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Wednesday, January 2, 2008

तुझ संग जीने-मरने लगे ...........

क्या है, कल्पना से परे जाना जब तुम्हे सपनो से परे विश्वास का हाथ थामे भाग चला जब मन, तेरे पीछे छोड़ सब रस्मे, बिन पूछे सबसे तुम संग जब, खाने लगा कस्मे प्रेम की अंधी सीढियो से आगे जुनूनी बदलो को पार कर के जब तुम संग जीने-मरने लगे ........... कीर्ती वैद्य........

3 comments:

Parvez Sagar said...

नव वर्ष मे आपके द्वारा रंगकर्मी पर पोस्ट की गयी ये रचना राधा-कृष्ण के पावन प्रेम सी लग रही है। जो उस अनदेखे अहसास को दर्शाती है जिसे केवल मन से महसूस किया जा सकता है...... नये साल की ये नयी सौगात प्रशंसनीय है... शब्दों का कांरवा जारी रखिये.... अभिवादन

परवेज़ सागर

satyandra yadav said...

happy new year...
kirti ji aapki rachana me prem prasang hai .. yahi hal hai .... band aankho me tum nazar aate ho , jab khule nazar to kahan chale jate ho. more piya more piya....
mai ek gana sunta hoo jiska nam hai .. tham ke baras jara tham ke baras.. is gane me lekhak ne ek pankti badal ke liye likha hai ki...'ye badal padega tujhe pyar ka wasta .. badalega tu khud rasta '...
prem ek aise anubhuti hai jo viswas par hi banti hai ....

Keerti Vaidya said...

thnxs both of you...

sach mujhey prem hai theak radha ke tarah ek krishna sey...par aaj tak maine apney krishna ko dekha aur suna nahi...sirf anubhut kiya hai

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