"द्रष्टि"
अनंतकाल से ये द्रष्टि
प्रतीक्षा पग पर अडिग ,
पलकों के आंचल से
सर को ढांक ,
आतुरता की सीमा लाँघ
अविरल अश्रुधारा मे
डूबती , तरती , उभरती ,
व्याकुलता की ऊँचाइयों को छु
प्रतीक्षाक्षण से तकरार करती
तुम्हारी इक आभा को प्यासी
अनंतकाल से ये द्रष्टि
प्रतीक्षा पग पर अडिग
4 comments:
बहुत खूब
najar ne najar se mulakaat karli,khamosh the dono magar bat kar li, ishk kee kheti ko jab sukha dekha to aankhon ne ro ro kar barsat kar li.narayan narayan
bahut sundar hai likhte rahiye ..
अच्छी रचना।
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