रंगकर्मी परिवार मे आपका स्वागत है। सदस्यता और राय के लिये हमें मेल करें- humrangkarmi@gmail.com

Website templates

Monday, June 8, 2009

लो क सं घ र्ष !: मेरा यह सागर मंथन...

सुधियों की अमराई में , है शांत तृषित अभिलाषा। कतिपय अतृप्त इच्छाएं व्याकुल पाने को भाषा॥ मेरा यह सागर मंथन, अमृत का शोध नही है। सर्वश्व समर्पण है ये आहों का बोध नही है॥ सुस्मृति आसव से चालक पड़ता ,जीवन का प्याला। कालिमा समेट ले मन में, ज्यों तय आसवृ उजाला डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

No comments:

सुरक्षा अस्त्र

Text selection Lock by Hindi Blog Tips