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Sunday, February 24, 2008

आतंकवादी


कहीं पढा था
बड़े बुज़ुर्गों से भी सुना था
सपने देखना अच्छी बात है
सपने ऊँचे देखना चाहिए, बड़े देखना चाहिए
एक छोटे बच्चे ने भी देखा था सपना
एक छोटा सा सपना
उसके जैसे न जाने कितने लोगों ने
देखा होगा कुछ ऐसा ही सपना
सोचा था सपना छोटा है
इसलिए पूरा होने की उम्मीद भी रखी
लेकिन जब सपने की उस मज़बूत चादर के तार
झीने पड़ने लगे
फटने लगे
टूटने लगे तो साथ ही
उसके सपने
उसकी उम्मीदें
विश्वास भी
तार-तार होकर बिखरने लगे
अपने पराए लगने लगे
और अपनों में बेगाना वो
हर पल खण्डित होते विश्वास
से परास्त हो गया
और
बन गया
आतंकवादी।
(आतंकवादी कोई बचपन से नहीं होता, समाज बना देता है)

स्मृति

2 comments:

tulika singh said...

yar aaj kafi wqot ke baad rangkarmi par aayi hto teri poem mili . muhje bahut acchi lagi. good keep writting.

Emily Katie said...

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