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Friday, January 4, 2008

आस

रुके थे कभी ज़िंदगी की राहो पर राह देखी थी तुम्हारी हर दिन,हर रात हर लम्हा,हर घड़ी बेसुद से खड़े रहे हर आने जाने वाले को पूछा, कही उन्हे तू नज़र आया किसीने देखा हो तेरा साया किसी को पता हो अगर तुझ तक पहुँचे जो डगर पर कोई जवाब नही एक हमारे सिवा किसी को तू याद नही तेरी तलाश में आख़िर हम खुद चल दिए इस गली से उस गली मुसाफिर बन लिए आज तक चल ही रहे है बस एक उमिद में के किसी मोड़ पर शायद तुम नज़र आओ फिर दुबारा जमी पर ही तुम हमे मिल जाओ…………

2 comments:

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

excellent feelings expressed in simple way...

congrats

pramod kumar kush'tanha'

Emily Katie said...

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