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Monday, February 4, 2008

इस कदंब की डाली पर

इस कदम्ब के डाली पर
डलता था कभी हिंडोला
बैठा करती थी राधा
और मोहन देते झूला

फिर बजती सुरीली बंसी
गूँजे था मधुबन सारा
नाचती गोपियाँ झूमझूम
और ब्रज थिरकता प्यारा

रात चांदनी में होती थी
जब यहाँ रास की लीला
तब यमुना भी किलोल करती
मचलती बहती सलिला

रूठ मनव्वल चलती थी जब
राधा और कान्हा की
सारा गोकुल जुगत भिडाता
दोनों के मधुर मिलन की

होता फिर मिलन का उत्सव
और मधुबन सारा गाता
और कन्हैया मुरली मनोहर
भूलते विश्व की चिंता

4 comments:

mehek said...

bahut khubsurat ashaji

Parvez Sagar said...

कदम्ब की ड़ाली.......बहुत अच्छी रचना है... अपना ये सफर जारी रखिये......

Asha Joglekar said...

धन्यवाद उत्साह बढाने के लिये ।

Keerti Vaidya said...

Didi..bhut khoobsurat kavita hai

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