रंगकर्मी परिवार मे आपका स्वागत है। सदस्यता और राय के लिये हमें मेल करें- humrangkarmi@gmail.com

Website templates

Monday, June 22, 2009

लो क सं घ र्ष !: फिर स्वप्न सुंदरी बनना...

वह मूर्तिमान छवि ऐसी, ज्यों कवि की प्रथम व्यथा हो। था प्रथम काव्य की कविता प्रभु की अनकही व्यथा हो॥ निज स्वर की सुरा पिलाकर हो मूक ,पुकारा दृग ने। चंचल मन बेसुध आहात ज्यों बीन सुनी हो मृग ने॥ मुस्का कर स्वप्न जगाना, फिर स्वप्न सुंदरी बनना। हाथो से दीप जलना अव्यक्त रूप गुनना॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

No comments:

सुरक्षा अस्त्र

Text selection Lock by Hindi Blog Tips