Sunday, January 6, 2008
देखिए आप हमे चन्दा ना कहलाये
देखिए आप हमे चन्दा ना कहलाये
ये सुनकर आज कल हमसे पहले
वो आसमान का चाँद ही शरमाये
जो लफ्जे तारीफ आप हमारी करते हो
चाँद उनसे अपना दिल है बहलाए
शाम ढलते तुरंत ही प्रतीक्षा करता
ताकि आप उसे सबसे पहले नज़र आये
इसे जलन कहे या और कुछ पता नही
हम अपने दीवाने मन् को कैसे समझाए
हम इस उलझन में बावरे से फिरते
चाँद आपको हमसे कही दूर न ले जाये .
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5 comments:
aap kya likhti hai seriously kya emotion hai mai tho apke kavita ki mureed ho gayi aur raha swal chand ka tho aap duniya ka na sahi par rangkarmi tho chand hai hi . apke kavita ki bhvnaye suchmuch dil ko chu jati hai aur kahi na kahi sukun bhi pauchati hai kabhi kabhi dard ka bhi ahsasas hota hai plz aise hi likhte rahiye aur apne poem ki mahak is rangkarmi par failate rahiye .
shukran tulikaji
वाह..क्या ख़ूब लिखा है...मैं तो आपका फ़ैन हो गया। अच्छा लिखती हैं आप...इसी तरह लिखते रहिए.....ज़िंदगी के ये अहसास हम सबके साझे हैं...हां ये और बात है कि कुछ लोग कविता, शायरी या ग़ज़ल के ज़रिए बयान कर देते हैं, कुछ लोग बस महसूस करके रह जाते हैं। आपकी कविताएं कहीं न कहीं हम सबके उन अहसासों को एक शक्ल देती हैं जो हम सबने अलग-अलग लम्हों मे जिए हैं।
आपकी आने वाली नयी कविता के इंतज़ार में....
अमित
wow...bhut khoob....
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