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Thursday, January 31, 2008

सुबह

दरख्तों पर बैठी कोयल जब कूकती है .... तो लगता है मानों ... आम्र वाटिका मैं मंजरों की खुशबू है मदमस्त मन जब पुलकित सा होता है तभी ...... नींद खुल जाती है !! (यह पंक्तिया मेरे मित्र उत्पल मिश्र जी की है)

1 comment:

satyandra yadav said...

bahoot achhi kabita hai..

सुरक्षा अस्त्र

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