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Sunday, December 21, 2008

बचपन के अनोखे दिन

बचपन में हम उन दिनों बहुत ज्यादा शरमाते थे. कविता के दो लाइन भी खुलकर नही बोल पाते थे.

दूरदर्शन के आगे बैठ जंगल- जिंगल गाते थे. पापा घर में आ जाये तब डर से उनके घबराते थे.  

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