कुछ उमड़ता घुम्ड़ता आया
खोल पट, छुआ शीतल स्पर्श
इक मधुर स्वर गुंजन,
किसी अभिलाषा का स्पंदन
गगरी से छलकी नमकीन बूंदे
भर आँचल, चुगती तारे
जोड़ यादे, पिघलती राते
खींच बादल, कुम्हलाती बाते.........
कीर्ती वैद्य
Wednesday, February 20, 2008
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5 comments:
aap bahut achha likhti hain ... bahut sundar
shukriya satyandra Ji
gagarise chalki namkin bunde,taray chugna,bahut khubsurat keerti.awesomee.
Hamesha ki tarah khoobsoorat .
p k kush'tanha'
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