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Saturday, June 13, 2009

लो क सं घ र्ष !: लज्जित हो मेरी लघुता

निराधार सपने टूटे, क्रंदन शेष रहा मन का । भ्रमता जीव ,नियति रूठी, परिचय पाषाण ह्रदय का॥ लज्जित हो मेरी लघुता , कोई नरेश बन जाए। अधखुली पलक पंकज में, जगती का भेद छिपाए॥ आशा की ज्योति सजाये , है दीप शिखा जलने को। लौ में आकर्षण संचित है शलभ मौन जलने को॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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