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Thursday, January 3, 2008

ख्वाहिश

मन के झरोके से झाकती और उठती ख्वाहिशो की छोटी लहरें हर दिन नया जनम लेकर आती है देखती है ख्वाब संपूर्ण होने का तितली सी बनती चंचल पतंग बन आसमान में करती हलचल कोई ख्वाहिश पूरी होती है अपना नया चेहरा लेती है बाकी बिखर जाती है दिल के गलियारे में गिरकर,हसती,खिलती फिर उमड़ पड़ती नयी रूह लेकर जुड़ जाती ख्वाहिशो के कारवाँ से जो कभी थमता नही....

4 comments:

Parvez Sagar said...

आपकी रचना सुन्दर शब्दों के साथ सजी है। जो इसी एक आम आदमी की कविता बनाती है।
महक जी आपका प्रयास सराहनीय है.... अपनी लेखनी के इस सफर को जारी रखिये..

परवेज़ सागर

Anonymous said...

shukriya parwez sir

Amit said...

Really you have explained very nicely about wishes in your poetry. it touches the heart easily and seems to come from the heart. keep on writing.......

Amit, CNEB.

Keerti Vaidya said...

great...har kavita alag aur padney ke liye badhey kar rahi hai..

thnxs for sharing it with us

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