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Tuesday, February 12, 2008

मैं तो....... क्योंकि मैं किसान हूँ ....

नेताजी पूछे तुम कौन हो ....? मैं बोला , मैं इन्सान हूँ .... क्या तेरे पास गाड़ी है ...? हाँ मेरे पास बैलगाडी है .... नेताजी, वैश्वीकरण के इस युग में बैलगाडी.... ? हाँ , ये भारत की सवारी है ... नेताजी , अरे ! मैं तो सस्ते दर पर क़र्ज़ की व्वस्था किया है ... ? हाँ , इसीलिए मोतिया ने आत्महत्या किया है .... ? नेताजी , आत्महत्या ? ये जरूर विपक्षी पार्टी की चाल है...? मैं , नहीं ! यह तो आपके कमीशन का कमाल है ....? नेताजी , चलो ठीक है.... अब बताओ तुम्हारे घर क्या -क्या है...? मैं , जानवरों के गोबर से जलाता हूँ चूल्हा मिटटी का घर है लेकिन छत है खुला पानी इतना है ? कि बस हो पाता है कुल्ला खाने में सुखी रोटी और नसीब से दाल का दूल्हा ...? मैं तो दबा , कुचला एक इन्सान हूँ ...... ....... क्योंकि मैं भारत का किसान हूँ ...? सत्येन्द्र mcrpv भोपाल

3 comments:

Parvez Sagar said...

सतेन्द्र बहुत अच्छी रचना है जो शब्दों के माध्यम से हकीकत को उजागर करती नज़र आती है....... keep it up

परवेज़ सागर

Keerti Vaidya said...

apki yeh kavita jaberdust hai

gsbisht said...

सतेन्द्र जी आपकी रचना एक विरोधाभाष के साथ कटु-सत्यता को दर्शाती है ।

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