तुम क्या आये ये बहारें आईं,
तुम चले आये तो,
अब छंट ही गई तनहाई ।
हम इतने दिन
तुम्हारी राह देखते ही रहे,
ओर आज देखो
अचानक बजी है शहनाई ।
हम अपने आप से
क्यूं यूं शरमाते हैं,
इन आँखों में बसी है
तुम्हारी परछाई ।
अब तलक जो
चुपचाप सी थी ये ऋत,
आज मुस्कुराती सी
लेने लगी है अंगडाई ।
फूल खिलते हैं, देखो,
पंछी चहके जाते हैं
किसकी खातिर
महकती है यहाँ अंगनाई ।
अब न जाने की
बात करना, न दूर जाना कभी,
वरना हम ही नही
जमाना कहेगा हरजाई ।
Wednesday, June 17, 2009
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