Wednesday, February 20, 2008
मेरा क्या चाहें मैं रहूँ या ना ....?
मैं कल शाम को चौडा मोड़ की तरफ़ कुरियर करने गया था । लौटते समय मैं देखा की दो युवक एक रिक्सा वाले को बेदर्दी से पिटते जा रहे थे । वहां बहुत लोग इक्कठा थे लेकिन कोई भी बीच बचाव की मुद्रा में नजर नही आ रहे थे ... मुझसे रहा नही गया ....मैं आगे बढ़कर बीच -बचाव करने लगा ... मैं रिक्सा वाले की ढल बनकर खड़ा हो गया और दोनो से निवेदन करने लगा की इसको छोड़ दीजिये.... मैं देख रहा था की ये दोनों युवक मेरी बातों को धयान नही दे रहें हैं .... मैंने उनसे पूछा की आप लोग कौन हैं और क्या करते हैं ..... उनमे से एक ने जवाब दिया की मेरे पिताजी पुलिस में हैं .... फिर पूछा कि रिक्से वाले कि गलती क्या है ? ... उसने तैस में कहा कि रिक्से वाले ने अपना रिक्सा तेजी से लाकर मेरे गाड़ी में सटा दिया..... मैं थोड़े देर चुप रहा ,फ़िर पूछा कि गाड़ी में रिक्सा सटाने के कारण आप लोगों ने उसे बेरहमी से पिटा .....? यानी कि आपके पिताजी नॉएडा पुलिस में हैं तो कानून आप अपने हाथ में ले लेंगें ....? इतना कहा ही था कि महासय लोग गरम होने लगे ... तब-तक कुछ लोग और मेरा साथ देने लगे .... तभी अचानक रिक्सा वाला रोते हुए कहने लगा ...'साहब मेरा क्या है मैं चाहे जीवित रहूँ या ना रहूँ ..तिलतिल कर तो मरना ही है ... क्योंकि कानून भी हम जैसे लोगों को मार कर अपने मजबूती का दावा करता है ।'
मुझे इस बात का ज्यादा दुःख नही था कि एक रिक्सा वाला मारा जा रहा है । क्योंकि ऐसी घटनाएँ तो रोज देखने के लिए मिलतीं हैं । दुःख इस बात की है कि जैसे राजनेताओ के लड़के अपने आप को सर्वोपरि समझकर कुछ भी करते हैं , कोई रोक -टोक नही होता । वैसे ही पुलिस वालों के लड़के भी कानून को अपने हाथ में लिए घूम रहें हैं ? दूसरी बात ... रिक्से वाले ने जो बात कही वह सौ फीसदी सही है ..... जो हमारे देश कि प्रशासनिक ढांचा की वास्तविकता को बताता है ....
सत्येन्द्र
mcrpv
भोपाल
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SAHI FARMAYA AANEY
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