Saturday, June 27, 2009
लो क सं घ र्ष !: संघी कारसेवको से कांग्रेस को बचाएँ राहुल -2
लो क सं घ र्ष !: छाया पड़ती हो विधु पर...
 खुले अधर थे शांत नयन,
तर्जनी टिकी थी चिवु पर।
ज्यों प्रेम जलधि में चिन्मय,
छाया पड़ती हो विधु पर॥
है रीती निराली इनकी ,
जाने किस पर आ जाए।
है उचित , कहाँ अनुचित है?
आँखें न भेद कर पाये॥
अधखुले नयन थे ऐसे,
प्रात: नीरज हो जैसे।
चितवन के पर उड़ते हो,
पर भ्रमर बंधा हो जैसे॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"
खुले अधर थे शांत नयन,
तर्जनी टिकी थी चिवु पर।
ज्यों प्रेम जलधि में चिन्मय,
छाया पड़ती हो विधु पर॥
है रीती निराली इनकी ,
जाने किस पर आ जाए।
है उचित , कहाँ अनुचित है?
आँखें न भेद कर पाये॥
अधखुले नयन थे ऐसे,
प्रात: नीरज हो जैसे।
चितवन के पर उड़ते हो,
पर भ्रमर बंधा हो जैसे॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"
Friday, June 26, 2009
लो क सं घ र्ष !: संघी कारसेवको से कांग्रेस को बचाएँ राहुल
लो क सं घ र्ष !: जलते है स्वप्न हमारे...
 वक्र - पंक्ति में कुंद कलि
किसलय के अवगुण्ठन में।
तृष्णा में शुक है आकुल,
ज्यों राधा नन्दन वन में॥
उज्जवल जलकुम्भी की शुचि,
पंखुडियां श्वेत निराली।
हो अधर विचुम्बित आभा,
जल अरुण समाहित लाली॥
विम्बित नीरज गरिमा से
मंडित कपोल तुम्हारे।
नीख ज्वाला में उनकी ,
जलते है स्वप्न हमारे॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
वक्र - पंक्ति में कुंद कलि
किसलय के अवगुण्ठन में।
तृष्णा में शुक है आकुल,
ज्यों राधा नन्दन वन में॥
उज्जवल जलकुम्भी की शुचि,
पंखुडियां श्वेत निराली।
हो अधर विचुम्बित आभा,
जल अरुण समाहित लाली॥
विम्बित नीरज गरिमा से
मंडित कपोल तुम्हारे।
नीख ज्वाला में उनकी ,
जलते है स्वप्न हमारे॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
Thursday, June 25, 2009
लो क सं घ र्ष !: अब चेतन सी लहराए...
यस,कमेंट्स प्लीज़
Wednesday, June 24, 2009
लो क सं घ र्ष !: राष्ट्रिय हितों के सौदागर है ये निक्कर वाले....तो यह हाल तलवार भाजने वाले लौहपुरुष और योद्धाओ का है ।
 क्या कांग्रेस फैसले में शामिल थी? देखो ,ख़ुद अडवानी ने 24 मार्च 2008 को शेखर गुप्ता को दिए गए इन्टरव्यू में क्या कहा था। अडवानी , "मुझे ठीक तरह से याद नही है की सर्वदलीय बैठक में कौन-कौन था। लेकिन मोटे तौर पर सरकार को सलाह दी गई थी की संकट ख़त्म करने के लिए सरकार फ़ैसला करे। यह भी कहा गया था की यात्रियों की रिहाई को सबसे ज्यादा तरजीह दी जानी चाहिए। " इस पर शेखर ने पुछा ,"क्या कांग्रेस ने भी ऐसा कहा था?" अडवानी का जवाब था, "मुझे वह याद नही, लेकिन आमतौर से यह बात कही गई थी।" अडवानी के इस साफ़ बयान से कांग्रेस को संदेह का लाभ मिलता है । कांग्रेस प्रवक्ताओ के इस सवाल में बड़ा दम है और आखिर अडवानी किस तरह के "लौहपुरुष " है की उन्हें बहुत ही संवेदनशील फैसलों से दूर रखा गया और क्या प्रधानमन्त्री वाज़पेई उन पर भरोषा नही करते थे ? अगर अडवानी इतना ही अप्रसन्न थे तो पद त्याग करने का सहाश क्यों नही कर पाये । लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना के बाद इस्तीफा दे दिया था । विश्वनाथ प्रताप सिंह ने डाकुवो के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था । जवाहरलाल नेहरू ने पुरुषोत्तम दास टंडन और डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जैसे नेताओं से नीतिगत विवादो पर इस्तीफे की पेशकश कर डाली थी। यहाँ तो अभूतपूर्व राष्ट्रिय सुरक्षा और स्वाभिमान का संकट था।
ख़ुद अडवानी की किताब "मई कंट्री मई लाइफ" से निष्कर्ष निकलता है की वह और उनके सहयोगी सकते में आ गए थे, जो कुछ हुआ वह राजनितिक फैसला था और प्रशासकीय सलाहकारों से जरूरी मशविरा नही किया गया। अडवानी लिखते है (पेज 623) : "विमान यात्रियों को छुडाने के लिए एक विकल्प सरकार के पास यह था की विमान से कमांङो और सैनिक कंधार भेज दिए जाएँ । लेकिन हमें सूचना मिली की तालिबान अधिकारियो ने इस्लामाबाद के निर्देश पर हवाई अड्डे को तनको से घेर लिया है। हमारे कमांडर विमान के अन्दर अपर्ताओ को निहता कर सकते थे। लेकिन विमान के बहार तालिबानी सैनिको से साशस्त्र संघर्ष होता और जिनकी जान बचाने के लिए यह सब किया जाता,वे खतरे में पड़ जाते ।" (अडवानी के इस कदम का पोस्त्मर्तम करें । किस सुरक्षा विशेषज्ञ ने सलाह दी थी की कंधार में कमांडो कार्यवाही सम्भव है? अगर तालिबान टंक न लगाते टू क्या कमांडो कार्यवाही हो जाती? कमांडर!(please do not change it to commando. advaani has issued the term commandor) विमान के अन्दर अपर्ताहो को निहत्था करने के लिए पहुँचते कैसे? कंधार तक जाते किस रास्ते ?पकिस्तान अपने वायु मार्ग के इस्तेमाल की इजाजत देता नही । मध्य एशिया के रास्ते आज तो कंधार पहुचना सम्भव है । तब यह सम्भव नही था। कल्पना करें की कंधार तक हमारे कमांडो सुगमतापूर्वक पहुँच भी जाते ,तब वे किसे रिहा कराते ? क्योंकि इस बीच आइ .एस.आइ यात्रियों और अपर्थाओ को कहीं और पहुंचवा देती ।
१९६२ में चीन के हाथो हार के बाद कंधार दूसरा मौका था जब भारत की नाक कटी । उस त्रासद नाटक के मुख्य पात्र अडवानी इस घटना के बारे में कितना गंभीर है है इसका अंदाजा यूँ लगाइए की घटना के कई साल बाद किताब लिखी और उसमें पूरे मामले का सरलीकरण कर दिया। पर तो परदा पड़ा ही हुआ है । नाटक के एक बड़े पात्र जसवंत सिंह ने अपनी किताब "A call to owner: in service of imergent India" में कोई खुलाशा नही किया । बल्कि बड़े गर्व से कह रहे है की भविष्य में कंधार जैसा फिर कोई हादसा हुआ तो वह वाही करेंगे, जो पिछली बार किया था । तो यह हाल तलवार भाजने वाले लौहपुरुष और योद्धाओ का है ।
सी॰टी॰बी॰टी : परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने वाली इस संधि पर बीजेपी के रुख की कहानी बहुत दिलचस्प है। कांग्रेस सरकारों ने बम बनाये। लेकिन पोखरण -२ के जरिये बीजेपी ने अपने महान राष्ट्रवाद का परिचय देने की कोशिश की। मनमोहन सिंह की सरकार जब अमेरिका से परमाणु समझौता कर रही थी,तब बीजेपी के विरोध की सबसे बड़ी वजह यह थी की भारत परमाणु विश्फोतो के अधिकार से वंचित हो जाएगा। सच यह है की भारत को निहता करने में वाजपेई सरकार ने कोई कसार नही छोडी थी और इस त्रासद की कहानी के खलनायक थे विदेशमंत्री जसवंत सिंह।
एन डी ए शाशन के दौरान अमेरिका में विदेशी उपमंत्री स्ट्राब टैलबॉट ने अपनी किताब "एनगेजिंग इंडिया :डिप्लोमेसी ,डेमोक्रेसी एंड द बोम्ब " में वाजपेयी सरकार की कायरता पूर्ण और धोखेबाज हरकतों का खुलासा किया है। टैलबॉट ने पेज १२१ पर लिखा है, "जसवंत क्लिंटन के नाम वाजपेयी का पत्र लेकर वाशिंगटन पहुंचे , जो उन्होंने मेरे कक्ष में मुझे दिखाया । इस पर नजर डालते हुए सबसे महत्वपूर्ण वाक्य पर मेरी निगाह रुकी । यह था, "भारत सितम्बर 1999 तक सी॰टी॰बी॰टी पर  स्वीकृति का निर्णय लेने के लिए महत्वपूर्ण वार्ताकारों से रचनात्मक वार्ता करता रहेगा।" बाद में विदेश मंत्रालय के अधिकारी सैंङी बर्गर से बातचीत के दौरान जसवंत ने कहा की वाजपेयी सी॰टी॰बी॰टी पर  हस्ताक्षर करने का अन्पलत निर्णय कर चुके है । यह बस वक्त की बात है की इस निर्णय को कब और कैसे सार्वजानिक किया जाए। "
पेज 208 पर टैलबॉट बताते है की सरकार से उनके हटने के पहले जसवंत से आखिरी मुलाकात में एन डी ए सरकार के इस वरिष्ठ मंत्री ने सी॰टी॰बी॰टीपर दस्तखत का वादा पूरा न करने पर किस तरह माफ़ी मांगी। "जसवंत ने मुझसे अकेले मुलाकात का अनुरोध किया,जिसमें सी॰टी॰बी॰टी पर संदेश देना था। जसवंत ने वादा पूरा न करने पर माफ़ी मांगी। मैंने कहा की मालूम है कि आपने कोशिश की, मगर परिस्तिथियों ने साथ नही दिया। "
तो यह है संघ परिवार के सूर्माओ का असली चरित्र । कश्मीर,कंधार और सी॰टी॰बी॰टी पर अपने काले कारनामो का उन्हें पश्चाताप नही है। यह सब सुविचारित नीतियों का स्वाभाविक परिणाम है। इन तीन घटनाओ से यह नतीजा भी निकलता है कि बीजेपी को अगर कभी पूर्ण बहुमत मिला तो हम जिसे भारत राष्ट्र के रूप में जानते है, उसे चिन्न-भिन्न कर डालेगी ।
प्रदीप कुमार
मोबाइल :09810994447
क्या कांग्रेस फैसले में शामिल थी? देखो ,ख़ुद अडवानी ने 24 मार्च 2008 को शेखर गुप्ता को दिए गए इन्टरव्यू में क्या कहा था। अडवानी , "मुझे ठीक तरह से याद नही है की सर्वदलीय बैठक में कौन-कौन था। लेकिन मोटे तौर पर सरकार को सलाह दी गई थी की संकट ख़त्म करने के लिए सरकार फ़ैसला करे। यह भी कहा गया था की यात्रियों की रिहाई को सबसे ज्यादा तरजीह दी जानी चाहिए। " इस पर शेखर ने पुछा ,"क्या कांग्रेस ने भी ऐसा कहा था?" अडवानी का जवाब था, "मुझे वह याद नही, लेकिन आमतौर से यह बात कही गई थी।" अडवानी के इस साफ़ बयान से कांग्रेस को संदेह का लाभ मिलता है । कांग्रेस प्रवक्ताओ के इस सवाल में बड़ा दम है और आखिर अडवानी किस तरह के "लौहपुरुष " है की उन्हें बहुत ही संवेदनशील फैसलों से दूर रखा गया और क्या प्रधानमन्त्री वाज़पेई उन पर भरोषा नही करते थे ? अगर अडवानी इतना ही अप्रसन्न थे तो पद त्याग करने का सहाश क्यों नही कर पाये । लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना के बाद इस्तीफा दे दिया था । विश्वनाथ प्रताप सिंह ने डाकुवो के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था । जवाहरलाल नेहरू ने पुरुषोत्तम दास टंडन और डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जैसे नेताओं से नीतिगत विवादो पर इस्तीफे की पेशकश कर डाली थी। यहाँ तो अभूतपूर्व राष्ट्रिय सुरक्षा और स्वाभिमान का संकट था।
ख़ुद अडवानी की किताब "मई कंट्री मई लाइफ" से निष्कर्ष निकलता है की वह और उनके सहयोगी सकते में आ गए थे, जो कुछ हुआ वह राजनितिक फैसला था और प्रशासकीय सलाहकारों से जरूरी मशविरा नही किया गया। अडवानी लिखते है (पेज 623) : "विमान यात्रियों को छुडाने के लिए एक विकल्प सरकार के पास यह था की विमान से कमांङो और सैनिक कंधार भेज दिए जाएँ । लेकिन हमें सूचना मिली की तालिबान अधिकारियो ने इस्लामाबाद के निर्देश पर हवाई अड्डे को तनको से घेर लिया है। हमारे कमांडर विमान के अन्दर अपर्ताओ को निहता कर सकते थे। लेकिन विमान के बहार तालिबानी सैनिको से साशस्त्र संघर्ष होता और जिनकी जान बचाने के लिए यह सब किया जाता,वे खतरे में पड़ जाते ।" (अडवानी के इस कदम का पोस्त्मर्तम करें । किस सुरक्षा विशेषज्ञ ने सलाह दी थी की कंधार में कमांडो कार्यवाही सम्भव है? अगर तालिबान टंक न लगाते टू क्या कमांडो कार्यवाही हो जाती? कमांडर!(please do not change it to commando. advaani has issued the term commandor) विमान के अन्दर अपर्ताहो को निहत्था करने के लिए पहुँचते कैसे? कंधार तक जाते किस रास्ते ?पकिस्तान अपने वायु मार्ग के इस्तेमाल की इजाजत देता नही । मध्य एशिया के रास्ते आज तो कंधार पहुचना सम्भव है । तब यह सम्भव नही था। कल्पना करें की कंधार तक हमारे कमांडो सुगमतापूर्वक पहुँच भी जाते ,तब वे किसे रिहा कराते ? क्योंकि इस बीच आइ .एस.आइ यात्रियों और अपर्थाओ को कहीं और पहुंचवा देती ।
१९६२ में चीन के हाथो हार के बाद कंधार दूसरा मौका था जब भारत की नाक कटी । उस त्रासद नाटक के मुख्य पात्र अडवानी इस घटना के बारे में कितना गंभीर है है इसका अंदाजा यूँ लगाइए की घटना के कई साल बाद किताब लिखी और उसमें पूरे मामले का सरलीकरण कर दिया। पर तो परदा पड़ा ही हुआ है । नाटक के एक बड़े पात्र जसवंत सिंह ने अपनी किताब "A call to owner: in service of imergent India" में कोई खुलाशा नही किया । बल्कि बड़े गर्व से कह रहे है की भविष्य में कंधार जैसा फिर कोई हादसा हुआ तो वह वाही करेंगे, जो पिछली बार किया था । तो यह हाल तलवार भाजने वाले लौहपुरुष और योद्धाओ का है ।
सी॰टी॰बी॰टी : परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने वाली इस संधि पर बीजेपी के रुख की कहानी बहुत दिलचस्प है। कांग्रेस सरकारों ने बम बनाये। लेकिन पोखरण -२ के जरिये बीजेपी ने अपने महान राष्ट्रवाद का परिचय देने की कोशिश की। मनमोहन सिंह की सरकार जब अमेरिका से परमाणु समझौता कर रही थी,तब बीजेपी के विरोध की सबसे बड़ी वजह यह थी की भारत परमाणु विश्फोतो के अधिकार से वंचित हो जाएगा। सच यह है की भारत को निहता करने में वाजपेई सरकार ने कोई कसार नही छोडी थी और इस त्रासद की कहानी के खलनायक थे विदेशमंत्री जसवंत सिंह।
एन डी ए शाशन के दौरान अमेरिका में विदेशी उपमंत्री स्ट्राब टैलबॉट ने अपनी किताब "एनगेजिंग इंडिया :डिप्लोमेसी ,डेमोक्रेसी एंड द बोम्ब " में वाजपेयी सरकार की कायरता पूर्ण और धोखेबाज हरकतों का खुलासा किया है। टैलबॉट ने पेज १२१ पर लिखा है, "जसवंत क्लिंटन के नाम वाजपेयी का पत्र लेकर वाशिंगटन पहुंचे , जो उन्होंने मेरे कक्ष में मुझे दिखाया । इस पर नजर डालते हुए सबसे महत्वपूर्ण वाक्य पर मेरी निगाह रुकी । यह था, "भारत सितम्बर 1999 तक सी॰टी॰बी॰टी पर  स्वीकृति का निर्णय लेने के लिए महत्वपूर्ण वार्ताकारों से रचनात्मक वार्ता करता रहेगा।" बाद में विदेश मंत्रालय के अधिकारी सैंङी बर्गर से बातचीत के दौरान जसवंत ने कहा की वाजपेयी सी॰टी॰बी॰टी पर  हस्ताक्षर करने का अन्पलत निर्णय कर चुके है । यह बस वक्त की बात है की इस निर्णय को कब और कैसे सार्वजानिक किया जाए। "
पेज 208 पर टैलबॉट बताते है की सरकार से उनके हटने के पहले जसवंत से आखिरी मुलाकात में एन डी ए सरकार के इस वरिष्ठ मंत्री ने सी॰टी॰बी॰टीपर दस्तखत का वादा पूरा न करने पर किस तरह माफ़ी मांगी। "जसवंत ने मुझसे अकेले मुलाकात का अनुरोध किया,जिसमें सी॰टी॰बी॰टी पर संदेश देना था। जसवंत ने वादा पूरा न करने पर माफ़ी मांगी। मैंने कहा की मालूम है कि आपने कोशिश की, मगर परिस्तिथियों ने साथ नही दिया। "
तो यह है संघ परिवार के सूर्माओ का असली चरित्र । कश्मीर,कंधार और सी॰टी॰बी॰टी पर अपने काले कारनामो का उन्हें पश्चाताप नही है। यह सब सुविचारित नीतियों का स्वाभाविक परिणाम है। इन तीन घटनाओ से यह नतीजा भी निकलता है कि बीजेपी को अगर कभी पूर्ण बहुमत मिला तो हम जिसे भारत राष्ट्र के रूप में जानते है, उसे चिन्न-भिन्न कर डालेगी ।
प्रदीप कुमार
मोबाइल :09810994447Tuesday, June 23, 2009
Khwaja Gharib Nawaz- SYMBOL OF LOVE, HARMONY AND PEACE
 The 797th urs (Death Anniversary) of Hazrat Khwaja Moinuddin Hasan Chishty (R.A) known as Gharib Nawaz (R.A) will be held from 1st to 6th RAZAB corresponding to :- 25th to 30th of june 2009 (depending upon the visibility of Moon). Inspired by the spiritual command of the PROPHET MOHAMMAD (S.A.W), Huzoor Khwaja Gharib Nawaz (R.A) became the harbinger of peace and prosperity not only in India but in the whole world and people use to attend the shrine of Gharib Nawaz (R.A) with their heartfelt desire and cherished wishes and return used to go brimful with fruition of their inner aspiration.
The 797th urs (Death Anniversary) of Hazrat Khwaja Moinuddin Hasan Chishty (R.A) known as Gharib Nawaz (R.A) will be held from 1st to 6th RAZAB corresponding to :- 25th to 30th of june 2009 (depending upon the visibility of Moon). Inspired by the spiritual command of the PROPHET MOHAMMAD (S.A.W), Huzoor Khwaja Gharib Nawaz (R.A) became the harbinger of peace and prosperity not only in India but in the whole world and people use to attend the shrine of Gharib Nawaz (R.A) with their heartfelt desire and cherished wishes and return used to go brimful with fruition of their inner aspiration.
लो क सं घ र्ष !: राष्ट्रिय हितों के सौदागर है ये निक्कर वाले
Monday, June 22, 2009
लो क सं घ र्ष !: सुंदर सी, सुन्दरता
लो क सं घ र्ष !: फिर स्वप्न सुंदरी बनना...
 वह मूर्तिमान छवि ऐसी,
ज्यों कवि की प्रथम व्यथा हो।
था प्रथम काव्य की कविता
प्रभु की अनकही व्यथा हो॥
निज स्वर की सुरा पिलाकर
हो मूक ,पुकारा दृग ने।
चंचल मन बेसुध आहात
ज्यों बीन  सुनी हो मृग ने॥
मुस्का कर स्वप्न जगाना,
फिर स्वप्न सुंदरी बनना।
हाथो से दीप जलना
अव्यक्त रूप गुनना॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
वह मूर्तिमान छवि ऐसी,
ज्यों कवि की प्रथम व्यथा हो।
था प्रथम काव्य की कविता
प्रभु की अनकही व्यथा हो॥
निज स्वर की सुरा पिलाकर
हो मूक ,पुकारा दृग ने।
चंचल मन बेसुध आहात
ज्यों बीन  सुनी हो मृग ने॥
मुस्का कर स्वप्न जगाना,
फिर स्वप्न सुंदरी बनना।
हाथो से दीप जलना
अव्यक्त रूप गुनना॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
Sunday, June 21, 2009
लो क सं घ र्ष !: प्रहरी मुझको कर डाला...
 लघु स्मृति की प्राचीरों ने,
कारा निर्मित कर डाला ।
बिठला छवि रम्य अलौकिक
प्रहरी मुझको कर डाला ॥
पाटल-सुगंधी उपवन में,
ज्यों चपला चमके घन में।
वह चपल चंचला मूरत
विस्थापित है अब मन में॥
परिधान बीच सुषमा सी,
संध्या अम्बर के टुकड़े ।
छुटपुट तारों की रेखा
हो लाल-नील में जकडे॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
लघु स्मृति की प्राचीरों ने,
कारा निर्मित कर डाला ।
बिठला छवि रम्य अलौकिक
प्रहरी मुझको कर डाला ॥
पाटल-सुगंधी उपवन में,
ज्यों चपला चमके घन में।
वह चपल चंचला मूरत
विस्थापित है अब मन में॥
परिधान बीच सुषमा सी,
संध्या अम्बर के टुकड़े ।
छुटपुट तारों की रेखा
हो लाल-नील में जकडे॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
लो क सं घ र्ष !: तब भटकती प्रत्याशा...
लो क सं घ र्ष !: अवधी भाषा में सवैये
Saturday, June 20, 2009
लो क सं घ र्ष !: आदित्य बिरला के बाद रतन टाटा की ब्लैकमेलिंग#links#links#links#links
Friday, June 19, 2009
पी,पी,पी और एक और पी
Wednesday, June 17, 2009
ये टेंशन तो समाप्त हुई
तुम क्या आये
Sunday, June 14, 2009
लो क सं घ र्ष !: अपना कह दूँ मैं किसको ...
लो क सं घ र्ष !: कुछ डूबी सी उतराए...
 जो है अप्राप्य इस जग में ,
वह अभिलाषा है मन की।
मन-मख,विरहाग्नि जलाकर
आहुति दे रहा स्वयं की॥
अपने से स्वयं पराजित ,
होकर भी मैं जीता हूँ ।
अभिशाप समझ कर के भी
मैं स्मृति - मदिरा पीता हूँ ॥
दुर्दिन की घाटी भी अब
विश्वाश भरी लहराए।
उस संधि -पत्र की नौका
कुछ डूबी सी उतराए॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही'
जो है अप्राप्य इस जग में ,
वह अभिलाषा है मन की।
मन-मख,विरहाग्नि जलाकर
आहुति दे रहा स्वयं की॥
अपने से स्वयं पराजित ,
होकर भी मैं जीता हूँ ।
अभिशाप समझ कर के भी
मैं स्मृति - मदिरा पीता हूँ ॥
दुर्दिन की घाटी भी अब
विश्वाश भरी लहराए।
उस संधि -पत्र की नौका
कुछ डूबी सी उतराए॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही'
Saturday, June 13, 2009
लो क सं घ र्ष !: लज्जित हो मेरी लघुता
Friday, June 12, 2009
Wednesday, June 10, 2009
पिता होने की सजा
लो क सं घ र्ष !: रसधार नही जीवन में...
Tuesday, June 9, 2009
लो क सं घ र्ष !: अब अश्रु जलधि में दुःख के....
व्यंग्यलोकतंत्रम् अभ्युत्थानम् - विनोद विप्लव
 
मतदाताओं की चिरपरिचित मूर्खता और अपरिपक्वता के कारण पिछले कई चुनावों की तरह इस चुनाव में भी लोकतांत्रिक भावना का धक्का पहुंचा है। हालांकि पिछले दो तीन चुनावों के बाद से जो नतीजे आ रहे थे उसे देखते हुये इस बार उम्मीद बनी थी कि इस बार पहले से और बेहतर नतीजे आयेंगे हमारे देश में लोकतंत्र और मजबूत होगा, लेकिन दुर्भाग्य से मतदाताओं ने वह गलती दोहरा दी जिसे लोकतंत्र प्रेमी कभी माफ नहीं करेंगे। इस चुनाव के नतीजों ने यह साबित कर दिया है कि लोग खुद नहीं चाहते कि उनका भला हो। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र का ऐसा हश्र और वह भी लोक के हाथों - विश्वास नहीं होता। पिछले कुछ चुनाव के बाद कितना अच्छा लोकतांत्रिक वातावरण उत्पन्न हुआ था। यह सोचते ही मन अह्लादित हो जाता है, लेकिन इस चुनाव नतीजों ने लोकतंत्र की स्थापना के लिये किये गये सभी प्रयासों पर पानी फेर दिया। प्रधानमंत्री बनने की आस केवल लाल कृष्ण आडवाणी, मायावती या शरद पवार ही नहीं लगाये बैठे कई और लोग लगाये बैठे थे लेकिन लोगों की मूर्खता के कारण सबकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। सोचिये अगर कांग्रेस एवं उनकी सहयोगी दलों को सरकार बनाने लायक पर्याप्त बहुमत मिलने के बजाय सभी पाटियों को केवल पांच-पांच, दस-दस सीटें ही मिलती तो देश में लोकतंत्र का कितना विकास हो सकता था। अगर ऐसा होता तो सबको फायदा होता - समाज के सबसे निचले स्तर के आदमी तक को फायदा होता। अखबार और चैनलवालों को तो मनचाही मुराद मिल जाती। आप खुद सोचिये कि तब कितना मजेदार दृश्य होता जब पांच-पांच, दस-दस सीटें जीतने वाली पचास पार्टियों के नेता रात-रात भर बैठकें करते। कई कई दिनों ही नहीं कई-कई सप्ताह तक बैठकें चलतीं। बैठकों में लत्तम-जुत्तम से लेकर को वे सब चीजें चलती जो लोकतांत्रिक मानी जाती हैं। प्रधानमंत्री को लेकर महीनों तक सस्पेंस बना रहता। चैनलों पर दिन रात ‘‘कौन बनेगा प्रधानमंत्री’’, ‘‘7 रेस कोर्स की रेस’’, ‘‘कुर्सी का विश्व युद्ध’’ जैसे शीर्शकों से कार्यक्रम पेश करके महीनों तक अपनी कमाई और लोगों का मनोरंजन करते। चैनलों की टीआरपी और अखबारों का सर्कुलेशन हिमालय की चोटी को भी मात देता। हलवाइयों से लेकर नाइयों की दुकानों तक लोग राजनीति और लोकतंत्र के विभिन्न पहलुओं पर चलने वाले राष्ट्रीय बहस में हिस्सा लेते और इस तरह देश में लोकतंत्र में जनता की भागीदारी बढ़ती। सबसे दिमाग में यही सवाल होता कौन बनेगा प्रधानमंत्री। अचानक एक दिन रात तीन बजे मेराथन बैठक के बाद मीडियाकर्मियों के भारी हुजूम के बीच घोषणा होती कि प्रधानमंत्री पद के संसद भवन के गेट से 20 फर्लांग की दूरी पर बैठने वाले चायवाले को चुना गया है क्योंकि सभी नेताओं के बीच केवल उसी के नाम पर सहमति बन पायी है। आप सोच सकते हैं कि अगर ऐसा हुआ होता तो हमारे देष का लोकतंत्र किस उंचाई पर पहुंच जाता। इस घोषणा के बाद जब तमाम चैनलों के रिपोर्टर और कैमरामैन अपने कैमरे और घुटने तुडवाते हुये वहां पहुंचते तबतक चायवाले की दुकान के आगे एक तरफ नगदी से भरे ब्रीफकेस लिये हुये सांसदों की लंबी लाइन होती तो दूसरे तरफ उद्योगपतियों की। एक दूसरी लाइन उनसे बाइट लेने वाले चैनल मालिकों और संपादकों की होती। एक - दो घंटे के भीतर जब वह चायवाल अरबपति बन चुका होता तभी अखबार या चैनल का कोई रिपोर्टर या कैमरामैन बदहवाश दौड़ता हुआ वहां पहुंचता और जब बताता कि असल में सुनने में गलती हुयी है। दरअसल प्रधानमंत्री के लिये दरअसल जिसके नाम पर सहमति हुयी है वह चायवाला नहीं बल्कि पानवाला है। इसके बाद मीडियाकर्मियों के बीच एक और मैराथन दौड़ होती और अगले घंटे के भीतर एक और व्यक्ति अरबपतियों की सूची में शुमार हो जाता। इस बीच घोषणा होती कि बैठक में पानवाले के नाम पर असमति कायम हो गयी और अब किसी और के नाम पर चर्चा हो रही है। देश में एक बार फिर संस्पेंस का माहौल कायम होता और क्या पता कि बैठक के बाद जिस नाम की घोषणा होती वह नाम इस खाकसार का होता। महीनों तक कई बैठकों का दौर चलने और तमाम उठापटक के बाद प्रधानमंत्री के रूप में किसी का चयन होता है और फिर मंत्रियों के चयन पर सिर फुटौव्वल का दौर चलता और अंत में पता चलता कि मंत्रियों के लिये भी सांसदों के नामों पर सहमति नहीं बन पायी बल्कि किसी मोची, किसी पनवाडी, किसी पंसारी, किसी जुआड़ी और किसी अनाड़ी के नाम पर सहमति बनी है। सोचिये कितने आम लोगों एवं उनके नाते-रिश्तेदारों का भला होता और तब सही अर्थों में लोकतंत्र की स्थापना होती क्योंकि लोकतंत्र वह तंत्र होता है जो जनता का, जनता के लिये और जनता के द्वारा हो। - विनोद विप्लव
इस व्यंग्य का संक्षिप्त रूप 09 जून, 2009 को दैनिक हिन्दुस्तान के ‘‘नक्कारखाना’’ काॅलम में ‘‘लोकतंत्रम् अभ्युत्थानम्’’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है।
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लो क सं घ र्ष !: मेरे मानस की पीडा,, है मधुर स्वरों में गाती...
Monday, June 8, 2009
हबीब तनवीर साहब के निधन से रंगकर्मीयों को शोक
 सहारनपुर/आगरा। प्रख्यात नाटककार और रंगकर्मी हबीब तनवीर साहब के निधन पर पूरे देश के रंगकर्मियों मे दुख लहर दौड़ गयी है। हबीब तनवीर साहब ने अपनी ज़िन्दगी का बड़ा हिस्सा रंगमंच की सेवा मे गुज़ार दिया। और वो खुद ही रंगमंच का दूसरा नाम बन गये। उन्होने तमाम देशों मे जाकर हिन्दी नाटक किये और रंगमंच को व्यवसायिक बनाने की पहल भी की। इसके अलावा सड़क दुर्घटना मे काल का ग्रास बने वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और उनके साथियों की आत्मा की शान्ति के लिये प्रार्थना की गयी।
श्री हबीब के अकास्मिक निधन पर सहारनपुर भारतीय जन नाट्य संघ 'इप्टा' के अध्यक्ष सरदार अनवर, महासचिव वी.के. डोभाल, कोषाध्यक्ष निमिष भटनागर, मून पैट्रीक, अम्बर सलीम, शाहिद, शिब्ली, उर्फी, इनामुलहक (एनएसड़ी), नासिर जमाल, विजयपाल सिंह, अनिल शर्मा, शमीम अख्तर, आशीष, रुमी, इम्तियाज़, इश्तियाक, सोनू, प्रणव लूथरा, पिंकी सनावर, उर्मिला सनावर, मुकेश शर्मा आदि ने शोक व्यक्त किया है।
जनाब हबीब तनवीर साहब को श्रृद्धा सुमन अर्पित करने के लिये आगरा मे संजय पलैस स्थित शहीद स्मारक पर एक सभा का आयोजन किया गया। जिसमें शहर के रंगकर्मीयों के साथ-साथ कई गणमान्य नागरिकों ने भी शिरकत की। इस मौके पर श्रृद्धासुमन अर्पण करने वालों मे रंगलीला के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार अनिल शुक्ला, इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव जीतेन्द्र रघुवंशी, मनमोहन भारद्वाज, अनिल जैन, केशव तलेगांवकर, कमलदीप, प्रदीप, तलत उमरी, मनोज, गिरिजा शंकर शर्मा, मीतेन रघुवंशी और सोम ठाकुर आदि के नाम प्रमुख हैं। सभा का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी एंव पत्रकार योगेन्द्र दुबे ने किया।
सहारनपुर/आगरा। प्रख्यात नाटककार और रंगकर्मी हबीब तनवीर साहब के निधन पर पूरे देश के रंगकर्मियों मे दुख लहर दौड़ गयी है। हबीब तनवीर साहब ने अपनी ज़िन्दगी का बड़ा हिस्सा रंगमंच की सेवा मे गुज़ार दिया। और वो खुद ही रंगमंच का दूसरा नाम बन गये। उन्होने तमाम देशों मे जाकर हिन्दी नाटक किये और रंगमंच को व्यवसायिक बनाने की पहल भी की। इसके अलावा सड़क दुर्घटना मे काल का ग्रास बने वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और उनके साथियों की आत्मा की शान्ति के लिये प्रार्थना की गयी।
श्री हबीब के अकास्मिक निधन पर सहारनपुर भारतीय जन नाट्य संघ 'इप्टा' के अध्यक्ष सरदार अनवर, महासचिव वी.के. डोभाल, कोषाध्यक्ष निमिष भटनागर, मून पैट्रीक, अम्बर सलीम, शाहिद, शिब्ली, उर्फी, इनामुलहक (एनएसड़ी), नासिर जमाल, विजयपाल सिंह, अनिल शर्मा, शमीम अख्तर, आशीष, रुमी, इम्तियाज़, इश्तियाक, सोनू, प्रणव लूथरा, पिंकी सनावर, उर्मिला सनावर, मुकेश शर्मा आदि ने शोक व्यक्त किया है।
जनाब हबीब तनवीर साहब को श्रृद्धा सुमन अर्पित करने के लिये आगरा मे संजय पलैस स्थित शहीद स्मारक पर एक सभा का आयोजन किया गया। जिसमें शहर के रंगकर्मीयों के साथ-साथ कई गणमान्य नागरिकों ने भी शिरकत की। इस मौके पर श्रृद्धासुमन अर्पण करने वालों मे रंगलीला के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार अनिल शुक्ला, इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव जीतेन्द्र रघुवंशी, मनमोहन भारद्वाज, अनिल जैन, केशव तलेगांवकर, कमलदीप, प्रदीप, तलत उमरी, मनोज, गिरिजा शंकर शर्मा, मीतेन रघुवंशी और सोम ठाकुर आदि के नाम प्रमुख हैं। सभा का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी एंव पत्रकार योगेन्द्र दुबे ने किया।
लो क सं घ र्ष !: मेरा यह सागर मंथन...
लो क सं घ र्ष !: अजमेर शरीफ के बम धमाके -1
अभिनव भारत , मालेगाव बम धमाके में शामिल इस हिंदू आतंकवादी संगठन ने ही शायद अजमेर शरीफ बम धमाके को अंजाम दिया है। राजस्थान के आतंकवाद निरोधी दस्ते का कहना है की अजमेर दरगाह में वर्ष 2007 में हुए धमाके की जांच सूत्र अभिनव भारत के सदस्यो तक पहुँचते दिख रहे है । एनड़ीटीवी को दिए गए एक विशेष साक्षात्कार में राजस्थान एटीएस के प्रमुख कपिल गर्ग ने इस बात को स्वीकारा है की अभिनव भारत अब हमारे निशाने पर है । पिछले दिनों राजस्थान पुलिस की एक विशेष टीम ने मुंबई जाकर मालेगाव धमाके कि मास्टरमाइंङ लेफ्टिनेंट कर्नल एस पी पुरोहित अन्य अभियुक्तों का नार्को परीक्षण और ब्रेन मैपिंग टेस्ट से जुड़े बयानों और एवं रिपोर्टो को एकत्रित किया। पुलिस सूत्रों का कहना है कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित पर किए गए नार्को टेस्ट तथा ब्रेन मैपिंग टेस्ट ने इस बात को उजागर किया कि एक अन्य सदस्य दयानंद पाण्डेय , जो मालेगाव का आरोपी है ,उसने अजमेर धमाके की योजना बनाई थी जिसमें दो लोग मारे गए और लगभग 20 लोग अक्टूबर 2007 में घायल हुए । (एनड़ीटीवी , 'अभिनव भारत अंडर स्कान्नेर फॉर 07 अजमेर ब्लास्ट' राजन महान , मंगलवार ,14 अप्रैल 2009 ,जयपुर ) डेढ़ साल से अधिक वक़्त गुजर गया जब अजमेर शरीफ के बम धमाको में 42 वर्षीय सैयद सलीम का इंतकाल हुआ था महान सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती की इस दरगाह पर 11 अक्टूबर 2007 को बम विस्फोट में जो दो लोग मारे गए थे उनमें वह भी शामिल था । हालात बता सकते है की सैयद सलीम की मौत बहुत दर्दनाक ढंग से हुई । जैसा की बताया जा चुका है इस धमाके में तमाम लोग बुरी तरह घायल भी हुए । जब वह प्रार्थना करने की मुद्रा में थे। न सैयद सलीम की पत्नी न ही उनके दो बच्चे और न ही भाई बहनों का उसका लंबा -चौडा कुनबा, किसी ने भी इस बात की कल्पना नही की होगी की इतने मृदुभाषी शख्स की मौत इतनी पीड़ा दायक स्तिथि में होगी । उसके दोस्तों को आज भी याद है ख्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती -जिन्हें गरीब नवाज भी कहा जाता है - उनके प्रति अपने अगाध सम्मान के चलते ही सलीम ने अजमेर में रहने का फ़ैसला किया था, और वहां पर सौन्दर्य प्रसाधन का बिज़नेस शुरू किया था । इतनी लम्बी -चौडी कमाई नही थी की बार-बार अजमेर से हैदराबाद आना मुमकिन होता, लिहाजा साल में एक दफा वह जरूर आते । गौरतलब है की सैयद सलीम के आत्मीय जानो के लिए उसकी इस असामयिक मौत से उपजे शोक के साथ-साथ एक और सदमे से गुजरना पड़ा जिसकी वजह थी पुलिस एवं जांच एज़ेंसियों का रूख जिन्हें यह लग रहा था कि सैयद सलीम ख़ुद इस हमले के पीछे थे । मक्का मस्जिद बम धमाके और अजमेर के बम धमाके के बीच की समरूपता को देखते हुए राजस्थान की पुलिस टीम ने आकर इस बात की छानबीन की कहीं सैयद सलीम ख़ुद आतंकवादी तो नही था । ऐसे घटनाओ को सनसनीखेज अंदाज में पेश करने वाले मीडिया के एक हिस्से ने भी यह ख़बर उछाल दी कि मृत व्यक्ति के जेब से कुछ '' संदेहस्पद वस्तु '' बरामद हुई । (डीएनए,13 अक्टूबर 2007 )
अपने इस दावे- कि इस घटना को हुजी से जुड़े आतंकवादियो ने ही अंजाम दिया है - को बिल्कुल हकीकत मान रही राजस्थान पुलिस ने इस सिलसिले में छः लोगो को भी हिरासत में ले लिया था जिसमें दो बांग्लादेशी भी शामिल थे। पुलिस के मुताबिक सिम कार्ड लगाये एक मोबाइल टेलीफोन के जरिये विस्फोट को अंजाम दिया गया। तत्कालिन गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने यह भी कहा की बम धमाके 'सरहद पार दुश्मनों के इशारे पर हुए है'।
हम अंदाजा लगा सकते है की मामले की तहकीकात कर रही राजस्थान पुलिस की टीम ने सैयद सलीम के परिवारजनों के साथ क्या व्यवहार किया होगा। माता-पिता , भाई बहिन ,पत्नी सभी को खाकी के डर से रूबरू होना पड़ा होगा । ऐसे अनुभवों को देखते हुए हम सहज ही अंदाजा लगा सकते है की समूचे परिवार को 'आतंकवादी' के परिवार के तौर पर लोगो के ताने सुनने पड़े होंगे।
अब जबकि सच्चाई से परदा हटने को है और ख़ुद पुलिस यह कह रही है की अभिनव भारत के आतंकवादियो ने अजमेर बम धमाके को अंजाम दिया है, ऐसे में यह पूछना क्या ज्यादती होगा की पुलिस को चाहिए की वह सैयद सलीम के परिवारवालों के नाम एक ख़त लिखे और जो कुछ हुआ उसके लिए माफ़ी मांगे ।
-सुभाष गाताडे
लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार है
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित

 
 










 

