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Tuesday, June 9, 2009

लो क सं घ र्ष !: मेरे मानस की पीडा,, है मधुर स्वरों में गाती...

चेतनते व्याधि बनी तू नीख विवेक के तल में। लेकर अतीत का संबल, अवसाद घेर ले पल में॥ मेरे मानस की पीडा, है मधुर स्वरों में गाती। आंसू में कंचन बनकर पीड़ा से होड़ लगाती॥ मन की असीम व्याकुलता कब त्राण पा सकी जग में । विश्वाश सुमन कुचले है, हंस-हंस कर चलते मग में ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''

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