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Sunday, November 16, 2008

ग़ज़ल - प्रमोद कुश ' तनहा '

हम चले हम चल दिए हम चल पड़े आज फिर माथे पे उनके बल पड़े नींद सहलाएगी माथा उम्र भर आँख पे माँ का अगर आँचल पड़े आज हम पे आ पड़ा है वक्त ये आप की किस्मत में शायद कल पड़े रुक गए मेरे कदम क्यों दफअतन रास्ते कुछ दूर जो समतल पड़े ख़त मिला बेटे का बूढ़े बाप को बाप की आँखों से मोती ढ़ल पड़े रात गुज़री किस तरह मत पूछिये देखिये बिस्तर में कितने सल पड़े इक तसव्वुर एक 'तनहा' रात थी हर तरफ़ लाखों दिए क्यों जल पड़े - प्रमोद कुमार कुश ' तनहा '

8 comments:

"अर्श" said...

ghazal ki akhri sher aur makta to kamal ka bhai sahab,bahot khub likha hai aapne,,, dhero badhai aapko..

Dr. Amar Jyoti said...

'ख़त मिला बेटे का……'
बहुत ख़ूब!

chandrabhan bhardwaj said...

Achchhi gazal hai man ko chhoti hai.Badhayee
Chandrabhan Bhardwaj

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

aap tanha nahin hain, ham jo hain aapke sath. narayan narayan

seema gupta said...

नींद सहलाएगी माथा उम्र भर
आँख पे माँ का अगर आँचल पड़े
" bhut dino ke bada pdha aapko, fir vhee shandar bhavnatmk pratutee, in panktiyun ne dil ko bhut prbhavit kiya.."

Regards

Bandmru said...

नींद सहलाएगी माथा उम्र भर
आँख पे माँ का अगर आँचल पड़े
kya baat hai janab....
bahut khub likha hai....
sukhad eahsasa .........

हरकीरत ' हीर' said...

अपने ब्‍लाग पर आपके कमेन्‍टस देखे शुक्रिया...!

आप की गजल पढी ये शे'र अच्‍छा लगा-इक तसव्वुर एक 'तनहा' रात थी
हर तरफ़ लाखों दिए क्यों जल पड़े
इसमें दिए को 'दीये' कर लें।

सतपाल ख़याल said...

नींद सहलाएगी माथा उम्र भर
आँख पे माँ का अगर आँचल पड़े
अति सुंदर, can i have pleasure of publishing your ghazal on http://aajkeeghazal.blogspot.com

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