मुझको बुला के घर में पूछें वो आप क्या हैं
कोई मुझे बताये ये दुआ, सलाम क्या है ।
मैने तो अपना मान कर जाने की की थी जुर्रत
बेगाना वो बना कर पूछें कि नाम क्या है ।
मै सोच कर गया था होगी मेहमाँ नवाज़ी
अनजान बन वो पूछे मुझसे कि काम क्या है ।
इस बेरुखी ने उनके किया दिल को कितना घायल
मेरा दिल ही मुझसे पूछे उनका पयाम क्या है ।
उफ़ दोस्ती से ऐसे बेज़ार हो गये हम
उनसे खुदा बचाये जिन्हे कत्ले आम क्या है ।
Saturday, February 9, 2008
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1 comment:
बहुत ख़ूब लिखा है आपने। इर्शाद।
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