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Wednesday, June 17, 2009

तुम क्या आये

तुम क्या आये ये बहारें आईं, तुम चले आये तो, अब छंट ही गई तनहाई । हम इतने दिन तुम्हारी राह देखते ही रहे, ओर आज देखो अचानक बजी है शहनाई । हम अपने आप से क्यूं यूं शरमाते हैं, इन आँखों में बसी है तुम्हारी परछाई । अब तलक जो चुपचाप सी थी ये ऋत, आज मुस्कुराती सी लेने लगी है अंगडाई । फूल खिलते हैं, देखो, पंछी चहके जाते हैं किसकी खातिर महकती है यहाँ अंगनाई । अब न जाने की बात करना, न दूर जाना कभी, वरना हम ही नही जमाना कहेगा हरजाई ।

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