हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
साजों मे भी अब तार नही..
बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
शब्दों मे भी वो सार नही...
जज्बातों का उल्लेख करूं क्या ,
भावों मे मिलता करार नही...
तुम अनजानी अभिलाषा मेरी,
क्यूँ सुनते मेरी पुकार नही ...
हर राह पे जैसे पदचाप तुम्हारी ,
रोकूँ कैसे अधिकार नही ...
तर्ष्णा प्यासी एक नज़र को तेरी,
2 comments:
कविता अच्छी लगी. आभार. लेकिन हमें एक फिल्मी गीत याद आ गया. "कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी, बहारों की मंज़िल..."
विरह की तडप को अच्छे से शब्दों में ढाला है ।
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