कहीं पढा था
बड़े बुज़ुर्गों से भी सुना था
सपने देखना अच्छी बात है
सपने ऊँचे देखना चाहिए, बड़े देखना चाहिए
एक छोटे बच्चे ने भी देखा था सपना
एक छोटा सा सपना
उसके जैसे न जाने कितने लोगों ने
देखा होगा कुछ ऐसा ही सपना
सोचा था सपना छोटा है
इसलिए पूरा होने की उम्मीद भी रखी
लेकिन जब सपने की उस मज़बूत चादर के तार
झीने पड़ने लगे
फटने लगे
टूटने लगे तो साथ ही
उसके सपने
उसकी उम्मीदें
विश्वास भी
तार-तार होकर बिखरने लगे
अपने पराए लगने लगे
और अपनों में बेगाना वो
हर पल खण्डित होते विश्वास
से परास्त हो गया
और
बन गया
आतंकवादी।
(आतंकवादी कोई बचपन से नहीं होता, समाज बना देता है)
स्मृति
2 comments:
yar aaj kafi wqot ke baad rangkarmi par aayi hto teri poem mili . muhje bahut acchi lagi. good keep writting.
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