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Sunday, June 21, 2009

लो क सं घ र्ष !: अवधी भाषा में सवैये

श्रम के बलु ते भरी जाँय जहाँ गगरी -गागर ,बखरी बखरा । खरिहान के बीच म ऐसु लगे जस स्वर्ग जमीन प है उतरा । ढेबरी के उजेरे मा पंडित जी जहँ बांची रहे पतरी पन्तर। पहिचानौ हमार है गांव उहै जहाँ द्वारे धरे छ्परी - छपरा॥ निमिया के तरे बड़वार कुआँ दरवज्जे पे बैल मुंडेरी पे लौकी। रस गन्ना म डारा जमावा मिलै तरकारी मिली कडू तेल मा छौंकी । पटवारी के हाथ म खेतु बंधे परधान के हाथ म थाना व चौकी । बुढऊ कै मजाल कि नाही करैं जब ज्यावें का आवे बुलावे क नौकी॥ अउर पंचो! हमरे गाव के प्रेम सदभाव कै पाक झलक दे्खयो- अजिया केरे नाम लिखाये गए संस्कार के गीत व किस्सा कहानी । हिलिकई मिलिकै सब साथ रहैं बस मुखिया एक पचास परानी। हियाँ दंगा -फसाद न दयाखा कबो समुहै सुकुल समुहै किरमानी। अठिलाये कई पाँव हुवें ठिठुकई जहाँ खैंचत गौरी गडारी से पानी॥ हियाँ दूध मा पानी परे न कबो सब खाय-मोटे बने धमधूसर । भुइयां है पसीना से सिंची परी अब ढूंढें न पैहो कहूं तुम उसर। नजरें कहूँ और निशाना कहूँ मुल गाली से जात न मुसर। मुखडा भवजाई क ऐसा लगे जस चाँद जमीन पै दुसर ॥ -अम्बरीष चन्द्र वर्मा ''अम्बर''

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