ये लोग इतनी जल्दी रंग बदलते हैं कि हम लोगों को शर्म आने लगती है। जब भी कोई नेता रंग बदलता है , ये कहा जाता है कि देखो गिरगिट कि तरह रंग बदल लिया। हम पूछतें हैं कि नेता के साथ हमारा नाम क्यों जोड़ा जाता है। नेता लोग तो इतनी जल्दी रंग बदलते हैं कि गिरगिट समाज अचरज में पड़ जाता है। मुखिया ने कहा, हम ये साफ कर देना चाहतें है कि नेता को रंग बदलना हमने नहीं सिखाया। उल्टा हमारे घर कि महिला अपने बच्चों को ये कहती है कि -मुर्ख देख फलां नेता ने गिरगिट ना होते हुए भी कितनी जल्दी रंग बदल लिया, और तूं गिरगिट होकर ऐसा नहीं कर सकता,लानत है तुझ पर ... इतना कहने के बाद तडाक और बच्चे के रोने की आवाज आती है।मुखिया ने कहा हमारे बच्चे हमें आँख दिखातें हैं कहतें हैं तुमको रंग बदलना आता कहाँ है जो हमको सिखाओगे, किसी नेता के फार्म हाउस या बगीचे में होते तो हम पता नहीं कहाँ के कहाँ पहुँच चुके होते। मुखिया ने कहा बस अब बहुत हो चुका, हमारी सहनशक्ति समाप्त होने को है। अगर ऐसे नेताओं को सबक नहीं सिखाया गया तो लोग "गिरगिट की तरह रंग बदलना" मुहावरे को भूल जायेंगे। लम्बी बहस के बाद सभा में गिरगिटों ने प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में सभी दलों के संचालकों से कहा गया कि अगर उन्होंने रंग बदलने वाले नेता को महत्व दिया तो गिरगिट समाज के पाँच जीव हर रोज उनके घर के सामने नारे बाजी करेंगे। मुन्ना गिरी से उनको समझायेंगे। इन पर असर नही हुआ तो सरकार से "गिरगिट की तरह रंग बदलना" मुहावरे को किताबों से हटाने के लिए आन्दोलन चलाया जाएगा। ताकि ये लिखवाया जा सके "नेता की तरह रंग बदलना"। सभा के बाद सभी गिरगिट जोश खरोश के साथ वापिस लौट गए।

ग़ज़ल - प्रमोद कुश ' तनहा '

हम चले हम चल दिए हम चल पड़े आज फिर माथे पे उनके बल पड़े नींद सहलाएगी माथा उम्र भर आँख पे माँ का अगर आँचल पड़े आज हम पे आ पड़ा है वक्त ये आप की किस्मत में शायद कल पड़े रुक गए मेरे कदम क्यों दफअतन रास्ते कुछ दूर जो समतल पड़े ख़त मिला बेटे का बूढ़े बाप को बाप की आँखों से मोती ढ़ल पड़े रात गुज़री किस तरह मत पूछिये देखिये बिस्तर में कितने सल पड़े इक तसव्वुर एक 'तनहा' रात थी हर तरफ़ लाखों दिए क्यों जल पड़े - प्रमोद कुमार कुश ' तनहा '

Friday, November 14, 2008

"वीरानो मे"

"वीरानो मे"
खामोश से वीरानो मे, साया पनाह ढूंढा करे, गुमसुम सी राह न जाने, किन कदमो का निशां ढूंढा करे.......... लम्हा लम्हा परेशान, दर्द की झनझनाहट से, आसरा किसकी गर्म हथेली का, रूह बेजां ढूंढा करे.......... सिमटी सकुचाई सी रात, जख्म लिए दोनों हाथ, दर्द-ऐ-जीगर सजाने को, किसका मकां ढूंढा करें ........... सहम के जर्द हुई जाती , गोया सिहरन की भी रगें , थरथराते जिस्म मे गुनगुनाहट, सांसें बेजुबां ढूंढा करें................

Wednesday, November 12, 2008

तिरंगे नेता की दुरंगी चाल

लगभग चालीस साल पहले की बात है श्रीगंगानगर में राधेश्याम नाम का एक आदमी था। बिल्कुल एक आम आदमी जो पाकिस्तान से आया था। उसने मेहनत की, आगे बढ़ा,थोड़ा जयादा आगे बढ़ा,राजनीति में आ गया। नगरपालिका का चेयरमेन बना। नगर में पहचान बनी,रुतबा हुआ। तकदीर ने साथ दिया दो पैसे भी पल्ले हो गए। उसके बाद इस आदमी ने पीछे मुड़कर देखा ही नही। कांग्रेस ने इसका ऐसा हाथ पकड़ा कि यह कांग्रेस का पर्याय बन गया। १९७७ से २००३ तक सात बार कांग्रेस की टिकट पर श्रीगंगानगर से विधानसभा का चुनाव लड़ा। तीन बार जीता चार बार हारा। एक बार तो राधेश्याम के सामने भैरों सिंह शेखावत तक को हारना पड़ा। उसके बाद राधेश्याम, राधेश्याम से राधेश्याम गंगानगर हो गए। २००३ में यह नेता जी ३६००० मतों से हार गए। तब इनको ३४१४० वोट मिले थे। इनको हराने वाला था बीजेपी का उम्मीदवार। इस बार कांग्रेस ने राधेश्याम को उम्मीदवार नही बनाया। बस उसके बाद तो नेता जी आपे से बहार हो गए,कांग्रेस नेताओं को बुरा भला कहा। बिरादरी की पंचायत बुलाई,लेकिन सभी ने नकार दिया। आज इस नेता जी ने दिल्ली में बीजेपी को ज्वाइन कर लिया। अब इनके श्रीगंगानगर से बीजेपी उम्मीदवार होने की उम्मीद है। इनके घर पर कई दशकों से इनकी शान का प्रतीक बना हुआ कांग्रेस के झंडे के स्थान पर बीजेपी का झंडा लगा दिया गया है। जब झंडा बदला जा रहा था तब लोग यह कह रहे थे कि झंडा डंडा सब बदल गया, तब नारदमुनि का कहना था कि जब आत्मा ही बदल गई तो झंडे डंडे की क्या बात। आत्मा के इस बदलाव ने सब के चेहरे के भाव बदल कर रख दिए। राजनीति तेरी जय हो,ऐसी राजनीति जिसमे नीति कहीं दिखाई नहीं देती।

"सजाएं"

"सजाएं"
इस खामोशी मे भी हरदम तुमसे बातें होतीं हैं , दूर जुदा रह कर भी ख्यालों मे मुलाकातें होती हैं.... हमको वफा का इनाम दिया , जी भर के इल्जाम दिया , तुमने हमको भुला दिया ये सोच के ऑंखें रोती हैं....
क्या खोया क्या पाया था जीवन युहीं गवांया था , तुमने भी ठुकराया है अब खोने को सांसें होती हैं.....
एक बोझ मगर सीने मे है , कौन सा ऐसा जुर्म हुआ , चाहत मे मर मिटने की क्या खोफ-जदा "सजाएं" होतीं हैं

Friday, November 7, 2008

सास बहू को विदाई

---- चुटकी---- एक महिला ने दूसरी से कहा ये क्या हो गया हाय, एकता कपूर ने सास बहू को बोल दिया बाय। ---- पता नहीं किसने नजर लगाई है, जो इसको विदा करने की नौबत आई है। ---- शायद 'बा' अमरत्व ले बैठा इसको, बा तो मरती नहीं इसलिए ख़ुद ही खिसको। ----गोविन्द गोयल

Thursday, November 6, 2008

यमराज को भाई बनाया

हिंदुस्तान की संस्कृति उसकी आन बान और शान है। दुनिया के किसी कौने में भला कोई सोच भी सकता है कि मौत के देवता यमराज को भी भाई बनाया जा सकता है। श्रीगंगानगर में ऐसा होता है हर साल,आज ही के दिन। महिलाएं सुबह ही नगर के शमशान घाट में आनी शुरू हो गईं। हर उमर की महिला,साथ में पूजा अर्चना और भेंट का सामान,आख़िर यमराज को भाई बनाना है। यमराज की बड़ी प्रतिमा, उसके पास ही एक बड़ी घड़ी बिना सुइयों के लगी हुई, जो यह बताती है की मौत का कोई समय नहीं होता। उन्होंने श्रद्धा पूर्वक यमराज की आराधना की उसके राखी बांधी, किसी ने कम्बल ओढाया किसी ने चद्दर। यमराज को भाई बनाने के बाद महिलाएं चित्रगुप्त के पास गईं। पूजा अर्चना करने वाली महिलाओं का कहना था कि यमराज को भाई बनाने से अकाल मौत नहीं होती। इसके साथ साथ मौत के समय इन्सान तकलीफ नही पाता। चित्रगुप्त की पूजा इसलिए की जाती है ताकि वह जन्मो के कर्मों का लेखा जोखा सही रखे। यमराज की प्रतिमा के सामने एक आदमी मारा हुआ पड़ा है,उसके गले में जंजीर है जो यमराज के हाथ में हैं। चित्रगुप्त की प्रतिमा के सामने एक यमदूत एक आत्मा को लेकर खड़ा है और चित्रगुप्त उसको अपनी बही में से उसके कर्मों का लेखा जोखा पढ़ कर सुना रहें हैं। सचमुच यह सब देखने में बहुत ही आनंददायक था। महिलाएं ग़लत कर रही थी या सही यह उनका विवेक। मगर जिस देश में नदियों को माता कहा जाता है वहां यह सब सम्भव है।

सोने का लिफाफा

एक लिफाफा कागज़ का था राह में बेसुध भटक रहा था फिजा सुनहरी साथ थी उसके उसके अन्दर चाँद छिपा था हल्की नीली शक्ल पे उसकी काला स्याह एक हरफ चढा था ख़त के ऊपर नाम था मेरा पता भी मेरे आँगन का था चाँद की आँखें सुर्ख लाल थी लबों से तारे बिखर रहे थे ग्यारह तारे आसमान में एक मेरी मुट्ठी में कैद था हथेलियों पर ख़ाक जमी थी तारा मेरे नाम का ना था बारह तारे आसमान में एक लिफाफा फटा हुआ था एक लिफाफा कागज़ का था जिसके अन्दर चाँद छुपा था फिजा सुनहरी साथ में लेकर उसका चेहरा ज़र्द पड़ा था

निष्ठा अपने स्वार्थ तक

श्रीगंगानगर में एक कांग्रेस नेता हैं राधेश्याम गंगानगर। इनको कांग्रेस का पर्याय कहा जाता था। गत सात विधानसभा चुनाव ने ये कांग्रेस के उम्मीदवार थे। बीजेपी के दिग्गज भैरों सिंह शेखावत को भी इनके सामने हार का मुहं देखना पड़ा। इस बार कांग्रेस ने इस बुजुर्ग को टिकट देना उचित न समझा। बस तो निष्ठा बदल गई,बगावत की आवाज बुलंद कर दी। जिनकी चौखट पर टिकट के लिए हाजिरी लगा रहे थे उन नेताओं को ही कोसना शुरू कर दिया। यहाँ तक कहा कि टिकट पैसे लेकर बांटी गई हैं। ऐलान कर दिया कि कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त करवा देंगें। अब इस नेता ने महापंचायत बुलाई है उसमे निर्णय होगा कि नेता जी को चुनाव लड़ना चाहिए या नही। राधेश्याम आज जो कुछ है वह कांग्रेस की ही बदोलत है जिसकी खिलाफत करने की वह शुरुआत कर रहा है। कांग्रेस ने जिस राज कुमार गौड़ को टिकट दी है वह बुरा आदमी नहीं है, साफ छवि का मिलनसार आदमी है। ३७ साल से राजनीति में है। सीधे सीधे किसी प्रकार का कोई आरोप नहीं है। लेकिन उसके पास कार्यकर्त्ता नहीं हैं। इतने लंबे राजनीतिक जीवन में गौड़ के साथ केवल तीन आदमी ही दिखे। ऐसे में वे क्या करेंगे कहना मुश्किल है। रही बात बीजेपी कि तो उसके पास इस से अच्छा मौका कोई हो नहीं सकता। जाति गत समीकरणों की बात करें तो उसके पास प्रहलाद टाक है। राजनीति में बिल्कुल फ्रेश चेहरा। इनके कुम्हार समाज को अभी तक बीजेपी कांग्रेस ने टिकट नहीं दी है। ओबीसी के इस इलाके में बहुत अधिक मतदाता हैं। कांग्रेस में बगावत के समय वे बीजेपी के लिए कोई चमत्कार करने सकते हैं। अन्य उम्मीदवार फिलहाल पीछे हुए हैं, उनकी टिकट मांगने की गति धीमी हो गई उत्साह भी नहीं रहा। जनता तो बस इंतजार ही कर सकती है।

Wednesday, November 5, 2008

"प्यार बेशुमार लिखूं"

"प्यार बेशुमार लिखूं"
अपने खामोश तकल्लुम मैं ये इज़हार लिखूं, हर जगह तेरे ही एक नाम की तकरार लिखूं... एक हरकत भी कलम की हो तुझे प्यार लिखूं, प्यार तू एक लिखे मैं तुझे सो बार लिखूं.... बेकरारी भरे दिल का तू ही है करार लिखूं, अपनी इन तेज बदहवास धड़कनों की रफ़्तार लिखूं... आज लाया हूँ तुझे दिल का ये उपहार लिखूं, हाँ मिलन के है अब बहुत जल्द ये आसार लिखूं.... तेरी नज़रों ने जो उठाया है वो खुमार लिखूं ,
अपने हर लफ्ज़ से तुझे प्यार बेशुमार लिखूं...

Tuesday, November 4, 2008

क्यों दिखाती हो झूठे ख्वाब

----- चुटकी----- जो कई साल से नहीं मिला वो मिलेगा,स्नेह करेगा तुम्हे पुचकारेगा, प्यार से पूछेगा तुमसे दिल की बात, हे सखी, क्यों तंग करती हो क्यों दिखाती हो झूठे ख्वाब, कुछ और न समझ सखी नेता जी आयेंगें क्योंकि सामने हैं चुनाव। ----गोविन्द गोयल

Monday, November 3, 2008

" तेरा होना "

" तेरा होना "
मुझे भाता है मेरे साथ मे तेरा होना, सोच मे बात मे जज्बात मे तेरा होना
जिंदगी के मेरे हर साज़ मे तेरा होना,
मेरे सुर मे मेरी आवाज़ मे तेरा होना, पल पल की बंधती हुई आस मे तेरा होना, मेरे हर एहसास के एहसास मे तेरा होना रूह मे रूह की हर प्यास मे तेरा होना, जीस्त की बाकी हर एक साँस मे तेरा होना, लगता है अब ये सफर सुख से गुजर जाएगा जब से पाया है मैंने साथ में तेरा होना .....

कुत्ते को घुमाते हैं शान से

---- चुटकी---- बुजुर्ग माँ-बाप के साथ चलते हुए शरमाते हैं हम, अपने कुत्ते को सुबह शाम घुमाते हैं हम। ------ अधिकारों के लिए लगा देंगें अपने घर में ही आग, अपने कर्त्तव्यों को मगर भूल जाते हैं हम। ---- कश्मीर से कन्याकुमारी तक खंड खंड हो रहा है देश फ़िर भी अनेकता में एकता के नारे लगाते हैं हम। ---- सबको पता है कि बिल्कुल अकेले हैं हम, हम, अपने आप को फ़िर भी बतातें हैं हम। ---गोविन्द गोयल

Sunday, November 2, 2008

खौफनाक मंज़र

देश की जानी-मानी न्यूज़ एजेन्सी सीएनएनआई के न्यूज़ ब्लॉग पर कुछ तस्वीरें डाली गयी हैं जो किसी भी इन्सान के रोगंटे खड़े कर सकती हैं। उन्ही मे से एक तस्वीर यहां डाल रहा हूँ। इस तस्वीर को देखकर आप जान जायेगें कि दुनिया मे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी मरने के बाद भी दुर्गति होती है। इस पर सवाल उठता है कि आखिर इसके लिये ज़िम्मेदार कौन है? साभार-CNNi

काजल की कोठरी में भी झकाझक

हम बुद्धिजीवी हर वक्त यही शोर मचाते हैं हैं की हाय!हाय! राजनीति में साफ छवि और ईमानदार आदमी नही आते। लेकिन देखने लायक जो हैं उनकी क्या स्थिति इस राजनीति में है,उसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। श्रीगंगानगर जिले में है एक गाँव है २५ बी बी। वहां के गुरमीत सिंह कुन्नर पंच से लेकर लेकर विधायक तक रहे। लेकिन किसी के पास उनके खिलाफ कुछ कहने को नही है। कितने ही चुनाव लड़े मगर आज तक एक पैसे का भी चंदा उन्होंने नहीं लिया। किसी का काम करवाने के लिए उन्होंने अपने गाड़ी घोडे इस्तेमाल किए। राजस्थान में जब वे विधायक चुने गए तो उन्हें सबसे ईमानदार और साफ छवि के विधायक के रूप में जाना जाता था। कांग्रेस को समर्पित यह आदमी आज कांग्रेस की टिकट के लिए कांग्रेस के बड़े लीडर्स की चौखट पर हाजिरी लगाने को मजबूर है। जिस करनपुर विधानसभा से गुरमीत कुन्नर टिकट मांग रहा है वहां की हर दिवार पर लिखा हुआ है किगुरमीत सिंह कुन्नर जिताऊ और टिकाऊ नेता है किंतु यह कहानी कांग्रेस के लीडर्स को समझ नहीं आ रही। गत दिवस हजारों लोगों ने गुरमीत सिंह कुन्नर के यहाँ जाकर उनके प्रति समर्थन जताया, उनको अपना नेता और विधायक माना। ऐसी हालातों मेंकोई सोच सकता है कि ईमानदार और साफ छवि के लोग राजनीति में आयेंगें। पूरे इलाके में कोई भी एजेंसी सर्वे करे या करवाए, एक आदमी भी यह कहने वाला नहीं मिलेगा कि गुरमीत सिंह कुन्नर ने किसी को सताया है या अपनी पहुँच का नाजायज इस्तेमाल उसके खिलाफ किया। जब राजनीति का ये हाल है तो कोई क्या करेगा। यहाँ तो छल प्रपंच करने वालों का बोलबाला है। राजनीति को काजल की कोठरी कहना ग़लत नहीं है। जिसमे हर पल कालिख लगने की सम्भावना बनी रहती है। अगर ऐसे में कोई अपने आप को बेदाग रख जन जन के साथ है तो उसकी तारीफ की ही जानी चाहिए। जागरूक ब्लोगर्स,इस पोस्ट को पढ़ने वाले बताएं कि आख़िर वह क्या करे? राजनीति से सन्यास लेकर घर बैठ जाए या फ़िर लडाई लड़े जनता के लिए जो उसको मानती है।

छठी का दूध याद आ गया

---- चुटकी----- राज ठाकरे तो एक दम से पलटी खा गया, शायद उसको छठी का दूध याद आ गया। -----गोविन्द गोयल

Saturday, November 1, 2008

अंधेर नगरी चौपट राजा

---चुटकी---- अंधेर नगरी चौपट राजा, हिंदुस्तान का तो बज गया बाजा। टके सेर भाजी टके सेर खाजा, लूटनी है तो जल्दी से आजा। ---गोविन्द गोयल

Friday, October 31, 2008

नारदमुनि ख़बर लाये हैं

देश,काल, धर्म, वक्त,परिस्थितियां कैसी भी हों एक दूसरे को गिफ्ट देने से आपस में प्यार बढ़ता है। यह बात माँ द्वारा अपने लाडले के गाल पर चुम्बन लेने से लेकर जरदारी का अमेरिका की उस से हाथ मिलाने तक सब पर एक सामान लागू होती है। जब सब ऐसा करते कराते हैं तो पत्रकारों ने क्या बुरा किया है। ऐसा ही सोचकर एक नेता ने पत्रकारों को गिफ्ट पैक बड़े स्टाइल से भिजवाए। ये पैक उनका छोटा भाई और उनका पी आर ओ कम प्रवक्ता कम खबरिया लेकर गए। पैक में एक डिब्बा काजू कतली का और एक शगुन वाला लिफाफा। लिफाफे में थी नकदी। किसी में ११०० रूपये,किसी में २१०० रूपये किसी में ५१०० रूपये भी थे। नेता जी की नजरों में जो जैसा था उसके लिए वैसा ही गिफ्ट। अब कईयों ने इसको स्वीकार कर लिया और कईयों ने वापिस लौटा दिया। सबके अपने अपने विवेक, इस लिए सबने अपनी ओर से ठीक ही किया। कोई इसको सही बता रहा है कोई ग़लत। दोनों सही है। नेता जी के पास फिल्ड में रहने वाले पत्रकारों से हाथ मिलाने का इस से अच्छा मौका और हो भी क्या सकता था। मालिक लोगों के पास तो बड़े बड़े विज्ञापन पहुँच जाते हैं। ऐसे में पत्रकारों ने लिफाफे लेकर अच्छा किया या नहीं किया, इस बारे में नारदमुनि क्यों कुछ कहे। नारदमुनि तो ख़ुद पत्रकारों से डरता है।

Wednesday, October 29, 2008

सारी रात जले वो भी

-----चुटकी----- माना की तुम दीप जला रही हो दिवाली की खुशियाँ मना रही हो, क्या होगा उसका जरा सोचो जिसको तुम भुला रही हो, जला देना एक दीपक उसका भी तुम्हारे दीपक के साथ जले वो भी जिस तरह जलता है दिल उसका उसी तरह ता जिंदगी जले वो भी। ---गोविन्द गोयल

आज होगी उनकी दिवाली

नारदमुनि रात से ही व्यस्त थे। लक्ष्मी की गतिविधियों की जानकारी प्रभु तक पहुंचानी थी। लक्ष्मी चंचल यहाँ जा, वहां जा। जिसके बरसी खूब बरसी, जिनके यहाँ नहीं गई तो नहीं गई। नारदमुनि ने देखा कि लक्ष्मी माँ तो झूठे, मक्कार,सटोरिये,भ्रष्ट नेता अफसर, कर्मचारी, बेईमानों के यहाँ इस प्रकार जा रही थी जैसे वे उनके मायके के हों। ये सब के सब पुरी शानो-शौकत के साथ लक्ष्मी जी का स्वागत सत्कार करने में लगे थे। नारदमुनि इनके खारों के बाहर खड़े इंतजार करते रहे । लक्ष्मी जी की अधिकांश कृपा ऐसे लोगों पर ही हुई। अब लक्ष्मी जी थक गईं। उन्होंने उल्लू से कहा कि वह बाकी के काम निपटा के क्षीर सागर आकर रिपोर्ट करे। अब उल्लू तो उल्लू है उसने वही किया जो उल्लू करता है। इन सब काम में सुबह हो गई। नारदमुनि प्रभु की ओर प्रस्थान कर रहे है। रस्ते में हर गली में उन्हें चिथडों के सामान कपड़े पहने हुए बच्चे गली में बिखरे पटाखों के कूडे में कुछ तलाश करते दिखे। नारदमुनि ने सोचा कि नगर के अधिकांश बच्चे तो सो रहें हैं। ये कूडे में कुछ तलास कर रहें हैं। नारदमुनि ने पूछ लिया। बच्चे कहने लगे, साधू बाबा हम तो पटाखे खोज रहें हैं। शहर की हर गली में इस प्रकार कूडे में बहुत सारे पटाखे मिल जायेंगे, जितने ज्यादा पटाखे मिलेंगे उतनी ही अच्छी हमारी दिवाली होगी। क्योंकि हमारे पास खरीदने के लिए तो रूपये तो होते नहीं सो हम तो इसी प्रकार दिवाली की रात के बाद पटाखे की तलाश कूडे में करते हैं। नारदमुनि क्या करता, उसके पास कोई जवाब भी नही था। सच ही तो है। देश में करोड़ों लोग अपनी दिवाली इसी प्रकार ऐसे लोगो की झूठन से अपने त्यौहार मानते हैं जिनके यहाँ लक्ष्मी शान से आती जाती है। नारदमुनि ने सारा हाल जाकर प्रभु को सुना दिया। प्रभु जी सुनकर मुस्कुराते रहे, जैसे हमारे नेता औरअफसर लोगों की समस्याओं को दुःख को सुनकर मुस्कुराया करते हैं। नारायण नारायण

Monday, October 27, 2008

भज ले नारायण का नाम

---- चुटकी--- भज ले नारायण का नाम नारद, नारायण का नाम, भज ले नारायण का नाम नारद नारायण का नाम। ----- मनमोहन जी टिके हुए हैं बिना किए कुछ काम, उनकी जुबां पर रहता है बस इक मैडम का नाम। भज ले नारायण का नाम.... ----- पीएम पद का चिंतन करते लगता नहीं है ध्यान, आडवाणी के ख्वाब में आए इक मोदी का नाम, भज ले नारायण का नाम.... ----- चुनाव आए तो नेता सारे झुक झुक करे सलाम, उसके बाद वही नेता जी दुत्कारे सुबह और शाम। भज मन नारायण का नाम॥ ---- महंगाई की बात करे जो वो बालक नादान शेयरों के दाम गिर रहे सेंसेक्स पड़ा धडाम । भज मन नारायण का नाम... ----- धर्मनिरपेक्ष है वही देश में जो ले अल्लाह का नाम, साम्प्रदायिक है हर वो बन्दा जो भजता राम ही राम। भज मन नारायण का नाम.... ---- गोविन्द गोयल

सुरक्षा अस्त्र

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