दरख्तों पर बैठी कोयल
जब कूकती है ....
तो लगता है मानों ...
आम्र वाटिका मैं
मंजरों की खुशबू है
मदमस्त मन जब
पुलकित सा होता है
तभी ......
नींद खुल जाती है !!
(यह पंक्तिया मेरे मित्र उत्पल मिश्र जी की है)
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1 comment:
bahoot achhi kabita hai..
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