Friday, January 4, 2008
हकीकते हिंदोस्तान
झूठा सच है,अधूरा ख्वाब है,
क्या कहें तुमसे जिंदगी अजा़ब है ।
भूख में गरीबी में हर तडपती साँस में,
जिंदगी सवाल है,तो मौत ही जवाब है ।
इस मुल्क में सुना है इंसान बेहिसाब है,
रियासतों में भुखमरी,नेता यहाँ नवाब है ।
वहशतों के दौर में बढा रहे हैं हाथ जो,
जुर्म हर सफे पे है,मुल्क ऐसी किताब है ।
मुशकिलातों के सफ़र में ये हुक्मरान अजी़ब हैं
घर तो है पर छत नहीं और बारिश बेहिसाब है ।
सोनें का था जो चमन अब क्यों वीरान है,
मुरझा चुका है फूल ये तुम कहते हो गुलाब है ।
बदलेगें तस्वीर मुल्क की कह रहे थे जो कभी,
रह रहें है महलों में वो वाह क्या इंकलाब है ।
अनुराग अमिताभ
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6 comments:
hayi aaj ka hindustan hai,apne sacchai bayan ki,zanzod kar rakh diya mann ko,bas ek aas hai,kabhi tho ye manzar badle,aur sone ki chidiya phir aa jaye vapaas anpe vatan,hindustan.
सर
आपने हिन्दुस्तान की जो शक्ल बयां की है वो हकीकत भी है और नासूर भी, जो दिन पर दिन गहरा होता जा रहा है।
लेकिन फिर भी एक कसक है,
कयास है कि ये तस्वीर बदलेगी
और हमारे अधूरे ख़्वाब पूरे होंगे।
आपकी ये ग़ज़ल वाकई शानदार है.
बहुत अच्छे अनुराग!
lage raho bhai kafi acha liga hai.
chage ho rang karmi pr
सर नमस्कार,
मैनें आपके दो ब्लाग्स पढ़े... यकीन मानिये दोनों दिल को इतना छू गए कि मैं आपका फैन हो गया... जल्दी से कुछ और भी अच्छा लिखिए ताकि ये फैन... ए सी में तब्दील हो जाए
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