Saturday, November 29, 2008
यह कैसी बहस?
एक ब्लॉग पर टिप्पणियों के माध्यम से यह बहस चल रही है कि आतंकियों की गोलियों का शिकार बने एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे शहीद कहलाने का हक रखते हैं या नहीं? पूरी बहस महज बौद्धिकता के प्रदशॆन के लिए मौत के बाद किसी के चरित्रहनन जैसा ही है?
शहीद नरकगामी नहीं होते..पर टिप्पणियों को देखकर लगता है, जैसे खुद को प्रबुद्ध साबित करने के लिए कुछ लोग, मर चुके कुछ लोगों की चीर-फाड़ में लगे हों। करकरे क्या किसी भी आदमी के अतीत के सभी पन्ने सुनहरे ही नहीं होते। कुछ पन्नों पर काली स्याही से लिखी कुछ इबारतें भी होती हैं। टिप्पणियां करनेवाले भी अपने अंदर टटोलकर देखें तो एेसा ही पाएंगे। घर बैठकर जुगाली करना बहुत आसान होता है। आतंकी हमले के बीच सिफॆ छुपने की बात सोचने वाले लोग ही किसी की मौत पर अफसोस प्रकट करने की बजाय तंज कर सकते हैं। वरना इतना तो सच है ही कि हेमंत करकरे हमले के बाद तुरंत अपने दायित्वों का निवॆहन करने निकल पड़े थे। ड्राइंगरूम में अलसाए हुए टीवी नहीं देख रहे थे। साध्वी की गिरफ्तारी जायज है या नाजायज यह अदालत के सिवा कोई और कैसे तय कर सकता है? यह गलत भी हो तो केवल साध्वी को गिरफ्तार भर कर लेने से उनका शहीद कहलाने का हक नहीं छिन जाता। वैसे तो आत्मप्रचार के लिए जानबूझकर किसी की मौत पर मजमा लगाना ही जायज नहीं माना जा सकता। कोई शहीद कहा जाएगा या नहीं यह तो बाद की बात है। अपनी संस्कृति और परंपरा तो यही कहती है कि हम किसी की मौत के बाद उसके बारे में अच्छा ही अच्छा सोचते और कहते हैं। कम से कम इस परंपरा का ख्याल तो रखा ही जाना चाहिए। वैसे भी इस पूरी बहस से नुकसान भले ही हो, किसी का भला होते तो नहीं दिखता।
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10 comments:
Aap ne jo likha wo bilkul sahi hai... Aur aisa karne walon ko sharam aani chahiye un tathkathit budhijiviyon ko jo desh par kurban hone walon ko bhi nahi bakhshte. lekin wo shayad ye bhool jaate hain ki ye public hai sab jaanti hai....
Purshottam ji ko badhai..
Parvez sagar
sahi kaha aapne..
sab logon k paas kuch na kuch kahne ko hai..karna kise hai maloom nahin...jinhen karna hai woh delhi main so rahe hain
kya likha hai bahi.... badhai...
parvez sagar ne kaha hai ki sharam aani chahiye un tathakathit budhjivion ko par main ek baat kahunga ki un budhjiviyon ke aas-paas koi shar naam ki chiz hi nahi hai.....
again pursottam ji ko badhai...
प्रज्ञा और उससे जुड़े लोगों को गिरफ्तार करने से करकरे साहब ला क़द और ऊंचा हुआ है.
यह उन्हें रास्ते से हटाने की साजिश भी हो सकती है.
bilkul sehmat hai,kisi ko bhi ek shahid ki shahadat par koi shak nahi hona chahiye,nahi kuch bolne ka hak hai unhe,jo bolte hai phir wo log kahe nahi gaye terorist ke samne baduk leke,bolna bahut aasan,karna bahut mushkil.these r the people who dont hv any respect for the country,jis thali khaye wahi ched kiye,sirf muh kholkar jaban chalate hai,unse kaho na atankwadi ke samne jake ladhe,tabto sitti pitti gum ho jati hai.
वक्त निकालकर आप सबने अपने विचार दिए, सहमति जाहिर की, इसके लिए धन्यवाद। वैसे अशोक जी आपकी बात समझ में नहीं आती।
aapne bahut sahi kaha hai . jo insaan "hum" logon ke liye shahid hua hai , uske baaren mein buri charcha kyon, aakhir hum kab tak yun hi murkh bane bhaithe rahenge.
main apne saare shahido ko naman karta hoon. kyoki main ye maanta hoon , ki wo hai /the, to main hoon.
vijay
हेमन्त करकरे साहाब को शत शत प्रणाम । प्ाण देने से ज्यादा और क्या कुर्बानी हो सकती है । करकरे जैसे निष्ठावानों के कारण ही हम जैसे सुरक्षित हैं ।
yah kahnaa abhi risky hai bhai
par kai baar risk uthana padtaa hai
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