बैंकों में रहने वाला पैसा तकिये के अन्दर काला हो रहा है .
रातों में भी चलने वाले कारखानो पर ताला हो रहा है .
अब नथ्थू हलवाई विदेशी शर्मा जी का साला हो रहा है
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है !
बेरोजगार बिना रोजगार के जबरन उद्योगपति हो गए
जो सच्चे कर्मों से उद्योगपति हुए थे वह रोडपति हो गए
भाग्य को धन से बड़ा मान अमीर गरीबों के दम्पति हो गए
शेयर के चक्कर में सपनों में जीने वाले दुर्गति को गए
एक बार फिर से कापित्लिस्म का मुंह कला हो रहा है
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है!
आज कर्ज में डूबा है हर बुढ्ढा हर बच्चा
बड़े कारोबारी भी खा गए हैं गच्चा
फिर से सुनने मैं आया स!दा जीवन सच्चा
उद्योगपति बेरोजगार को लगने लगा उचक्का
सपनों में भी सपनों पर ताला हो रहा है
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है !
~विनयतोष मिश्रा
5 comments:
मिश्रा जी, बिलकुल ऐसा ही हो रहा है.
sachi bat likhi hai aapne likhte rahiye ......
good jee good.narayan narayan
चहुँ ओर राजनीति में गर्बरझाला हो रहा है
हर रंगीन चेहरा अंधेरे में काला हो रहा है
बंद परे फाइलों को फिर से खोलना हुआ मुश्किल
कोई किसी का भतीजा तो कोई साला हो रहा है.
जी हाँ खूब घोटाला हो रहा है ...
सुलभ पत्र
by Sulabh Jaiswal
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