Thursday, February 14, 2008
क्या तमाशा ही देखना चाहते हैं दर्शक
आज सुबह जब ऑफिस पंहुचा तो टीवी पर एक नया तमाशा देखा प्यार के इज़हार का। वेलन्टाइन डे के मौके पर राखी सांवत के घर पंहुचा उनका आशिक अभिषेक गुलाब का गुलदस्ता लेकर... और माफी मांगने पर उसे मिले तमाचे... ये थी देश मे आज की सबसे बड़ी ख़बर। और मेरे जैसे कई टीवी पत्रकारों अपने कैमरों से लैस होकर इस तमाशे को कैद कर रहे थे। सारे चैनल्स की ब्रेकिंग न्यूज़ थी राखी और अभिषेक के बीच का ये तमाशा। हर कोई इसे अपने ही अन्दाज़ मे दिखाकर ज़्यादा से ज़्यादा टीआरपी बटोरने की फिराक मे लगा हुआ था............ मैं सोच रहा था क्या यही पत्रकारिता का असली मकसद है? क्या हम सिर्फ इसी तरह की बेमतलबी ख़बरों के लिये काम कर रहे है? इस सवाल का जवाब मुझे पता है नही। लेकिन खेल टीआरपी का है जो कुछ भी करने को मजबूर कर सकता है कुछ भी.........
पत्रकारिता के अपने दस साल के सफर में मैने कई पड़ाव देखें हैं। बदलते देखा ख़बरों को... हमारी प्राथमिकता को... और कहीं ना कहीं खुद को भी.. जैसे हम आत्मसर्मपण करते जा रहे हैं केवल टीआरपी की खातिर... पांच साल तक देश के सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ चैनल मे काम किया। और ये बदलाव करीब से देखा कि आज के इस दौर मे राखी सावंत जैसे लोग ही हमारी प्रथिमकता है भले ही देश के किसी कोने मे कोई परिवार भूख से तड़प कर मरता रहे। हमे हास्य से भरपूर फूहड़ता परोसते शो दिखाने ज़रुरी हैं भले ही लाखों लोग बिना पानी और सड़कों के ज़िन्दगी गूज़ार रहे हों। देश की राजधानी के करीब ही ऐसे कई गांव मौजूद है जहां आज तक लोग मिट्टी के घरों मे रहने को मजबूर हैं लेकिन हमारे लिये उन्हे दिखाने के बजाय ये दिखाना ज़रुरी है कि कौन सी हिरोईन ने रैम्प पर कम कपड़े पहन कर कैटवॉक किया। किसने बनाया आलिशान बंगला। किस के बीच चल रहा है अफेयर और ना जाने क्या क्या......... जब भी इस बारे मे कोई पूछता है तो हम कहतें है कि क्या करें दर्शक यही देखना चाहते है। ये सवाल हम सब के लिये अहम है कि क्या वाकई हमारे दर्शक यही देखना चाहते हैं? मै यही सवाल अपने सब साथियों और दर्शकों से पूछना चाहता हूँ.... उम्मीद है आप सभी जवाब ज़रुर देगें कि आप क्या देखना चाहते हैं?
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4 comments:
शुक्रिया सर.... हमारा ध्यान इस ओर खींचने के लिए। लेकिन, मैं कम से कम व्यक्तिगत तौर पर इस बात को मानने को कतई तैयार नहीं कि दर्शक यही देखना चाहते हैं। क्योंकि, ये बात आज आम हो चुकी है कि टीआरपी (टैम कंपनी द्वारा हर हफ़्ते ज़ारी की जाने वाली) लिस्ट में धांधलियां होती हैं। इसके अलावा, टीआरपी मीटर्स भी देश के गिने चुने शहरों में लगे हैं। इसलिए टेलीविज़न चैनल जो चाहे दिखाकर ज़िम्मेदारी दर्शकों पर थोप देते हैं। हां, हमारे रिपोर्टर्स ज़रूर गंभीर मुद्दों की ओर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहते। खैर, मैं समझता हूं कि इस तरह की ख़बरें चाहे वो मीका-राखी....या आज की अभिषेक-राखी घटना...इनको क्रिटिसाइज़ करना भी घटियापन है। क्योंकि इन्हीं चर्चाओं का फ़ायदा उठाकर ये पब्लिसिटी बटोरते हैं। सच है जो बात मैंने टीवी पर कई बार सुनी है कि कुछ लोग ख़बरों पर आने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
आपकी चिंता जायज है और भी लोग इस बारे में चिंतित हैं. मीडिया सेंटर की शुरूआत भी इसी दिशा में उठाया गया एक छोटा सा कदम है जो वही काम करेगा जिसकी आप अपेक्षा कर रहे हैं.
जहां तक राखी सावंत का सवाल है तो वह टीवी का दोहन करनेवाली सबसे चतुर खिलाड़ी है. हमारे पढ़े-लिखे संपादकों की औकात बता दी उसने.
नही, दर्शक ये सब नही देखना चाहते । कोई यदि सच्ची और अच्छी खबर दे तो दर्शक जरूर इसे देखेंगे । बात अपने हुनर पर विश्वास रख कर काम करने की है न कि भेड़चाल में शामिल होने की ।
संजय जी आपके मीडिया सेंटर को हमारी शुभ कामनाएँ ।
hmmm....kya karey humney to news chennal mein jahakna he chore diya hai..sach news kam filmi gupshup ka adda jyada lagta hai....
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