Thursday, November 6, 2008
सोने का लिफाफा
एक लिफाफा कागज़ का था
राह में बेसुध भटक रहा था
फिजा सुनहरी साथ थी उसके
उसके अन्दर चाँद छिपा था
हल्की नीली शक्ल पे उसकी
काला स्याह एक हरफ चढा था
ख़त के ऊपर नाम था मेरा
पता भी मेरे आँगन का था
चाँद की आँखें सुर्ख लाल थी
लबों से तारे बिखर रहे थे
ग्यारह तारे आसमान में
एक मेरी मुट्ठी में कैद था
हथेलियों पर ख़ाक जमी थी
तारा मेरे नाम का ना था
बारह तारे आसमान में
एक लिफाफा फटा हुआ था
एक लिफाफा कागज़ का था
जिसके अन्दर चाँद छुपा था
फिजा सुनहरी साथ में लेकर
उसका चेहरा ज़र्द पड़ा था
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6 comments:
kya bat hai,bahut khub jandar shandar
narayan narayan
lajwab.........man khush ho gaya..
shukriya!! :)
bhut achha likha hai.
एक लिफाफा कागज़ का था
जिसके अन्दर चाँद छुपा था
' its amezing"
Regards
sunder rachna...sunder bhaav...
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