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Thursday, January 24, 2008

आज़ादी का मतलब

१९४७ से पहले आज़ादी का मतलब था अंग्रेजों भारत छोडो १९४७ के बाद आज़ादी का मतलब बदला है आज़ादी चाहिऐ बैल कि तरह जोते जाने कि मजबूरी से जिसका फल दो सूखी रोटी से अधिक कुछ भी नही आज़ादी चाहिऐ उस जीने से जो सच में मौत से भी बदतर है आज़ादी चाहिऐ उस व्यवस्था से जिसमे अनाज से भरे गोदाम के सामने आदमी भूख से दम तोड़ देता है आज़ादी चाहिऐ उन कोठों से जहाँ कागज़ के टुकडे इज्ज़त से ज्यादा कीमती होते हैं आज़ादी चाहिऐ सहने कि उस ताकत से जो गरीबी को मुँह चिढाती है अभावों में जीना सिखाती है सब्र के बाँध अब टूटो भी बह जाने दो बरसों से रुका पानी जो अब सड़ने लगा है बेरोज़गार हांथों मिटा दो पूंजीवाद जिसने उत्पादन को ज़रूरत के बजाय लाभ की चेरी बना के रखा है करो तैयारी स्वागत की नए समाज के जहाँ बहस हो विकास की , सृजन की बेहतर की ,और बेहतर की ! ( कविता समर्पित है भारत के उन २२ करोड़ लोगों को जो आज भी दो जून की रोटी के लिए संघर्षरत हैं ) purnendu c voter

4 comments:

Keerti Vaidya said...

VERY NICE....

Unknown said...

Just excelent
bahut aavashyakta hai aap jaise sochne valoki.

satyandra yadav said...

sir kya bat hai.... aap bahoot badhiya likhate hain ...

Asha Joglekar said...

आजादी का मतलब बडे तरीके से समझाया आपने ।
धन्यवाद और बधाई भी ।

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