Wednesday, January 30, 2008
जंग जारी है
जंग जारी है
ज़िंदगी से
सुबह उठने के साथ
रात को सोने तक
और शायद सपने में भी
जंग इस बात की है
कि हम खुद को इंसान समझें
या फिर उत्पाद
हमारे अन्दर
जों भावनाएँ हैं
वो सिर्फ उबाल लें
और बह जाएँ
बहुत हो तो कविता की शक्ल लें
और कागज़ पर छ्प जाएँ
इससे ज्यादा भावनाओं की कोई कीमत नही
क्यूंकि कीमत तो बाज़ार तय करता है
और बाज़ार में हमारी भावनाओं की कोई कीमत नही
बाज़ार भावना को अपने हिसाब से
बनाता है बढ़ाता है
या फिर मिटाता है
जंग जारी है
कि चाय ठेलों पर लेते हुए चुस्कियाँ
लडातें रहें गप्पें
करते हुए राजनीति पर चर्चा
कोस लें अपनी सरकार
गलियां बक सकें
तो बक लें बुश को
और फिर भी ना हो दूर ऊब
तो छेड़ें कोई नया शिगूफा
बात कर सकें तो कर लें
अपने सपनों की
भर सकें तो भर लें
जीवन में प्यार का रंग
कि जंग लड़ते हुए
जी सकें कुछ और पल
इससे पहले
कि जब हम भी उत्पाद बन जाएँ
purnendu
c voter
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4 comments:
बात कर सकें तो कर लें
अपने सपनों की
भर सकें तो भर लें
जीवन में प्यार का रंग
कि जंग लड़ते हुए
जी सकें कुछ और पल
इससे पहले
कि जब हम भी उत्पाद बन जाएँ
बहुत पसन्द आयी.........
kya gajab ka lekh hai sir.. aap to apne samaj ki present paridrishya ko uker diya hai .... ... ye to sahi hai ki ..' risto ki mithas ab paise tay kar rahe hai... ' emotion ka kya arth ab to logon ki soch digital ho gai hai... bhasha me upsanskrit badhati ja rahi hai ...
bahtreen koi tod nahi
xxxxxx out standing xxxxxxxxx
yahi jagata hai asli josh .......
hum salam kartain hain is
bhawnatmak kavita ko
ye hamarai jeenae ki rah ko ek nai
disha pradan karta hai
DHRUVA xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
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