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Saturday, December 13, 2008

वैश्विक गाँव के पञ्च परमेश्वर

पहला कुछ नहीं खरीदता न कुछ बेचता है बनाना तो दूर की बात है बिगाड़ने तक का शऊर नहीं है उसे पर तय वही करता है कि क्या बनेगा- कितना बनेगा- कब बनेगा खरीदेगा कौन- कौन बेचेगा दूसरा कुछ नहीं पढ़ता न कुछ लिखता है परीक्षायें और डिग्रियाँ तो खैर जाने दें किताबों से रहा नहीं कभी उसका वास्ता पर तय वही करता है कि कौन पढ़ेगा- क्या पढ़ेगा- कैसे पढ़ेगा पास कौन होगा- कौन फेल तीसरा कुछ नहीं खेलता जोर से चल दे भर तो बढ़ जाता है रक्तचाप धूल तक से बचना होता है उसे पर तय वही करता है कि कौन खेलेगा- क्या खेलेगा- कब खेलेगा जीतेगा कौन- कौन हारेगा चौथा किसी से नहीं लड़ता दरअसल ’शुद्ध ’शाकाहारी है बंदूक की ट्रिगर चलाना तो दूर की बात है गुलेल तक चलाने में कांप जाता है पर तय वही करता है कि कौन लड़ेगा -किससे लड़ेगा - कब लड़ेगा मारेगा कौन - कौन

और पाँचवां सिर्फ चारों का नाम तय करता है।

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