इक सरीखा सा छोरा, आ मुझसे टकराया
गुथ्मुठ बातो से भरा, छु मेरे मन को गया
हलकी मीठी धुप सा, ज़िन्दगी में रम गया
सलीकेदार सवाल- आप केसी हैं ?
अरे, मुझे फूलों सा खिला गया...
सरसरी बातो में, दीवाना बना गया
तनिक मुलाकातों में, अपना बना गया
सच, वो छोरा मेरा प्यार बन गया.......
कीर्ती वैद्य....
Wednesday, January 23, 2008
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3 comments:
aksar aisa hi hota hai ... pata nahi kab , kahan , kaun takaraye... aur achha lagne lage...
yahi to zindagi hai....
अत्यंत कोमल भाव हैं अभिव्यक्ति अतीव सुन्दर है ;साधुवाद स्वीकारिए....
हलकी मीठी धुप सा, ज़िन्दगी में रम गया
बहुत बढिया ।
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