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Monday, February 4, 2008

मैंने गांधी को मारा है !

गांधीजी की पुण्यतिथि पर उनको शायद हम सबने याद किया, कुछ को याद था कुछ को याद दिला दिया गया। अच्छा लगा कि कम से कम हमारी ज़िम्मेदार ( तथाकथित ) मीडिया इस दिन को नही भूली। वैसे कई चैनल दूरदर्शन देख कर जगे होंगे, दूरदर्शन को बधाई किसी काम तो आया ....... कुछ निजी चैनल भी तैयारी के साथ आये जैसे एन डी टी वी और समय को बधाई ! एन डी टी वी देखते पर कुछ विचार फिर से उठे और शब्दों की शक्ल अख्तियार कर ली ! गांधी की प्रासंगिकता पर सवाल और जवाब की ही उलझन में पड़े हम सब हिन्दोस्तानी शायद यही सोचते हैं ! मैंने गांधी को मारा है !! मैंने गांधी को मारा है ..... हां मैंने गांधी को मार दिया !! मैं कौन ? अरे नही मैं कोई नाथूराम नहीं मैं तो वही हूँ जो तुम सब हो हम सब हैं क्या हुआ अगर मैं उस वक़्त पैदा नही हो पाया क्या हुआ अगर गांधी को मैं सशरीर नही मार सका मैंने वह कर दिखाया जो नाथू राम नही कर पाया मैंने गांधी को मारा है मैंने उसकी आत्मा को मार दिखाया है और मेरी उपलब्धि कि मैंने गांधी को एक बार नही कई बार मारा है अक्सर मारता रहता हूँ आज सुबह ही मारा है शाम तक न जाने कितनी बार मार चुका हूँगा इसमे मेरे लिए कुछ नया नहीं रोज़ ही का काम है हर बार जब अन्याय करता हूँ अन्याय सहता हूँ सच छुपाता झूठ बोलता हूँ घुटता अन्दर ही अन्दर मरता हूँ अपने फायदे के लिए दूसरे का नुकसान करता हूँ और उसे प्रोफेश्नालिस्म का नाम देकर बच निकलता हूँ तब तब हर बार हाँ मैंने गांधी को मारा है ........ जब जब यह चीखता हूँ कि साला यह मुल्क है ही घटिया तब तब ...... जब भी भौंकता हूँ कि साला इस देश का कुछ होने वाला नही और जब भी व्यंग्य करता हूँ कि अमा यार ' मजबूरी का नाम .........' तब तब हर बार मैंने उसे मार दिया बूढा परेशान न करे हर कदम पर आदर्शो के नखरों से सो उसे मौत के घाट उतार दिया तो आज गीता कुरान जिस पर कहो हाथ रख कर क़सम खाता हूँ सच बताता हूँ कि मैंने गांधी को मारा है पर इस साजिश में मैं अकेला नहीं हूँ मेरे और भी साथी हैं जो इसमे शामिल हैं और वो साथी हैं आप सब !! बल्कि हम सब !!!! यौर होनौर आप भी ...... अब चौंकिए मत शर्मिन्दा हो कर चुप भी मत रहिये ....... फैसला सुनाइये मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है !!!!!!! हाँ दो मुझे सज़ा दो क्यूंकि मैंने गांधी को .................... - मयंक सक्सेना mailmayanksaxena@gmail.com

4 comments:

आलोक said...

आपकी प्रविष्टि का शीर्षक फ़ायर्फ़ाक्स में ठीक नहीं दिख रहा है, थोड़ा कलात्मक दिखता है :)

मयंक said...

hmmmmm

मयंक said...

aap ise www.taazahavaa.blogspot.com par bhi padh sakte hain !

Asha Joglekar said...

पढ कर काफी गंभीरता से सोचने पर मजबूर करता लेख । क्या पम सब रोज़ गांधी को नही मार रहे ?

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