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Tuesday, June 23, 2009

लो क सं घ र्ष !: प्रात : दुल्हन सी किरणें ...

प्रात : दुल्हन सी किरणें है नीरज को छू लेती । अलि समझे इससे पहले परिरम्य-मुक्त कर देती ॥ चम्पक पुष्पों की रेखा, मन को आडोलित करती। नित नूतन ही उसकी, सन्दर्भ विवर्तित करती॥ अलकें कपोल पर आकर, चंच; हो जाती ऐसे। विधु -रूप-सुधा भरने को दौडे धन शावक जैसे॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''

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