Saturday, June 27, 2009
लो क सं घ र्ष !: संघी कारसेवको से कांग्रेस को बचाएँ राहुल -2
लो क सं घ र्ष !: छाया पड़ती हो विधु पर...
Friday, June 26, 2009
लो क सं घ र्ष !: संघी कारसेवको से कांग्रेस को बचाएँ राहुल
लो क सं घ र्ष !: जलते है स्वप्न हमारे...
Thursday, June 25, 2009
लो क सं घ र्ष !: अब चेतन सी लहराए...
यस,कमेंट्स प्लीज़
Wednesday, June 24, 2009
लो क सं घ र्ष !: राष्ट्रिय हितों के सौदागर है ये निक्कर वाले....तो यह हाल तलवार भाजने वाले लौहपुरुष और योद्धाओ का है ।
Tuesday, June 23, 2009
Khwaja Gharib Nawaz- SYMBOL OF LOVE, HARMONY AND PEACE
लो क सं घ र्ष !: राष्ट्रिय हितों के सौदागर है ये निक्कर वाले
Monday, June 22, 2009
लो क सं घ र्ष !: सुंदर सी, सुन्दरता
लो क सं घ र्ष !: फिर स्वप्न सुंदरी बनना...
Sunday, June 21, 2009
लो क सं घ र्ष !: प्रहरी मुझको कर डाला...
लो क सं घ र्ष !: तब भटकती प्रत्याशा...
लो क सं घ र्ष !: अवधी भाषा में सवैये
Saturday, June 20, 2009
लो क सं घ र्ष !: आदित्य बिरला के बाद रतन टाटा की ब्लैकमेलिंग#links#links#links#links
Friday, June 19, 2009
पी,पी,पी और एक और पी
Wednesday, June 17, 2009
ये टेंशन तो समाप्त हुई
तुम क्या आये
Sunday, June 14, 2009
लो क सं घ र्ष !: अपना कह दूँ मैं किसको ...
लो क सं घ र्ष !: कुछ डूबी सी उतराए...
जो है अप्राप्य इस जग में , वह अभिलाषा है मन की। मन-मख,विरहाग्नि जलाकर आहुति दे रहा स्वयं की॥ अपने से स्वयं पराजित , होकर भी मैं जीता हूँ । अभिशाप समझ कर के भी मैं स्मृति - मदिरा पीता हूँ ॥ दुर्दिन की घाटी भी अब विश्वाश भरी लहराए। उस संधि -पत्र की नौका कुछ डूबी सी उतराए॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही'
Saturday, June 13, 2009
लो क सं घ र्ष !: लज्जित हो मेरी लघुता
Friday, June 12, 2009
Wednesday, June 10, 2009
पिता होने की सजा
लो क सं घ र्ष !: रसधार नही जीवन में...
Tuesday, June 9, 2009
लो क सं घ र्ष !: अब अश्रु जलधि में दुःख के....
व्यंग्यलोकतंत्रम् अभ्युत्थानम् - विनोद विप्लव
मतदाताओं की चिरपरिचित मूर्खता और अपरिपक्वता के कारण पिछले कई चुनावों की तरह इस चुनाव में भी लोकतांत्रिक भावना का धक्का पहुंचा है। हालांकि पिछले दो तीन चुनावों के बाद से जो नतीजे आ रहे थे उसे देखते हुये इस बार उम्मीद बनी थी कि इस बार पहले से और बेहतर नतीजे आयेंगे हमारे देश में लोकतंत्र और मजबूत होगा, लेकिन दुर्भाग्य से मतदाताओं ने वह गलती दोहरा दी जिसे लोकतंत्र प्रेमी कभी माफ नहीं करेंगे। इस चुनाव के नतीजों ने यह साबित कर दिया है कि लोग खुद नहीं चाहते कि उनका भला हो। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र का ऐसा हश्र और वह भी लोक के हाथों - विश्वास नहीं होता। पिछले कुछ चुनाव के बाद कितना अच्छा लोकतांत्रिक वातावरण उत्पन्न हुआ था। यह सोचते ही मन अह्लादित हो जाता है, लेकिन इस चुनाव नतीजों ने लोकतंत्र की स्थापना के लिये किये गये सभी प्रयासों पर पानी फेर दिया। प्रधानमंत्री बनने की आस केवल लाल कृष्ण आडवाणी, मायावती या शरद पवार ही नहीं लगाये बैठे कई और लोग लगाये बैठे थे लेकिन लोगों की मूर्खता के कारण सबकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। सोचिये अगर कांग्रेस एवं उनकी सहयोगी दलों को सरकार बनाने लायक पर्याप्त बहुमत मिलने के बजाय सभी पाटियों को केवल पांच-पांच, दस-दस सीटें ही मिलती तो देश में लोकतंत्र का कितना विकास हो सकता था। अगर ऐसा होता तो सबको फायदा होता - समाज के सबसे निचले स्तर के आदमी तक को फायदा होता। अखबार और चैनलवालों को तो मनचाही मुराद मिल जाती। आप खुद सोचिये कि तब कितना मजेदार दृश्य होता जब पांच-पांच, दस-दस सीटें जीतने वाली पचास पार्टियों के नेता रात-रात भर बैठकें करते। कई कई दिनों ही नहीं कई-कई सप्ताह तक बैठकें चलतीं। बैठकों में लत्तम-जुत्तम से लेकर को वे सब चीजें चलती जो लोकतांत्रिक मानी जाती हैं। प्रधानमंत्री को लेकर महीनों तक सस्पेंस बना रहता। चैनलों पर दिन रात ‘‘कौन बनेगा प्रधानमंत्री’’, ‘‘7 रेस कोर्स की रेस’’, ‘‘कुर्सी का विश्व युद्ध’’ जैसे शीर्शकों से कार्यक्रम पेश करके महीनों तक अपनी कमाई और लोगों का मनोरंजन करते। चैनलों की टीआरपी और अखबारों का सर्कुलेशन हिमालय की चोटी को भी मात देता। हलवाइयों से लेकर नाइयों की दुकानों तक लोग राजनीति और लोकतंत्र के विभिन्न पहलुओं पर चलने वाले राष्ट्रीय बहस में हिस्सा लेते और इस तरह देश में लोकतंत्र में जनता की भागीदारी बढ़ती। सबसे दिमाग में यही सवाल होता कौन बनेगा प्रधानमंत्री। अचानक एक दिन रात तीन बजे मेराथन बैठक के बाद मीडियाकर्मियों के भारी हुजूम के बीच घोषणा होती कि प्रधानमंत्री पद के संसद भवन के गेट से 20 फर्लांग की दूरी पर बैठने वाले चायवाले को चुना गया है क्योंकि सभी नेताओं के बीच केवल उसी के नाम पर सहमति बन पायी है। आप सोच सकते हैं कि अगर ऐसा हुआ होता तो हमारे देष का लोकतंत्र किस उंचाई पर पहुंच जाता। इस घोषणा के बाद जब तमाम चैनलों के रिपोर्टर और कैमरामैन अपने कैमरे और घुटने तुडवाते हुये वहां पहुंचते तबतक चायवाले की दुकान के आगे एक तरफ नगदी से भरे ब्रीफकेस लिये हुये सांसदों की लंबी लाइन होती तो दूसरे तरफ उद्योगपतियों की। एक दूसरी लाइन उनसे बाइट लेने वाले चैनल मालिकों और संपादकों की होती। एक - दो घंटे के भीतर जब वह चायवाल अरबपति बन चुका होता तभी अखबार या चैनल का कोई रिपोर्टर या कैमरामैन बदहवाश दौड़ता हुआ वहां पहुंचता और जब बताता कि असल में सुनने में गलती हुयी है। दरअसल प्रधानमंत्री के लिये दरअसल जिसके नाम पर सहमति हुयी है वह चायवाला नहीं बल्कि पानवाला है। इसके बाद मीडियाकर्मियों के बीच एक और मैराथन दौड़ होती और अगले घंटे के भीतर एक और व्यक्ति अरबपतियों की सूची में शुमार हो जाता। इस बीच घोषणा होती कि बैठक में पानवाले के नाम पर असमति कायम हो गयी और अब किसी और के नाम पर चर्चा हो रही है। देश में एक बार फिर संस्पेंस का माहौल कायम होता और क्या पता कि बैठक के बाद जिस नाम की घोषणा होती वह नाम इस खाकसार का होता। महीनों तक कई बैठकों का दौर चलने और तमाम उठापटक के बाद प्रधानमंत्री के रूप में किसी का चयन होता है और फिर मंत्रियों के चयन पर सिर फुटौव्वल का दौर चलता और अंत में पता चलता कि मंत्रियों के लिये भी सांसदों के नामों पर सहमति नहीं बन पायी बल्कि किसी मोची, किसी पनवाडी, किसी पंसारी, किसी जुआड़ी और किसी अनाड़ी के नाम पर सहमति बनी है। सोचिये कितने आम लोगों एवं उनके नाते-रिश्तेदारों का भला होता और तब सही अर्थों में लोकतंत्र की स्थापना होती क्योंकि लोकतंत्र वह तंत्र होता है जो जनता का, जनता के लिये और जनता के द्वारा हो। - विनोद विप्लव
इस व्यंग्य का संक्षिप्त रूप 09 जून, 2009 को दैनिक हिन्दुस्तान के ‘‘नक्कारखाना’’ काॅलम में ‘‘लोकतंत्रम् अभ्युत्थानम्’’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है।
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लो क सं घ र्ष !: मेरे मानस की पीडा,, है मधुर स्वरों में गाती...
Monday, June 8, 2009
हबीब तनवीर साहब के निधन से रंगकर्मीयों को शोक
लो क सं घ र्ष !: मेरा यह सागर मंथन...
लो क सं घ र्ष !: अजमेर शरीफ के बम धमाके -1
अभिनव भारत , मालेगाव बम धमाके में शामिल इस हिंदू आतंकवादी संगठन ने ही शायद अजमेर शरीफ बम धमाके को अंजाम दिया है। राजस्थान के आतंकवाद निरोधी दस्ते का कहना है की अजमेर दरगाह में वर्ष 2007 में हुए धमाके की जांच सूत्र अभिनव भारत के सदस्यो तक पहुँचते दिख रहे है । एनड़ीटीवी को दिए गए एक विशेष साक्षात्कार में राजस्थान एटीएस के प्रमुख कपिल गर्ग ने इस बात को स्वीकारा है की अभिनव भारत अब हमारे निशाने पर है । पिछले दिनों राजस्थान पुलिस की एक विशेष टीम ने मुंबई जाकर मालेगाव धमाके कि मास्टरमाइंङ लेफ्टिनेंट कर्नल एस पी पुरोहित अन्य अभियुक्तों का नार्को परीक्षण और ब्रेन मैपिंग टेस्ट से जुड़े बयानों और एवं रिपोर्टो को एकत्रित किया। पुलिस सूत्रों का कहना है कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित पर किए गए नार्को टेस्ट तथा ब्रेन मैपिंग टेस्ट ने इस बात को उजागर किया कि एक अन्य सदस्य दयानंद पाण्डेय , जो मालेगाव का आरोपी है ,उसने अजमेर धमाके की योजना बनाई थी जिसमें दो लोग मारे गए और लगभग 20 लोग अक्टूबर 2007 में घायल हुए । (एनड़ीटीवी , 'अभिनव भारत अंडर स्कान्नेर फॉर 07 अजमेर ब्लास्ट' राजन महान , मंगलवार ,14 अप्रैल 2009 ,जयपुर ) डेढ़ साल से अधिक वक़्त गुजर गया जब अजमेर शरीफ के बम धमाको में 42 वर्षीय सैयद सलीम का इंतकाल हुआ था महान सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती की इस दरगाह पर 11 अक्टूबर 2007 को बम विस्फोट में जो दो लोग मारे गए थे उनमें वह भी शामिल था । हालात बता सकते है की सैयद सलीम की मौत बहुत दर्दनाक ढंग से हुई । जैसा की बताया जा चुका है इस धमाके में तमाम लोग बुरी तरह घायल भी हुए । जब वह प्रार्थना करने की मुद्रा में थे। न सैयद सलीम की पत्नी न ही उनके दो बच्चे और न ही भाई बहनों का उसका लंबा -चौडा कुनबा, किसी ने भी इस बात की कल्पना नही की होगी की इतने मृदुभाषी शख्स की मौत इतनी पीड़ा दायक स्तिथि में होगी । उसके दोस्तों को आज भी याद है ख्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती -जिन्हें गरीब नवाज भी कहा जाता है - उनके प्रति अपने अगाध सम्मान के चलते ही सलीम ने अजमेर में रहने का फ़ैसला किया था, और वहां पर सौन्दर्य प्रसाधन का बिज़नेस शुरू किया था । इतनी लम्बी -चौडी कमाई नही थी की बार-बार अजमेर से हैदराबाद आना मुमकिन होता, लिहाजा साल में एक दफा वह जरूर आते । गौरतलब है की सैयद सलीम के आत्मीय जानो के लिए उसकी इस असामयिक मौत से उपजे शोक के साथ-साथ एक और सदमे से गुजरना पड़ा जिसकी वजह थी पुलिस एवं जांच एज़ेंसियों का रूख जिन्हें यह लग रहा था कि सैयद सलीम ख़ुद इस हमले के पीछे थे । मक्का मस्जिद बम धमाके और अजमेर के बम धमाके के बीच की समरूपता को देखते हुए राजस्थान की पुलिस टीम ने आकर इस बात की छानबीन की कहीं सैयद सलीम ख़ुद आतंकवादी तो नही था । ऐसे घटनाओ को सनसनीखेज अंदाज में पेश करने वाले मीडिया के एक हिस्से ने भी यह ख़बर उछाल दी कि मृत व्यक्ति के जेब से कुछ '' संदेहस्पद वस्तु '' बरामद हुई । (डीएनए,13 अक्टूबर 2007 )
अपने इस दावे- कि इस घटना को हुजी से जुड़े आतंकवादियो ने ही अंजाम दिया है - को बिल्कुल हकीकत मान रही राजस्थान पुलिस ने इस सिलसिले में छः लोगो को भी हिरासत में ले लिया था जिसमें दो बांग्लादेशी भी शामिल थे। पुलिस के मुताबिक सिम कार्ड लगाये एक मोबाइल टेलीफोन के जरिये विस्फोट को अंजाम दिया गया। तत्कालिन गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने यह भी कहा की बम धमाके 'सरहद पार दुश्मनों के इशारे पर हुए है'।
हम अंदाजा लगा सकते है की मामले की तहकीकात कर रही राजस्थान पुलिस की टीम ने सैयद सलीम के परिवारजनों के साथ क्या व्यवहार किया होगा। माता-पिता , भाई बहिन ,पत्नी सभी को खाकी के डर से रूबरू होना पड़ा होगा । ऐसे अनुभवों को देखते हुए हम सहज ही अंदाजा लगा सकते है की समूचे परिवार को 'आतंकवादी' के परिवार के तौर पर लोगो के ताने सुनने पड़े होंगे।
अब जबकि सच्चाई से परदा हटने को है और ख़ुद पुलिस यह कह रही है की अभिनव भारत के आतंकवादियो ने अजमेर बम धमाके को अंजाम दिया है, ऐसे में यह पूछना क्या ज्यादती होगा की पुलिस को चाहिए की वह सैयद सलीम के परिवारवालों के नाम एक ख़त लिखे और जो कुछ हुआ उसके लिए माफ़ी मांगे ।
-सुभाष गाताडे
लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार है
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित