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Thursday, January 31, 2008

सम्बन्धी

सम्बन्धी भूले नही जाते बस अफ्रातरी की ज़िंदगी में किसी कोने में दब जाये कभी अलमारी में रखी पुरानी किताब से कभी बरसों पुराने संभले इक पत्र से टकरा जाये कभी दोबारा फूट पड़े नैन जैसे निर्झर झरना... कीर्ती वैद्य

4 comments:

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

फूट पड़े नैन
जैसे निर्झर झरना...

aap bahut achchha likhtee hein.
sunder rachna ke liye badhayee.

Parvez Sagar said...

हमेशा की तरह लाजवाब है.. जनाब.....
सिलसिला जारी रखिये....
परवेज़ सागर

Anil Bhardwaj said...

सम्बन्धी भूले नही जाते
बस अफ्रातरी की ज़िंदगी में.....

Ati Sunder Rachna.
Keep itup

Asha Joglekar said...

सुंदर, दिल को छू लेने वाली रचना ।

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